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असंभावित की संभावना का लेखक

पुर्तगाल के नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक जोसे सरामागो का हाल में ही निधन हो गया. उनके जीवन और साहित्य पर यह लेख मैंने कादम्बिनी पत्रिका के लिए लिखा था. जो उसके अगस्त अंक में प्रकाशित हुआ है-प्रभात रंजन

जोसे सरामागो डॉट ब्लॉस्पॉट डॉटकॉम– सतासी साल की उम्र में दिवंगत हुए लेखक जोसे सरामागो का यह आखिरी पता था। अपने लेखन को असंभावित की संभावना बताने वाला यह लेखक जीवन के अंत-अंत तक लेखन की नई-नई संभावनाएं तलाश करता रहा। पुर्तगाल के एक गुमनाम से गांव के एक भूमिहीन परिवार में १९२२ में पैदा हुए सरामागो का आरंभिक जीवन कठिनाई में बीता। तकनीकी शिक्षा प्राप्त करके उन्होंने मैकेनिक के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की। लेकिन वे वैसे मैकेनिक साबित हुए जिसको शाम को नियमित तौर पर लाइब्रेरी जाना पसंद था। पुर्तगीज़ भाषा के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता सरामागो ने अपना पहला उपन्यास २५ साल की उम्र में लिखा लेकिन उसका हश्र ऐसा हुआ कि फिर अगले २५ साल के लिए उपन्यास लेखन से तौबा कर ली।

करीब दर्जन भर उपन्यास, एकाधिक कविता संग्रह, कहानियां, डायरी, यात्रा-वृत्तान्त से लेकर ब्लॉग तक लिखने वाले इस लेखन ने लेखन को दुबारा गंभीरता से लेना तब शुरु किया जब वह करीब ४० का हो चुका था। उम्र के उस दौर में उनको पुर्तगाल के एक प्रसिद्ध प्रकाशन गृह में मैनेजर के रूप में काम करने का मौका मिला। उस दौरान उनका मिलना-जुलना पुर्तगाल के कुछ कुछ बड़े लेखकों से होने लगा और उनके अंदर का लेखक फिर से जाग उठा। इस बार उन्होंने फ्रांसीसी भाषा की अनेक मशहूर पुस्तकों का अपनी भाषा में अनुवाद करना शुरु किया। बाद में कविताएं लिखीं और अगले दस वर्षों में इनके दो कविता संग्रह प्रकाशित हुए। लेकिन बीसवीं सदी के आखिरी दौर के इस बेजोड़ उपन्यासकार ने दोबारा उपन्यास लिखना तब शुरु किया जब पुर्तगाल में कम्युनिस्ट विरोधी सरकार आ गई और यह पक्का हो गया कि कम्युनिस्ट सरामागो को भविष्य में कोई नौकरी नहीं मिल सकती। उसकी उम्र ५२ साल हो चुकी थी।

ऐसे हालात में १९७५ में उन्होंने उपन्यास लिखने के लिए कलम उठाया। १९८२ में आया ‘बाल्तासार एंड ब्लिमुंडा’ उपन्यास जिसने ६० साल की उम्र में उपन्यासकार के रूप में उनको बड़ी पहचान दिलाई। १८वीं शताब्दी की पृष्ठभूमि पर लिखा गए इस उपन्यास में एक ऐसे प्रेमी युगल की कहानी है जो एक पादरी की बनाई उड़न तश्तरी से उड़कर भागने का प्रयोग करते हैं। उनका प्रयोग असफल रहता है इसलिए इतिहास में उनका उल्लेख नहीं हुआ। वास्तव में बाद में उनके लेखन की यही सबसे बड़ी पहचान मानी गई कि उनमें इतिहास के घटनाक्रमों में गुमनाम रह गए उन आम लोगों की कोशिशों का बयान होता है जिन्होंने किसी न किसी दौर में इतिहास को चुनौती देने की, उसकी धारा मोड़ने की कोशिश की हो।

उनके उपन्यासों के बारे में एक आलोचक ने लिखा है कि उनमें अक्सर कोई आम आदमी सत्ता के मुकाबिल खड़ा हो जाता है। उनके एक अन्य मशहूर उपन्यास ‘हिस्ट्री ऑफ द सीज़ ऑफ लिस्बन’ में एक सामान्य प्रूफ रीडर एक दिन प्रूफ पढ़ते-पढ़ते अचानक एक वाक्य में नहीं जोड़ देता है और पुर्तगाल के प्राचीन इतिहास को लेकर उससे बहुत बड़े उलटफेर की नौबत आ जाती है। ‘स्टोनक्राफ्ट’ उपन्यास में एक ऐसे प्रायद्वीप की कहानी है जो भौगोलिक कारणों से यूरोप से कट गया है। पहले कभी वह यूरोप का हिस्सा हुआ करता था। यूरोप के प्रभाव से पूरी तरह मुक्त हो जाने के बाद उसका क्या हुआ- इसकी रूपक कथा है उसमें। इतिहास सरामागो के उपन्यासों का सबसे बड़ा द्वन्द्व रहा है। किस तरह इतिहास को आम आदमी की दृष्टि से प्रस्तुत किया जाए इस साम्यवादी लेखक के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही रही।

लेकिन उनके लेखन की शैली यथार्थवादी नहीं कही जा सकती। लंबे-लंबे वाक्य, रूपकात्मक भाषा, लंबे-लंबे संवाद- पाठकों को आसानी से संप्रेषित होनेवाले नहीं कहे जा सकते। लेकिन उनके विषय ने पाठकों को अपनी ओर आकर्षित किया। वैसे, उनसे जब इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा था कि इन उपन्यासों को बोल-बोलकर पढ़ने पर अधिक संप्रेषित होंगे क्योंकि ये उस बोलचाल की भाषा में लिखे गए हैं जिसको हम आजकल भूलते जा रहे हैं। अपने एक उपन्यास ‘ब्लाइंडनेस’ में उन्होंने एक और प्रयोग किया। उपन्यास के किसी पात्र का कोई नाम नहीं है। बहरहाल, उन उपन्यासों में पांडित्य और पठनीयता का वही संगम दिखाई देता है जो अर्जेंटीना के लेखक बोर्खेज़ की कहानियों की विशेषता मानी जाती है। उसी तरह सामान्य के मिथकीकरण का उन उपन्यासों में वही प्रयास दिखाई देता है जो मार्केज के उपन्यासों की विशेषता मानी जाती है।

लेखक के रूप में उनको वास्तविक ख्याति मिली ‘गोस्पेल अकार्डिंग टु जीसस क्राइस्ट’ नामक उपन्यास से। इस उपन्यास के कारण पहले चर्च की सत्ता फिर पुर्तगाल की सरकार उनके खिलाफ हो गई। दरअसल, यह उपन्यास प्रभु ईसा मसीह के जीवन को सामान्य व्यक्ति के जीवन के रूप में चित्रित करता है। बाइबिल में जिस तरह से ईसा मसीह का जीवन दिखाया गया है उसके विपरीत ईसा के जीवन की इस वैकल्पिक समांतर कथा में उन्हें अनेक बुराइयों से ग्रस्त दिखाया गया है। पुर्तगाल की सरकार ने यूरोपीय साहित्यिक पुरस्कार के लिए उनका नामांकन भेजने से मना कर दिया। नाराज होकर सरामागो स्पेन के एक कस्बे में रहने लगे थे। वहीं उनका निधन भी हुआ।

सरामागो को साम्यवादी होने के कारण भी अपने देश में परेशान होना पड़ा। ५२ साल की उम्र में बेरोजगार होना पड़ा। लेकिन वे अपनी राजनीति से नहीं डिगे। १९९८ में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद तो उनकी राजनीति और मुखर हो गई। उन्होंने लिखा कि भूमंडलीकरण नए तरह का सर्वसत्तावाद है और प्रजातांत्रिक ताकतों की उन्होंने इसके लिए आलोचना भी की कि वे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बढ़ते प्रभाव को रोक पाने में असफल साबित हो रही हैं। उन्होंने गाजा में फिलीस्तीन के खिलाफ इजरायली कार्रवाई की तुलना द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान किए गए यहुदियों के नरसंहार से की थी।

सरामागो ने हमेशा नए-नए विषयों को लेकर लिखा, नए-नए माध्यमों ने भी उनको आकर्षित किया। ८६ वर्ष की आयु में उन्होंने ब्लॉग लिखना शुरु किया और मरने से तीन महीने पहले उनके ब्लॉग की पुस्तक नोटबुक के नाम से आई। उम्र के उस पड़ाव पर भी उन्होंने अपने ब्लॉग के माध्यम से अमेरिकी नीतियों का विरोध कर अपनी राजनीतिक सक्रियता बनाए रखी। लेखन उनके लिए उपलब्धि की तरह नहीं था बल्कि उनकी उस बड़ी लड़ाई का हिस्सा था जो आम आदमी के सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए वे जीवन भर लड़ते रहे।

 
      

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