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राजेंद्र राजन की कविता ‘मनुष्यता के मोर्चे पर’

रघुवीर सहाय कहते थे कि जब मैं कविता सुनाकर हटूं तो सन्नाटा छा जाए. वरिष्ठ कवि-पत्रकार राजेंद्र राजन की इस कविता का मेरे ऊपर कुछ ऐसा ही असर हुआ. इसलिए बिना किसी भूमिका के यह कविता- जानकी पुल.

मैं जितने लोगों को जानता हूं
उनमें से बहुत कम लोगों से होती है मिलने की इच्छा
बहुत कम लोगों से होता है बतियाने का मन
बहुत कम लोगों के लिए उठता है आदर भाव
बहुत कम लोग हैं ऐसे
जिनसे कतरा कर निकल जाने की इच्छा नहीं होती
काम-धंधे खाने-पीने बीवी-बच्चों के सिवा
बाकी चीजों के लिए
ज्यादातर लोगों के बंद हैं दरवाजे
बहुत कम लोगों के पास है थोड़ा सा समय
तुम्हारे साथ होने के लिए
शायद ही कोई तैयार होता है
तुम्हारे साथ कुछ खोने के लिए
चाहे जितना बढ़ जाय तुम्हारे परिचय का संसार
तुम पाओगे बहुत थोड़े से लोग हैं ऐसे
स्वाधीन हैं जिनकी बुद्धि
जहर नहीं भरा किसी किस्म का जिनके दिमाग में
किसी चकाचौंध से अंधी नहीं हुई जिनकी दृष्टि
जो शामिल नहीं हुए किसी भागमभाग में
बहुत थोड़े से लोग हैं ऐसे
जो खोजते रहते हैं जीवन का सत्त्व
विफलताएं कम नहीं कर पातीं जिनका महत्त्व
जो जानना चाहते हैं हर बात का मर्म
जो कहीं भी हों चुपचाप निभाते हैं अपना धर्म
इने गिने लोग हैं ऐसे
जैसे एक छोटा सा टापू है
जनसंख्या के इस उफनते महासागर में
और इन बहुत थोड़े से लोगों के बारे में भी
मिलती हैं शर्मनाक खबरें जो तोड़ती हैं तुम्हें भीतर से
कोई कहता है
वह जिंदगी में उठने के लिए गिर रहा है
कोई कहता है वह मुख्यधारा से कट गया है
और फिर चला जाता है बहकती भीड़ की मंझधार में
कोई कहता है वह काफी पिछड़ गया है
और फिर भागने लगता है
पहले से भागते लोगों से ज्यादा तेज
उसी दांव-पेच की घुड़दौड़ में
कोई कहता है वह और सामाजिक होना चाहता है
और दूसरे दिन वह सबसे ज्यादा बाजारू हो जाता है
कोई कहता है बड़ी मुश्किल है सरल होने में
इस तरह सबसे विरल लोग
इस दुनिया को बनाने में
कम करते जाते हैं अपना योग
और भी दुर्लभ हो जाते हैं
दुनिया के दुर्लभ लोग
और कभी कभी खुद के भी कांपने लगते हैं पैर
मनुष्यता के मोर्चे पर अकेले होते हुए
सबसे पीड़ाजनक यही है
इन विरल लोगों का और विरल होते जाना
एक छोटा सा टापू है मेरा सुख
जो घिर रहा है हर ओर
उफनती हुई बाढ़ से
जिस समय कांप रही है पृथ्वी
मनुष्यों की संख्या के भार से
गायब हो रहे हैं
मनुष्यता के मोर्चे पर लड़ते हुए लोग।
 
      

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10 comments

  1. … prabhaavashaalee va prasanshaneey rachanaa !!!

  2. अनिल जी, राजेंद्र राजन जी, आजकल दिल्ली में रहते हैं और जनसत्ता में सम्पादकीय पृष्ठ के प्रभारी हैं.

  3. बहुत थोड़े से लोगों से मिलाने के लिए बधाई।
    बता सकते हैं राजेंद्र राजन आजकल कहां रहते हैं, क्या करते हैं।

  4. vakayi achchhi kavita………

  5. Hi there, i read your blog from time to time and i own a similar one and i was just wondering if you get a lot of spam comments? If so how do you reduce it, any plugin or anything you can advise? I get so much lately it’s driving me insane so any help is very much appreciated.

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