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उपस्थित हूँ तुम्हारे जीवन की देहरी पर

आज अर्पिता श्रीवास्तव की कविताएँ. Stream of consciousness की इस युवा कवयित्री में इक तरह की अनगढता है और सहजता जो सायास फॉर्मूला कविता के इस दौर में अपनी ओर आकर्षित करती है. आज प्रस्तुत हैं उनकी चार कविताएँ- जानकी पुल.



१.
डूबना

सहज नहीं होगा
सांसों का आवागमन
रुद्ध कंठ के स्वरों का आरोह-अवरोह
देह की हर मुद्रा में
संचित होगी अन्यमनस्कता..
अभिव्यक्त होगा अनमनापन..
जैसे
खेतों के बीच गुजरती बयार भी
धान की बालियों का खुलकर
डोलना अवरुद्ध करती है
जैसे
बारिश की हल्की फुहार भी
भिगोकर रुखा कर जाती है मन की क्यारी…..
हाँ!!
इतना आसान नहीं होगा
तुम्हारे स्पर्श की स्निग्धता को
संपूर्णता में सोख पाना…
समो लेना तुम्हें रक्त की हर बूंद में…
बस
इसी दुविधा में
तन-मन बाँधे
उपस्थित हूँ तुम्हारे जीवन की देहरी पर
कि
दस्तक दे कैसे मैं तुम्हारे प्रेम में
गहरे…
और गहरे डूब जाऊँ…
है आग्रह
तुम दरवाज़ा खोलना तब
जब दे सको उत्तर मेरे इस प्रश्न का
कि–
डूबकर प्रेम में
एक बार
कैसे डूबा जाता है
गहरा और गहरा?
२.
चाहना
चाह आसान पहाड़ी है
चाह में चढ़ना अपनी खूबी है
ऐसी कई चाहकी छोटीबड़ी पहाड़ियों से
घिरी आँखे
ढूंढ़ रही हैं  
उस पहाड़ी को
जिसके शिखर
बादल के धवल,
चलायमान
गुच्छों से आवृत ह़ो
उनमे
अपने में
समोने की
बढ़ कर
समेट लेने की
खूबी ह़ो.
कई आवृतियों में
घने से घनतर
होकर भी
बरस जाने की
तरलता ह़ो.
उनकी
सघनता में
ऊष्मा ह़ो,
ऊर्जा ह़ो
अपने में
अवगाहन की
 
      

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12 comments

  1. तुम्हारी कविता जेसे गहरा समंदर और उसमे सीप तलाशती तुम्हारे भीतर की स्ती , और शव्दों की एक नई परिभषा गढती तुम्हारी अभिव्यक्ति
    करती हैं पाठकों से माग पढ़ो मुझे बार बार और खो जाओ उन इस्मर्तियो
    में जो हो सकती हैं कभी तुम्हारी भी ……………मेरी शुभकामनाएँ लगातार लिखते रहने के लिए और अपना एक अलग मुकाम बनाने के लिए

  2. अर्पिता जी के इस रंग से पहली दफ़ा परिचित हो रहा हूँ… बहुत खूब लिखती हैं…

  3. बहुत गहरे अर्थों वाली कवितायेँ, सो सहज होने के सत्रह पाठकीय धैर्यता की मांग करती है, महेश जी से सहमत. अर्पिता दी जिस तरह की कविता लिखती हैं, वह एक पाठ में बहुत काम खुल पाती है. बधाई उन्हें और आगे और भी उम्मीदें बढ़ गयी हैं, प्रभात जी आपका धन्यवाद.

  4. कभी-कभी कुछ पंक्तियां…अर्पिता जी की…पहले पढ़ीं ज़रूर हैं.. लेकिन इस तरह एक साथ …आज ..मिलीं हैं…महेश वर्मा जी की बात को ही दोहराना ठीक रहेगा …. जब सब कुछ दिन-ब-दिन दुरूह होता जा रहा है…ऐसे में..अर्पिता जी की कविताएं अपने गहरे अर्थों के साथ अनौपचारिक रूप से प्रभावित करती हैं। आभार ।

  5. Bhaavnaon ka aaveg
    bhaavnaon men dubo gaya….badhai Arpita aur aabhar Prabhat ji….

  6. arpita , in sundar kavitaaon ke liye badhai… sahaj aur sundar kavitaen ! Prabhat ji , aapki is post ne vishesh dhyaan aakarshit kiya ..
    yuva kavyitri ko salaam!

  7. अर्पिता की कवितायें पहले भी पढीं थीं लेकिन यहाँ इस तरह पढ़ने में जो रूपान्तर है वह ज्यादा धैर्यपूर्वक पठान की मांग कर रहा है . ये वे कवितायें हैं जो दूसरी तीसरी बार पढ़ने पर अपनी काव्यात्मकता और अर्थवत्ता को पाठक के भीतर स्थापित करती हैं . उनके लिखने में जो बढ़त है वह और आश्वस्त करती है . एक अनौपचारिकता और बिना किसी मुद्रा के अपनी बात कह जाना जो इन दिनों दुर्लभ हो चला है(जो बात आपने कही भी है)..इसके लिए भी अर्पिता को बधाई दी जानी चाहिए . कवि को शुभकामनाएं आपके लिये
    आभार कि आप ऐसी कवितायें सामने लेकर आये .

  8. This comment has been removed by the author.

  9. संभावनाओ की
    अनंत सीढियों पर
    पग रखते-धरते, संभलते
    आँखें सब बातों पे
    गौर करती हैं

  10. Alag dhang, moulik svar! Bhinn anubhutian jagane vaali kavitayen… BADHAI!

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