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अरिंदम चौधरी को गुस्सा क्यों आता है?

मैनेजमेंट गुरु अरिंदम चौधरी ने दिल्ली प्रेस की प्रसिद्ध सांस्कृतिक पत्रिका कारवां(the caravan) पर मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया है, वह भी पूरे ५० करोड़(500 मिलियन) का. कारवां के फरवरी अंक में सिद्धार्थ देब ने एक स्टोरी की थी अरिंदम चौधरी के फिनोमिना के ऊपर. अरिंदम iipm जैसे एक बहुप्रचारित मैनेजमेंट संस्थान चलाते हैं, अरिंदम चौधरी फ़िल्में बनाते हैं, अरिंदम चौधरी कई भाषाओं में संडे इंडियन मैग्जीन निकालते हैं(हालाँकि आज तक यह समझ में नहीं आया कि क्यों निकालते हैं), जिसके तेरह संस्करण निकलते हैं, अरिंदम चौधरी टीवी पर विज्ञापन में आते हैं और समाज को बदलने का आह्वान करते हैं. उनको अर्थशास्त्री के रूप में भी प्रोजेक्ट किया जाता है उन्होंने दो बेस्टसेलर्स भी लिखे हैं- The Great Indian Dream तथा Count Your Chickens Before They Hatch. आर्थिक पत्रिका 4ps का तो ज़िक्र करना ही मैं भूल गया था. इसके अलावा इनकी कंपनी प्लानमैन का मीडिया डिविजन बड़े पैमाने पर विस्तार कर रहा है.  पोनी टेल बांधने वाले और स्टाइलिश चश्मा पहनने वाले अरिंदम खुद को स्टाइल आइकन के रूप में प्रोजेक्ट करते हैं. विज्ञापनों और उनकी पत्रिकाओं के माध्यम से बार-बार यह बताया जाता है कि अरिंदम को नई पीढ़ी की कितनी चिंता है, अरिंदम चौधरी किस तरह उनको सफलता के शिखर पर पहुँचाने का हुनर जानते हैं. अरिंदम चौधरी ने पिछले एक दशक में खुद को बहुत बड़े ‘ब्रांड’ में बदल लिया है. ऐसे ब्रांड में जिसके काम से अधिक जिसका नाम चमकता है. जिनके बड़े-बड़े दावों के पीछे के सच को कोई जानने की कोशिश नहीं करता, लेकिन लोग जानना चाहते हैं कि युवाओं को सफलता के गुर सिखाने वाले इस सुदर्शन युवा की सफलता का आखिर क्या राज़ है.
सिद्धार्थ देब ने कारवां की अपनी स्टोरी में अरिंदम चौधरी के मिथ को समझने की कोशिश की है. इसमें कोई संदेह नहीं कि उनका यह लेख पूरी तरह से बातचीत पर आधरित है, वह किसी के प्रोमोशन के उद्देश्य से नहीं लिखा गया है बल्कि पागलपन की हद तक अपने प्रोमोशन में लगे एक व्यक्ति पर कुछ मजाहिया अंदाज़ में लिखा गया है. उन्होंने तथ्यों के आधार पर लिखा है कि देश के नौ शहरों में iipm के ब्रांच हैं, विदेशों में उनके संस्थान हैं. लेकिन लेखक ने अनेक हवालों से यह लिखा है कि वास्तविकता यह है कि यह संस्थान विद्यार्थियों को एडमिशन से पहले बड़े-बड़े सपने दिखता है लेकिन उनसे किए गए छोटे-छोटे वादे भी पूरे नहीं करता, मसलन छात्रों को लैपटॉप देना. इस स्टोरी की यही खासियत है कि इसमें अरिंदम चौधरी के विभिन्न कार्यों के चमकदार पहलुओं को उनके अंधेरों के साथ दिखाया गया है. शायद यही अँधेरा उनको खल गया है.
दुर्भाग्य की बात यह है कि अरिंदम चौधरी खुद मीडिया हाउस चलाते हैं, पत्रिकाएं निकलते हैं लेकिन अभिव्यक्ति की थोड़ी सी आज़ादी को बर्दाश्त नहीं कर पाते. भाषा की थोड़ी सी चुहल को झेलना नहीं चाहते, उसको वहीं दबा देना चाहते हैं. क्या वह यह नहीं समझते कि इस तरह के लेख स्रोतों के आधार पर लिखे जाते हैं. दरअसल वे उन लोगों में हैं जो प्रोमोशन और पत्रकारिता को एक समझते हैं. यह पत्रकारिता का नया दौर है, जिसमें कमाई को सबसे बड़ा फोर्मुला माना जाता है. अरिंदम चौधरी मीडिया में ऐसे ही आइकन के रूप में उभरे हैं.
हालाँकि इस मुकदमे में उन्होंने पेंगुइन इण्डिया और गूगल को भी लपेटा है क्योंकि पेंगुइन से अरिंदम पर किताब आने वाली है जिसके स्रोतों का हवाला लेख में सिद्दार्थ देब ने दिया है. यह भी लगता है कि जिस तरह से प्रचार-प्रसार के माध्यम से खुद को प्रोजेक्ट करने के लिए अरिंदम चौधरी जाने जाते हैं, तो यह मुकदमा भी प्रचार पाने का एक तरीका हो सकता है. बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा. इसमें कोई शक नहीं कि एक साथ कारवां जैसी पत्रिका, पेंगुइन जैसे प्रकाशक को मुक़दमे में घसीट कर अरिंदम चौधरी ने प्रचार का एक बहुत बड़ा मौका पा लिया है, जिसके वे माहिर खिलाडी माने जाते रहे हैं.     
 
      

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5 comments

  1. अरिंदम का विरोध के बावजूद पहले सिद्धार्थ,फिर आप और अब हम पेंग्विन से आनेवाली किताब की पब्लिसिटी तो बढ़ा ही रहे हैं न।.यही तो मास मीडिया की बिडंबना है कि हम विरोध करते हुए भी उसके पक्ष में एक आधार तैयार कर रहे होते हैं।

  2. अरिंदम चौधरी मीडिया माफिया है। वो तमाम मीडिया हाउस को विज्ञापन देकर उनकी जुबान बंद रखने की कोशिश करता है और होते भी हैं। संभव हो कि दिल्ली प्रेस को वो साध नहीं पाया हो और स्टोरी आ गयी। मैंने पहले भी लिखा था कि अरिंदम चौधरी पर थूकने की मेरी दिली इच्छा है। इससे गलीच और घटिया आदमी मैने नहीं देखा।.

  3. दरअसल ये नए तरह का साम्राज्यवाद है. पत्रकारिता में इस तरह का वायरस बड़ी तेज़ी से पांव पसार रहा है.
    घोर निंदनीय.

  4. Ponytail Arindam Chaudhari is a fraud and has swindled hundreds and thousands of unsuspecting students. He is no management guru and anybody who calls him so dies grave injustice to the word 'guru'. We need to expose such fly-by-night operators who take advantage of the huge gap in the market because the government has abdicated it's responsibility of providing quality higher education to the teeming millions in India. Caravan magazine needs to ge applauded for it's impartial reporting of facts corroborated by many who have been associated with him closely.

  5. अरिंदम शायद प्रचार और पैसे की भूख के सबसे दयनीय 'आइकन' हैं…

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