आज ज़हीर रह्मती की ग़ज़लें. वे नए दौर के संजीदा शायर हैं. ‘कुछ गमे-जानां, कुछ गमे दौरां’ के शायर. अपने समय की विडंबनाएं भी उनके शेरों में हैं तो जीवन की दुश्वारियां भी- जानकी पुल.
1.
इशारे मुद्दतों से कर रहा है
अभी तक साफ़ कहते डर रहा है.
ज़माने भर को को है उम्मीद उसी से
वो ना उम्मीद ऐसा कर रहा है.
बचाना चाहता है वो सभी को
बहुत मरने की कोशिश कर रहा है.
समंदर तक पहुँचने के लिए वो
ज़माने भर का पानी भर रहा है
कहीं कुछ है पुराने ख्वाब जैसा
मेरी आँखों से ज़ालिम डर रहा है
नज़र आता नहीं है वो कहीं भी
हमारा काम कैसा कर रहा है
कोई लम्हा ठहरता ही नहीं है
ज़माना आज कम क्यों मर रहा है.
२.
अब ज़माने से गिला कुछ भी नहीं
कुछ नहीं अच्छा बुरा कुछ भी नहीं
खामुशी में था हुबाबे-बेकराँ
लब हिलाते ही रहा कुछ भी नहीं
क्या कशिश कोताह पैराहन में थी
किसने क्या देखा, दिखा कुछ भी नहीं
आ गए सब लोग अपने रंग में
अब तमाशे में रहा कुछ भी नहीं
वो ही सौदा है वही बाज़ार है
सब पुराना है नया कुछ भी नहीं
तेरे होने से हुए सब रायगाँ
क्या क्या होता है हुआ कुछ भी नहीं
खाली बख्शिश से मेरा दिल भर गया
दे दिया सब कुछ, दिया कुछ भी नहीं
Thoda riyaz kariye . Gazal kahiye..
Kuchh sheron mein khoobiyan hain aur kuchh
sheron mein khaamiyan . jaese is sher mein
ke doosre misre mein doosre `kya` ko dabaa
( ek matra mein ) kar istemaal kiya gayaa hai .
ye sahee nahin hai –
KYA – KYA HOTA HAI HUA KUCHH BHEE NAHIN
Kuchh sheron mein khoobiyan hain aur kuchh
sheron mein khaamiyan . jaese is sher mein
ke doosre misre mein doosre `kya` ko dabaa
( ek matra mein ) kar istemaal kiya gayaa hai .
ye sahee nahin hai –
KYA – KYA HOTA HAI HUA KUCHH BHEE NAHIN
Kuchh sheron mein khoobiyan hain aur kuchh
sheron mein khaamiyan . Jaese is sher mein
doosre ` kya ` ko dabaa ( ek matra mein ) kar
istemaal kiyaa Gayaa hai . ye sahee nahin hai.