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याद आए वे दिन जब अकेला नहीं था

आज अपने हमनाम कवि प्रभात की कविताएँ. कविता समय सम्मान की बधाई के साथ. वे मूलतः कवि हैं, मैं भूलत. जीवन के बीहड़ गद्य की गहरी संवेदना के इस कवि की कविताओं में न जाने क्या है जो मुझे बार-बार अपनी ओर खींचता है. आप भी पढ़िए- प्रभात रंजन



अपनों में नहीं रह पाने का गीत
उन्होंने मुझे इतना सताया
कि मैं उनकी दुनिया से रेंगता आया
मैंने उनके बीच लौटने की गरज से
बार-बार मुड़कर देखा
मगर उन्होंने मुझे एकबार भी नहीं बुलाया
ऐसे अलग हुआ मैं अपनों से
ऐसे हुआ मैं पराया
समुदायों की तरह टूटता बिखरता गया
मेरे सपनों का पिटारा
अकेलेपन की दुनिया में रहना ही पड़ा तो रहूँगा
मगर ऐसे नहीं जैसे बेचारा
क्योंकि मेरी समस्त यादें
सतायी हुई नहीं हैं
विरक्ति
जब तुम विरक्त हुए
तुम्हारे भीतर इस अहसास के लिए
जगह बनाना मुमकिन नहीं रहा होगा
कि तुम विरक्त हो रहे हो
बाद में परिभाषित हुआ होगा कि तुम विरक्त हो
अकेलेपन टूटन असहायता और घुटन ने जब
धीरे-धीरे बंजर किया होगा तुम्हारा जीवन
तुमने जीवन की भूमि बदलने के बारे में सोचा होगा
जीवन के लिए दूसरी भूमि की तलाश में तुमने पायी होगी
यह अकेले आदमी की बस्ती
जिसे कहा जा रहा है विरक्ति
इस झोंपड़ी में
इस झोंपड़ी में इतनी जगह शेष है कि
बीस व्यक्ति खड़े रह सकें यहाँ आकर
मगर इसके वीरान हाहाकार में
मैं किसी को आने नहीं देना चाहता
फिर भी आ ही जाता है कोई न कोई
सूखी घास सरीखी मेरी इच्छा को कुचलता हुआ
कोई भी आ जाता है कोई भी दाना ढूंढती चींटी
सूनी गाय भटकता कुत्ता
मुझे हिचक होती है उनसे मना करने में
यही है अनंत मामलों में मेरे चुप रहने की वजह
शाम
धीमा पड़ गया है सुनने और देखने के कारखाने का संगीत
मंद पड़ गई है पेड़ों की सरसराहट की रोशनी
आपस में मिल गए हैं दुनिया की सभी नदियों के किनारे
पृथ्वी महसूस कर रही है आसमान का स्पर्श
नीले अंधेरे के कुरछुल में रात ला रही है सितारे की आग
पीला फूल चाँद
मैं उस गाय की तरह हो गया हूँ
जिसने बछड़े को जन्म दिया है
या कह लो उस सूअरी की तरह
जिसने पूरे बारह बच्चे जने
और अब उनकी सुरक्षा में डुकरती है
आज मैं एक सूम काले पडरेट को जन चुकी
भैंस के पेट की तरह हल्का हो गया हूँ
या कह लो उस भेड़ की तरह खुश
जिसने जन्मा है काली मुंडी और सफेद शरीर वाले मेमने को
आज ऐसा हुआ है
जिससे मिला है आत्मा को सुकून
कल की रात का चाँद
अभी तक लग रहा है छाती पर गिर रहे
सुलगते कोयले की तरह
पर आज की रात
आत्मा पर झर चुका है
पीले फूल की तरह चाँद
याद
बारिश को याद किया
फुहारों ने भिगो दिया चेहरा
हवा को याद किया
फड़फड़ाने लगी पहनी हुई सफेद शर्ट
आसमान को याद किया
याद आए वे दिन जब अकेला नहीं था
मिट्टी को याद किया
उगने-उगने को हो आया भीतर कुछ
तुम्हें याद किया
बैचैनी से बंद हो गए दुनिया के सभी दरवाजे
सुख दुख
उनकी अपनी किस्म की अराजकता है मेरे भीतर
सिर्फ दुखों की नहीं है
सुखों की भी है
एक कविता पैदल चलने के लिए
1
आषा न हो तो कौन चले पैदल आशा के लिए
आशा न हो तो कौन नदी पार करे आशा के लिए
आशा न हो तो कौन घुसे जलते घर में आशा के लिए
2
जंगल से निकल कर आ रही परछाई
आशा नहीं भी तो हो सकती है
पर कोई समझता है कि वह आशा ही है
पहाड़ से उतरती हुई परछाई
आशा नहीं भी तो हो सकती है
पर कोई समझता है कि वह आशा ही है
गठरी सिर पर धरे जा रही परछाई
आशा नहीं भी तो हो सकती है
पर कोई समझता है कि वह आशा ही है
जो आशा को खोजता फिरता है
उसे दुनिया की हर परछाई में आशा दिखती है
3
पेड़ पर फूटा नया पत्ता आशा का है
ठिठुरती नदी पर धूप का टुकड़ा आशा का है
रेत की पगडंडी पर पांव का छापा आशा का है
तुम्हारे चेहरे को आकर थामा है जिन दो हाथों ने आशा के हैं
दुनिया में क्या है जो आशा का नहीं है
सभी कुछ तो आशा का है
एक सुख था
मृत्यु से बहुत डरने वाली बुआ के बिल्कुल सामने आकर बैठ गई थी मृत्यु
किसी विकराल काली बिल्ली की तरह सबको बहुत साफ दिखायी
और सुनायी देती हुई
मगर तब भी, अपनी मृत्यु के कुछ क्षण पहले तक भी
उतनी ही हंसोड़ बनी रही बुआ
अपने पूरे अतीत को ऐसे सुनाती रही जैसे वह कोई लघु हास्य नाटिका हो
यह एक दृष्यांश ही काफी होगा-जिसमें बुआ के देखते-देखते निष्प्राण हो गए फूफा 
गांव में कोई नहीं था
पक्षी भी जैसे सबके सब किसानों के साथ ही चले गए गांव खाली कर खेतों और जंगल में
कैसा रहा होगा पूरे गांव में सिर्फ एक जीवित और एक मृतक का होना
कैसे किया होगा दोनों ने एक दूसरे का सामना
इससे पहले कि जीवन छोड़े दे
मरणासन्न को खाट से नीचे उतार लेने का रिवाज है
बुआ बहुत सोचने के बावजूद ऐसा नहीं कर सकी
अकेली थी
और फूफा, मरने के बाद भी उनसे कतई उठने वाले नहीं थे
जाने क्या सोच बुआ ने मरने के बाद खाट को टेढ़ा कर
फूफा को जमीन पर लुढ़का दिया
अब रोती तो कोई सुनने वाला नहीं था
बिना सुनने वालों के पहली बार रो रही थी वह जीवन में
इस अजीब सी बात की ओर ध्यान जाते ही रोते-रोते हंसी फूट पड़ी बुआ की
बुआ जीवन में रोने के लम्बे अनुभव और अभ्यास के बावजूद
चाहकर भी रो न सकी
मृतक के पास वह जीवित
बैठी रही सूर्यास्त की प्रतीक्षा करती हुई
इस तरह जीवन को चुटकलों की तरह सुनाने वाली बुआ के जीवन का चुटकला
पिच्चासी वर्ष की बखूब अवस्था में जब पूरा हो गया
कुछ लोग हंसे, कुछ ने गीत गाये,कुछ को आयी रुलायी
बूढ़ी बुआ हमारे जीवन में अभी भी है
उतनी ही अटपटी, उतनी ही भोली, उतनी ही गंवई
मगर खेत की मेड़ के गिर गए रूंख सी
कहीं भी नहीं दिखाई देती हुई
यह बात भी अब तो चार बरस पुरानी हुई
चार बरस पहले
एक सुख था जीवन में
 
      

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17 comments

  1. तुम्हें याद किया
    बैचैनी से बंद हो गए दुनिया के सभी दरवाजे
    सरल और भावपूर्ण।

  2. u realy inspaire us sir

  3. उनकी अपनी किस्म की अराजकता है मेरे भीतर
    सिर्फ दुखों की नहीं है
    सुखों की भी है

  4. प्रभात की कविताएं इधर-उधर पढ़ने मिलती रही हैं और शब्दों के बेहद संतुलित इस्तेमाल से बरबस ही ध्यान आकर्शित करती हैं…कविता समय सम्मान के लिये उत्कृश्ट चयन… कवी प्रभात को बधाई एवं शुभकामनाएं………..

  5. प्रभात की कविताओं में एक बात जो मुझे रोचक लगी कि वे रचना का lineage कम से कम व्यक्त करते हैं, ये इक बड़ी उपलब्धि है इनकी. थैंक्स.

  6. सार्थक , सुन्दर , भावपूर्ण.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.

  7. अलग अलग रंगों की कवितायेँ .एक सुख था कथा शैली में साकार होता दृश्य .कवि को बधाई और आपका शुक्रिया.

  8. samman milne par badhayee… prabhat ji ki kavitaye pahle bhi ham sab padhte aaye hai, yaha ek bar punah dekhne ka awsar mila…aabhar janki-pul ko bhi..,….ramji ballia, u.p.

  9. प्रभात जी की कवितायेँ बहुत पसंद आई ….. कुछ पहले भी पढ़ी हुए थी …….उन्हें सम्मान के लिए बधाई

  10. प्रभात भाई कि कविता से आखरी सांस तक का रिश्ता बना है…आपको और प्रभात भाई को बधाई….!

  11. ek sukh tha.. char baras pahle..sabhi kavitayen bahut sundar.. prbhat ji ko kavita samay samman ke liye hardik badhai.. prbhat ranjan ji abhaar.

  12. behatareen prastuti

  13. इन कविताओं के लिए आभार. प्रभात जी को कविता समय सम्मान के लिए बधाई !!

  14. अलग रंग-ढंग की कविताएं. अच्छी लगती हैं. "आशा न हो तो कौन चले पैदल आशा के लिए / आशा न हो तो कौन नदी पार करे आशा के लिए / आशा न हो तो कौन घुसे जलते घर में आशा के लिए." कविता समय के सही चयन पर प्रभात को बधाई. आभार आपका, इन्हें साझा करने के लिए.

  15. भाई प्रभात को सम्‍मान की बधाई के साथ आपका धन्‍यवाद कि मेरे प्रिय कवि की बहुत ही प्‍यारी कविताएं आपने यहां प्रस्‍तुत कीं। प्रभात के पास जीवनानुभवों का एक बीहड़ संसार है, जो उसकी असंदिग्‍ध सृजनशील प्रतिभा में ढलकर एक विरल काव्‍य संसार की सृष्टि करता है।

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