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परंतु हिटलर ने कुछ नहीं किया

आज रविभूषण पाठक की कविताएँ. रविभूषण की ये कविताएँ हिटलर नाम के उस व्यक्ति को लेकर हैं, जो विचारधारा बनकर फ़ैल गया, जो नायक बनना चाहता था लेकिन इतिहास के सबसे बड़े खलनायकों के रूप में याद किया जाता है. बहुत अलग-सी कविताएँ हैं- जानकी पुल.
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1.
हिटलर मात्र तीन महीना ही माँ के गर्भ में रहा
चौथे महीने हेगेल और फिक्‍टे की प्रेतात्‍माओं के साथ
पांचवें महीने बिस्‍मार्क ,कैसर की राजाज्ञाओं के साथ
फ्रांस के प्रतिशोध से जुड़ा रहा नाभिनाल छठे महीने
सातवॉ महीना कभी डार्विन के साथ
कभी बाइबिल के एक प्रसंग के साथ
जिसमें ईसा के साथ विश्‍वासघात करने वाला कोई यहूदी था
इस विषम यात्रा के बावजूद बच्‍चा सतमासा ही था
कच्‍चे अंग, अंगतंत्रों के साथ
कभी कभी राष्‍ट्र भी सतमासा हुआ करते हैं
बाकी के दो मास पूरा होने में सदियों बीत जाते हैं

हिटलर ने कुछ नहीं किया
कभी यूक्रेन यूराल की विशाल खनिजों ने
कभी साइबेरिया की विशाल परतियों ने
गुरूत्‍वाकर्षण को सही साबित करते हुए
कभी मित्र-राष्‍ट्रों के आगे मांस का कोई टुकड़ा फेंक
कभी समृद्ध यहूदियों की ओर ऊंगली दिखा
कभी बढ़ रहे साम्‍यवादियों के विरूद्ध कनफुसकी कर दिया
परंतु हिटलर ने कुछ नहीं किया
जो किया
मुसोलिनी की वर्दी ने
यूरोप की नामर्दी ने
एक असफल कलाकार का सबसे बड़ा चित्र
जर्मनी, यूरोप और पूरी दुनिया ही लैंडस्‍केप
विचित्र रंगों का घिनौना जादू
कभी रंग के साथ जाति
कभी नस्‍ल कभी धर्म
कभी पुरातत्‍व को रंगों से मटियामेट करता
कभी उद्धत वक्‍तव्‍यों से रंगों को सत्‍वहीन करता
कभी दुनिया को एक ही रंग में कर डालने की चेतावनी देता
कभी इतिहास के किसी घटना को ब्रह्म मानता
किसी पुरूष के आंखों से दिखे रंग को ही रंग मानने की जिद
किसी काले रंग को ही सबसे बड़ा रंग मानने का तर्क
भूरे रंग को सबसे विश्‍वसनीय मानने का आधार
यह था कि ये उसके ही पुलिस का रंग था
और कभी इतिहास से स्‍वस्तिक
और भविष्‍य से खोपड़ी का चित्र मांगता
कभी परंपरा की आड़ी रेखाओं पर
वर्तमान की तिरछी रेखा डाल देता
इतिहास के धड़ पर आज का सिर
अपनी ही ज्‍यामिति
समांतर रेखाओं को मिलाने की जिद
और रेखाओं को रेखाओं से काटने की सनक
फिर छोटे रेखाओं के सामने बड़ा रेखा नहीं खींचता
कभी मार देता छींटा
सुनिर्मित मिनिएचर पर
काली कूंची चलाता
चलाता ही रहता
पहचान मिटने तक ।
कभी पहचान मिटने पर स्‍यापा करता
कभी पुरातत्‍व ,पुराग्रंथ से इतिहास बनाने का रूपक रचता
कभी जर्मन किसानों के हाथ में बंदूक दे देता
और जर्मन कवियों को एक सादी खाली सी किताब
लैबेंस्रॉम वही खाली जमीन थी
मानचित्र में मानचित्र से बाहर
यहीं बसने थे जर्मन दम्‍पतियों को
जर्मन फूलों ,वनस्‍पतियों को
और हिटलर ने बस उनके ही फोटू बनाए ।

4

दसवीं की परीक्षा पास होने पर भी
हिटलर ने अपने किताबों कापियों को सुरक्षित रखा
कला महाविद्यालय मे एडमिशन न होने पर
यहूदियों साम्‍यवादियों को गाली ही नहीं दी
फिर फिर से दसवीं की किताबों को पढ़ा
इतिहास की किताबों को ज्‍यामिति की नजर से
इतिहास कभी बंद गली की तरह दिखा
कभी वर्तुल वृत्‍ताकार
हिटलर ने वृत्‍त की परिधि को खींचकर फैलाया
चार कोनों पर खूंटा डालकर
चलाता रहा हथौड़ा
अब वह साबित कर सकता था कि
इतिहास या तो आयताकार होता है फिर वर्गाकार
फिर रोकर झूंझलाकर वर्ग के चारों समान भुजाओं पर
गिराता रहा आंसू
कभी वह बैठ जाता अपनी ही मिसाईलों पर
मिसाईलों की गति, प्रक्षेपण की शुद्धता पर गर्व करते
साबित करता कि इतिहास रैखीय होता है
कभी अपने ही बनाए गैस गोदाम की
वृत्‍ताकार दीवारों पर संतोष जताता
झुठलाते हुए इस फिकरे को कि इतिहास दुहराया करता।
कभी आर्य जाति की महानता
जर्मन साम्राज्‍य की अवंश्‍यभावी सर्वोच्‍चता पर भाषण देते
इतिहास की चक्रीय गति को महसूस करता
कभी इतिहास को जनता की नजर से
राजा साम्राज्‍य की नजर से देखता
कभी इतिहास हो जाता धुंआ धुंआ
पुरातत्‍व पर बुलडोजर चलाता
अक्षरों को निगल निगलकर खुश होता
झूठ का अनंत अखंड दुहराव
ध्‍वनन अनुरणन इस हद तक कि
झूठ सच की पहचान मिट जाए
फिर राजा झूठ नहीं बोलता का महाजाप
1930 के दशक में हिटलर ने साबित किया कि
इतिहास वह नहीं होता
जो कि वह असल में होता है
बल्कि इतिहास वह होता है
जिसे बनाया जा‍ता है
जिसे बिगाड़ा जाता है
कभी चेकोस्‍लोवाकिया में
कभी स्‍पेन में
कभी पौलेंड में…………

वह किसी से नहीं डरा
न ही फ्रांस से न ही रूस से
कैसर और बिस्‍मार्क की कीर्ति से भी नहीं
साम्‍यवाद के एक रंग से नहीं
ब्रिटेन में सूर्यास्‍त न होने के मुहावरे से भी नहीं
साइबेरिया की सर्दी से नहीं
अपनी नामर्दी से भी नहीं
इटली के मरहम
जापानी तेल की नाकामयाबी से भी नहीं
उसे डर था अपनी ही मां से
उस आया से उस मुहल्‍ले से
जिसमें वह जन्‍मा था
जिसमें वह नंगा घूमता था
तितलियों बकरियों के पीछे
सब जानते थे उसके एकल अंडकोष के विषय में
वह अपनी नामर्दी की कथाओं से केवल डरता रहा……….

 6

ढाई साल का बच्‍चा
मूतता है स्‍वप्‍न में
बनाता है विन्‍दु, वृत्‍त, रेखाचित्र
गांव देश का मानचित्र
हिटलर लेनिन की दुनिया भी
इस दुनिया को सराबोर करता अपनी ही मूत से
बिगाड़ता रेखाएं मानचित्र
राष्‍ट्रों का भूगोल
मूत रहा धड़ धड़ गड़ गड़
उसे क्‍या पता मीनकेम्‍फ बेस्‍ट सेलर रहा है
भींग भींग गलते जा  रहे महात्रासद पन्‍ने
मिट रहा शब्‍द वाक्‍य
दे रहा मसाला
इस टुटपुंजिए कविता को
7
जर्मन समाजवादियों का भूत
सुनाता था हिटलर को
हिब्रू दंतकथाएं ।
मृतक यहूदियों का जिन्‍न
हँसाना चाहता था
हिंदुस्‍तानी अरबी व्‍यंग्‍यकथाएं सुनाकर
जिंदा दफन लेखकों की आत्‍माएं
हवा बनकर
गुदगुदा देना चाहता हिटलर को
असफल होने पर कर रहे बैठक विश्‍व ज्‍योति‍षी
नक्षत्रों ,मौसमों ,हवाओं देवताओं की गतिगणना
मित्र राष्‍ट्रों के वैद्य
बनाते हँसी के इंजेक्‍शन
इथियोपियाई किशोरों के दिल से
ऑस्ट्रियन चुड़ैल चुभोते हिटलर को
प्‍यार का नाटक करते हुए
बताते कामवर्द्धक दवा है यह
हिटलर की हँसी सुनाई पड़ती है
पुराने किसी छोटे से सपने में……
जिसके वृतांत नहीं बस कुछ रेखाऍ हैं दिमाग में
उस हँसी के फोटू गुम हो गए हैं
इतिहास के फटे पन्‍ने में……..

रवि भूषण पाठक

09208490261

 
      

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7 comments

  1. bahut badhiya kvitayen hain.. vishv pridrishy ko deshon kee rajneeti ko vyktiyon kii mahtvakankshaon ko rekhankit karti hain.. bilkul alag.. pahli baar padhi hain maine aisi kvitayen.. bahut badhai

  2. कविता बहुत अच्छी है, खासकर अंतिम हिस्सा. कहीं-कहीं इतिहास बोध पर इतिहास की डीटेल्स हावी हो गयी लगती हैं.

  3. बेमिसाल…….,द्वितीय विश्‍व युद्रध का पूरा इतिहास लिख दिया इन कविताओं में.

  4. addhut.

  5. अदभुत हैं ये कवितायें …इतिहास , वर्तमान और भविष्य को एक साथ पिरोती हुई …बेहतरीन ..बधाई आपको भाई

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