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जब मैं तुम्हारी गोद में सिर रखकर लेटा था कॉमरेड!

19 वीं शताब्दी के कवि वाल्ट व्हिटमैन को कुछ अमेरिका का सबसे महान कवि मानते हैं, कुछ दुनिया का. मुक्तछंद के इस प्रवर्तक कवि की कविताओं का हिंदी अनुवाद प्रकाशित हुआ है ‘मैं इस पृथ्वी को कभी नहीं भूलूँगा’ शीर्षक से. बेहतरीन अनुवाद दिनेश्वर प्रसाद जी का है, जिनका हाल में ही निधन हुआ. उसी संकलन से कुछ चुनी हुई कविताएँ- जानकी पुल.
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1.
मैं जिससे प्रेम करता हूं
मैं जिससे प्रेम करता हूं, कभी-कभी उसके प्रति क्रोध से
भर जाता हूं इस डर से कि मैं प्रतिदान-रहित प्रेम उड़ेल रहा हूं,
किंतु अब मैं सोचता हूं कोई भी प्रेम प्रतिदान रहित
नहीं होता, इस या उस रूप में उसकी अदायगी निश्चित है,
(मैं एक व्यक्ति से उत्कट प्रेम करता था और
मेरे प्रेम का प्रतिदान नहीं मिला,
तब भी उसी के कारण मैंने इन गीतों की
रचना की.)
2.
मैं वह हूँ जो प्रेम से पीड़ित है
मैं वह हूँ जो कामुक प्रेम से पीड़ित है;
क्या यह पृथ्वी आकर्षण से खिंच रही है?
या सभी पदार्थ पीड़ा से, सभी पदार्थों को
आकर्षित नहीं करते हैं?
वैसे ही मेरी यह देह उन सबको जिनसे मैं मिलता
या जिन्हें जानता हूं.
3.
सुनता हूं यह आरोप मुझ पर लगाया गया था
सुनता हूं यह आरोप मुझपर लगाया गया था कि
मैं संस्थाओं को नष्ट करना चाहता था,
किंतु वास्तव में मैं न तो संस्थाओं के पक्ष में हूं,
न विपक्ष में,
(सच में, भला उनसे कौन-सी समानता है?
या उनके विनाश में कौन-सी?)
मैं तो मैनहट्ट और इस राज्य के प्रत्येक नगर में
केवल भीतरी प्रदेश और समुद्र तट स्थापित करूँगा,
और मैदान और जंगलों, और पानी में गड्ढा बनाने वाले
प्रत्येक छोटे और बड़े नौतल पर,
बिना भवनों या नियमों या संरक्षकों या किसी
बहस के,
साथियों के बहुमूल्य प्रेम की संस्था.
4.
जब मैं तुम्हारी गोद में सिर रखकर लेटा था कॉमरेड!
जब मैं तुम्हारी गोद में सिर रख कर लेटा था कॉमरेड!
मैंने जो आत्मस्वीकृति की थी, मैंने जो तुमसे कहा था, वह
फिर से शुरु करता हूं,
मैं जानता हूं कि मैं अशांत हूं और दूसरों को अशांत कर देता हूं
मैं जानता हूं कि मेरे शब्द खतरनाक, प्राणान्तक हथियार हैं,
क्योंकि मैं शांति, सुरक्षा और सभी निश्चित नियमों
का सामना उन्हें अनिश्चित बनाने के लिए करता हूं,
यदि सबने मुझे स्वीकारा होता, उसकी अपेक्षा में अधिक
दृढ़ हूं, क्योंकि सबने मुझे नकारा है,
मैं न तो अनुभव, सावधानियों, बहुमत, न ही उपवास
की चिंता करता हूं और न कभी चिंता की है,
और जिसे नरक कहा गया है, मुझे उसका भय
बहुत कम या कुछ भी नहीं है,
और जिसे स्वर्ग कहा गया है, मुझे उसका प्रलोभन
बहुत कम या कुछ भी नहीं है:
प्रिय कॉमरेड! मैं यह स्वीकार करता हूं कि इस बात की
न्यूनतम धारणा के बिना कि हमारा गंतव्य क्या है,
अथवा हम विजयी होंगे या पूर्णतः दमित और परास्त,
मैंने तुमसे अपने साथ आगे बढ़ने का आग्रह किया है.
5.
अपने द्वार बंद मत करो :
 
मेरे लिए अपने द्वार बंद मत करो अहंकारी पुस्तकालयो!
क्योंकि जो तुम्हारे परिपूर्ण खानों में नहीं था, 
किंतु जिसकी ज़रूरत सबसे अधिक थी,
मैं वही ले आया हूँ.
मैंने युद्ध से सीधे-सीधे उपजी एक पुस्तक लिखी है.
मेरी पुस्तक के शब्द कुछ नहीं; उसका विचलन ही सब कुछ है,
एक भिन्न प्रकार की पुस्तक, जिसका न तो दूसरी 
पुस्तकों से संबंध है, जो न बुद्धि से अनुभूत है, 
किंतु उसकी असंख्य व्यंजनाएं हर पृष्ठ पर 
रोमांचित करने वाली होंगी.


 
      

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6 comments

  1. दिनेश्वर प्रसाद द्वारा अनूदित वाल्ट व्हिटमैन की कविताओं का संकलन निश्चित ही पठनीय और संग्रहणीय होगा ! सूचित करने और कविताओं की बानगी प्रस्तुत करने के लिए आभार !

  2. शुक्रिया प्रभात जी अनुवाद उपलब्ध करवाने के लिए..

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