Home / ब्लॉग / संवेदना को मार रही है अपनी भाषा में अत्याचार की आवाज़ !

संवेदना को मार रही है अपनी भाषा में अत्याचार की आवाज़ !

असद जैदी का नाम हिंदी कविता में किसी परिचय का मोहताज नहीं है. अपनी स्पष्ट राजनीति, गहरी संवेदना और तेवर के लिए अलग से पहचाने वाले इस कवि को पढ़ना अनुभव की एक अलग दुनिया से गुजरना होता है. आज इण्डिया हैबिटेट सेंटर में शाम सात बजे ‘कवि के साथ’ के आयोजन में उनको सुनना आह्लादकारी रहेगा. फिलहाल मैं अपनी पसंद की कुछ ‘असद कविताएँ’ आपको पढ़वाता हूं- जानकी पुल.
=====================

1.
अनुवाद की भाषा
अनुवाद की भाषा से अच्छी क्या भाषा हो सकती है 
वही है एक सफ़ेद परदा 
जिस पर मैल की तरह दिखती है हम सबकी कारगुजारी 

सारे अपराध मातृभाषाओं में किए जाते हैं 
जिनमें हरदम होता रहता है मासूमियत का विमर्श 

ऐसे दौर आते हैं जब अनुवाद में ही कुछ बचा रह जाता है 
संवेदना को मार रही है 
अपनी भाषा में अत्याचार की आवाज़ !
2.
कला-दर्शन
1

सरोज के लिए योग्य वर खोजना आसान नहीं था
ब्राह्मणत्व की आग से भयंकर थी कविता की आग
अन्त में कवि अमर हो जाता है एक पिता रोता पीटता
मर खप जाता है 

2

हत्या तो मैं करूँगा हत्या तो मेरा धंधा है
मुझे ख़ून चाहिए ख़ून ! नाटक बिना ख़ून के
नहीं खेला जा सकता
अगर अब से औरतों का नहीं तो
बच्चों का ख़ून : तुम लोग रंगमंच चाहते हो
और एक ख़ून देकर चीखने लगते हो
न तुम अपनी विडम्बना को जानते हो
न मेरी कला को
जाओ घर पर माँएँ तुम्हारा इन्तज़ार करती होंगी

3

मेरी क़मीज़ पर घी का दाग़ देखकर
तुम मुझे साहित्य से निकालना चाहते हो
कहते हो हलवाई का बेटा कभी कहानीकार
नहीं बन सकता
मैं आपकी मण्डली का सदस्य होना भी नहीं चाहता
मैं तो मोक्ष की तलाश में हूँ

3.
ताला

जो सभ्यता
तालों की ताकत पर टिकी है
लटकता है एक रोज़ उस पर
एक बहुत बड़ा ताला
4.
एक ग़रीब का अकेलापन

एक ग़रीब का अकेलापन
उसके ख़ाली पेट के सिवा कुछ नहीं
अपनी दार्शनिक चिन्ता में
दुहराता हूँ मैं यही एक बात
5.
दिल्ली की नागरिकता
(विश्वनाथ और हरीश के लिए )

जैसी पाँचवीं कक्षा में गणित मेरे लिए वैसी इस शहर में भीड़ थी

फ़्लैशबैक ख़त्म हुआ । बारिश में भीगता एक रोज़ चला जाता था
कि एक भली औरत ने मुझे एक छाता दिया जो मैंने ले लिया
बिना कुछ बोले अंत में एक दिन एक मक़ाम पर हम विदा हुए

कहिए श्रीमान कैसे हैं ? यह एक दोस्त का ख़त था शहर के
दूसरे कोने से

मैं वहाँ गया
गलियों में बदबू थी अँधेरा कुछ नहीं कहता था
उस दोस्त ने दाँत चमकाए
और मुझे प्यार से खाना खिलाया
वहाँ की हर चीज़ मेरा मुँह देखती थी
हमने थॊड़ी शराब पी ली रेडियो भर्रा रहा था
फटे गले से कोई गाता जाता था
अचानक एक विश्वास मुझमें आने लगा चाहे कुछ भी हो
मैं अन्न्तकाल तक ज़िन्दा रहूँगा

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम

आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात …

7 comments

  1. Sampaadak jee, Dhanyawaad!

  2. 'kamaal" hee bus ek shabd hai Asad ke liye

  3. Asad Zaidi ki kavitayen man ke bheetar utar jaati hain.

  4. Asad zaidi ko padhhana hamesha hi flash back me jane jaisa lagata hai,.. ek andheri gali me ek timtimata hua diya hai, apne me kai surajon ki roshani chhupae, asad ji ka kavita sansar.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *