२०१३ के पचास हजार डॉलर वाले डीएससी पुरस्कार के लिए शॉर्टलिस्ट की गई तेरह पुस्तकों की सूची में एलिस अल्बिनिया की पुस्तक ‘लीलाज़ बुक’ भी है. महाभारत की कथा को आधार बनाकर लिखे गए इस उपन्यास पर यह मेरा लिखा हुआ लेख- प्रभात रंजन
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इस समय अंग्रेजी में एक बेस्टसेलर उपन्यास ‘लीलाज़ बुक’ की खूब चर्चा है. कई कारण हैं. सबसे बड़ा कारण यह कि यह एक विदेशी लेखक(लेखिका) एलिस अल्बिनिया द्वारा लिखी गई है. उसके इस पहले उपन्यास की दूसरी खासियत यह है कि उस विदेशी महिला का यह उपन्यास भारत के बारे में है. एक और कारण है चर्चा का कि यह उपन्यास इंग्लैंड से पहले भारत में रिलीज की गई, और ज़ल्दी ही बेस्टसेलर बन गई. वैसे एलिस अल्बिनिया ने इससे पहले ‘एम्पायर्स ऑफ द इंडस’ लिख कर खासी प्रसिद्धि बटोरी थी, वह किताब सिंधु नदी के उद्गम की ओर की गई यात्रा को लेकर है, उस सिंधु नदी के उद्गम की ओर की गई यात्रा को लेकर जो दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में रही है. हमारे देश का जो ‘प्राचीन’ पहलू है उसमें विदेशी लेखकों की खासी दिलचस्पी रहती है क्योंकि ‘वेस्ट’ में अब भी भारत की छवि ‘एक्जाटिक’ ही बनी हुई है. किताब पश्चिम में खूब पढ़ी-सराही गई.
‘लीलाज़ बुक’ इस लेखिका का पहला उपन्यास है. और भारत की ‘प्राचीनता’ को लेकर लिखी गई अपनी पहली किताब की सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने इस बार उस प्राचीनता में आधुनिकता का भी तड़का लगा दिया है. यानी इसमें कहानी तो आधुनिक दिल्ली के पारिवारिक जीवन की कही गई है लेकिन शैली ‘प्राचीन’ गाथा ‘महाभारत’ की अपनाई गई है. कुछ-कुछ उसी तरह जिस तरह से श्याम बेनेगल ने ‘कलयुग’ फिल्म में अपनाई थी. लेकिन वह तो केवल दो व्यापारिक परिवारों की कहानी थी. ‘लीलाज़ बुक’ की कहानी कुछ अधिक व्यापक है, कुछ अधिक समकालीन सन्दर्भों को समेटे हुए. सूत्रधार गणेश ही हैं. लीला और उसके परिवार एक शादी के बहाने जुटते हैं और उनके परिवारों, जिंदगियों की कहानियों के सूत्र खुलते-जुड़ते चले जाते हैं. उसके बहाने दिल्ली की संस्कृति के नए-पुराने द्वंद्व उजागर होने लगते हैं. कहानियां एक-दूसरे से जुड़ती चली जाती है. ठीक उसी तरह जैसे लीला का परिवार देश-विदेश में बिखरकर भी कहीं न कहीं एक सूत्र में बंधा रह जाता है.
इसके पात्रों में महाभारत के पात्रों के रंग देखे-पढ़े जा सकते हैं. कथानायिका लीला भी महाभारत की गंगा की तरह अपने पति से अपने अतीत के बारे में कुछ भी बताने से मना कर देती है, उसकी बहनों के चरित्र में अम्बा और अम्बालिका की छवि देखी जा सकती है. उपन्यास में एक समकालीन लड़की है, लीला की बेटी भारती जो कहती है कि उसे इससे कोई परेशानी नहीं होगी अगर उसके एक समय में ५ बॉयफ्रेंड हों. इसी तरह संबंधों के उसी तरह के गुप्त रहस्य हैं, उत्तराधिकार की चर्चा है. लेकिन सब दिल्ली के समकालीन जीवन को कथात्मक रूप देने की कोशिश की तरह है. एकदम पारंपरिक किस्सागोई की शैली में. उपन्यास बहुत रोचक और पठनीय है और वह सारा मसाला इसमें है जिसने औपनिवेशिक-काल से लेकर आज तक भारत की छवि का निर्माण किया है-एक्जाटिक छवि.
लेकिन एक बात है जब कोई विदेशी भारत के बारे में लिखता है तो उसके पीछे पूरा रिसर्च, पूरी तैयारी करता है. एलिस इस उपन्यास को लिखने से पहले दिल्ली में रहने लगी थी. उन्होंने दिल्ली के कम से कम उच्चवर्गीय समाज को अच्छी तरह देखा, समझा और उसके खोखलेपन को बहुत अच्छी तरह से पकड़ा है. यह अलग बात है कि समाज के दूसरे तबकों के बारे उनका नजरिया वही है जो उच्चवर्गीय समाज की नज़रों में है. महाभारत के बारे में लेखिका का कहना है कि जब वह १३ साल की थीं तभी उन्होंने महाभारत के बारे में टीवी पर एक कार्यक्रम देखा था. तभी से उनको महाभारत को लेकर कुछ करने का मन था. बरसों बाद जब वे भारत आई तो यह उपन्यास उनके अंदर कुलबुलाने लगा.
वैसे यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि इस समय भारत अंग्रेजी पुस्तकों का सबसे बड़ा बाज़ार है. इसलिए भारत-केंद्रित विषयों को लेकर लिखने का चलन बढ़ा है, भारत की महानता दिखाने वाले विषयों का. चाहे वह महानता अतीत की हो या भविष्य को. इसी साल स्वीडन के लेखक जाक ओ याह का उपन्यास आया था ‘वंस अपोन ए टाइम इन स्केंडेनिविस्तान’, जिसमें यह कल्पना की गई थी कि भविष्य में एक दौर ऐसा आएगा कि जब यूरोपीय देशों में भारत का दबदबा होगा. एक तरह अतीत का गौरव-गान है तो दूसरी ओर भविष्य की महान कल्पनाएँ, इनके बीच भारत-केंद्रित लेखन का बाजार बढ़ रहा है.
लेख अच्छा है.
भारत में अंग्रेजी पुस्तकों के बढ़ते प्रभाव और बाज़ार के आधिपत्य ने कई विदेशी लेखकों को प्रभावित किया है..अच्छा लेख है..