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बहन के सहारे भाई खोजते रहे जीवन की नायिकाएं

आज भाई दूज पर कुछ कविताएँ बहनों के लिए. कवि हैं प्रेमचंद गाँधी- जानकी पुल.
बहन
बहन
मां की कोख से
पैदा हुई लड़की का ही नाम नहीं है
उस रिश्‍ते का भी नाम है
जो पुरुष को मां के बाद
पहली बार
नारी का सामीप्‍य और स्‍नेह देता है
बहन
कलाई पर राखी बांधने वाली
लड़की का ही नाम नहीं है
उस रिश्‍ते का भी नाम है
जो पीले धागे को पावन बनाता है
एक नया अर्थ देता है
मां
पुरुष की जननी है
और पत्‍नी जीवन-संगिनी
पुरुष के नारी-संबंधों के
इन दो छोरों के बीच
पावन गंगा की तरह बहती
नदी का नाम है
बहन
प्रेम में बहन : दो कविताएं 
एक
उसके होने से ही संभव हुईं
कुछ अधूरी प्रेम कथाएं
कैशोर्य से जवानी तक
भाई की रोमांटिक दुनया में
आती-जाती रहीं बहन की सहेलियां
बहन के सहारे भाई
खोजते रहे जीवन की नायिकाएं
बहन के नाम पर उसकी सखियों को
दिखाते रहे सिनेमा
सब कुछ जानती-बूझती बहन
किसी दिन खोल देती रहस्‍य कि
भइया, वो तुम्‍हारे लायक नहीं कि
वैसे तो ठीक है लेकिन
मेरी भाभी होने के गुण नहीं उसमें कि
इसके मां-बाप बहुत दकियानूस हैं  
और यह तो बेवकूफ़ इतनी कि
घर वालों के कहने पर
कहीं भी कर लेगी शादी
ना जाने कितनी प्रेम कथाओं में
बहन ने बचाया हमें
और संभल गये हम
दिल टूटने के ठीक पहले
सच्‍ची दोस्‍त जैसी बहन के कारण
बहन की कॉपी-किताबों के बहाने
ना जाने कितने प्रेम-पत्र पहुंचाए हमने
संभावित प्रेमिकाओं की तलाश में
कई जगह बचे हम फ़जीहत और मार से
सिर्फ़ बहन के कारण
हर सफल प्रेम कथा में बहन ने
पहुंचाई भाई की चिट्ठियां
उसके तोहफ़े
भाई की ज़रा-सी ख़ुशी के लिए
कितनी बार झूठ बोला बहन ने
सिर्फ़ बहन जानती है
बहनों ने सिर्फ़ भाइयों के ही नहीं
अपनी दीदियों के प्रेम में भी
किया है भरपूर सहयोग
एक अच्‍छे जीजा की तलाश में वे
सदियों से बनती आई हैं क़ासिद
जिस किसी प्रेम कथा में रही है बहन
वह रेगिस्‍तान में नख़लिस्‍तान-सी फली है
प्रेम में उसकी अनुपस्थिति का मतलब है
बिना टिकिट सफ़र
लेकिन जिस दिन
बहन चल देती है
प्रेम-पंथ पर अचानक
हमारी जिंदगी में
सुनामी आ जाती है
दो
हमारे बचपन की तमाम कारगुज़ारियों की राज़दार
वो नन्‍ही-नटखट बहन
जिस पर हम छिड़कते रहे अपनी जान
बचाते रहे जिसे हर बुरी नज़र से
जिसकी सुरक्षा में रहे
अंगरक्षक की तरह
न जाने कौन-सी सेंध से
उसके जीवन में दाखि़ल हो जाता है प्रेम
हमारे पूरे वजूद को हिलाता हुआ
सारी मिथ्‍या धारणाओं को तोड़ता हुआ
सुरक्षा के सारे किलों को ध्‍वस्‍त करता हुआ
उसकी हरेक हरक़त लगती है हमें
कोई रहस्‍यमयी संकेत
उसका गाना-गुनगुनाना
नहीं सुहाता हमें
वो चप्‍पल भी पहने तो लगता है
अभी भाग जाएगी कहीं
पता नहीं परिवार की प्रतिष्‍ठा का
वह कौन-सा शीशमहल है
जो उसके कारण गिरने ही वाला है कि
उसके अगले कदम के साथ ही
सात पीढि़यों के चेहरे
अनजानी कालिख़ से पुत जाएंगे
अचानक उसकी जिंदगी
हमें लगने लगती है
एक अंधकारमय भविष्‍य
सिनेमा और कहानी-उपन्‍यास के
वो सारे किरदार याद आते हैं
ना जाने कहां बेच दी जाएगी
बचपन की वह खिलखिलाती गुडि़या
उसके आसपास की सारी दुनिया
हमें लगती है किसी षड़यंत्र में शामिल
अच्‍छे-ख़ासे मासूम-सभ्‍य–सुसंस्‍कृत चेहरे
लगने लगते हैं खानदानी दुश्‍मन
उसे समझाने में हार जाता है घर
शतरंज की बिसात की तरह
पैदल, हाथी, घोड़े, ऊंट सब
एक-एक कर मारे जाते हैं
बच जाते हैं दोनों तरफ़
बस राजा-रानी…
:: :: 
 
      

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15 comments

  1. prem mein bahan.ek samvedansil bhai ke man se likhi gai kavitayen.kalawanti

  2. "पुरुष और नारी संबंधों के/ इन दो छोरों के बीच/ पावन गंगा की तरह बहती/ नदी का नाम है/ बहन।" कितनी खूबसूरत बयानगी में आकार मिला है बहन के इस इन्‍सानी रिश्‍ते हो, प्रेमचंद ने पावन गंगा की उपमा से नवाजा है। वह बहन जो हर भाई को अपनी जीवन-चर्या में कदम कदम पर साथ देती रही है, जब उसकी अपनी जिन्‍दगी में आत्‍मनिर्णय के अवसर आते हैं तब वही घर-समाज और भाईपने का रिश्‍ता कितना अपर्याप्‍त साबित होता है, इसे बहुत असरदार तरीके से व्‍यक्‍त करती प्रेमचंद की ये दो कविताएं अपनी अलग पहचान दर्ज करती हैं। बधाई और शुभकामनाएं।

  3. प्रेम भाई का काव्य बोध मुझे हमेशा एक अलग तरह की आह्दकता में भरता है …
    संजीदा प्रेम से ओत-प्रोत उनके भाव –
    स्त्री पुरुष के संबंधों में प्रगतिशीलता का विशाल मनोरथ ..
    बहुत महत्वपूर्ण है यह करना इन दिनों
    पुरुष वर्चस्व और स्त्री विमर्श की खाई को
    सहज ही
    भारतीय परिवार के संबंधों के बीच बसी गहराई के द्वारा ,.
    पाटने की एक सार्थक कोशिश ….

  4. बहुत से प्रश्न छोड़ गई ये कवितायें…! स्मृतियों की चौखट तक ले गईं ये ऊँगली पकड़कर… हार्दिक बधाई.

  5. Overwhelming!

  6. बहुत ही सुंदर और सटीक कवितायें सर…बधाई
    सुनीता

  7. लेकिन जिस दिन
    बहन चल देती है
    प्रेम-पंथ पर अचानक
    हमारी जिंदगी में
    सुनामी आ जाती है

    ये पंक्तियाँ आते आते अब तक सहज व भावुक सी देखने वाली यह कविता पुरुष पाठक की चेतना पर तमाचे की तरह बरसती है ….बहुत बधाई भाई Prem Chand जी को ..और जानकीपुल को भाई दूज के अवसर पर इस सामयिक कविता को सामने लाने के लिए 🙂

  8. परिवार और निजी जिंदगी में बहन की भूमिका पर लिखी सुन्दर कवितायेँ !

  9. prem chand ji ki kvitaon me jeevan sahj hee mil jaata hai.. bahno ke prti ye unka prem hee hai jo in kvitaon me dhal aaya hai..badhai

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