Home / ब्लॉग / नाटक नहीं होना था, नाटक हुआ

नाटक नहीं होना था, नाटक हुआ

२०१३ के रंग महोत्सव में मंटो की जिंदगी पर आधारित ‘अजोका’ की प्रस्तुति के न होने को लेकर प्रसिद्ध लेखक अपूर्वानंद ने कुछ गंभीर सवाल उठाये हैं और सामूहिक प्रयासों से उसके अक्षरा थियेटर में आयोजित किए जाने के बारे में लिखा. यह महत्वपूर्ण लेख आज ‘जनसत्ता’ में प्रकाशित हुआ है. वहां से साभार- जानकी पुल. 
========================

नाटक नहीं होना था, नाटक हुआ. नाटक नहीं  होना था भारत रंग महोत्सव में, जहां कायदे से उसे होना चाहिए था, हुआ निर्धारित कमानी प्रेक्षागृह से कुछ ही किलोमीटर दूर बाबा खडक सिंह मार्ग पर अक्षरा थियेटर में.

बड़े गर्व से २०१३ के रंग महोत्सव के आरम्भ में बताया गया था कि इस बार मंटो के जीवन और उनकी रचनाओं पर आधारित प्रस्तुतियां महोत्सव का ख़ास आकर्षण हैं.पाकिस्तान का रंग-दल  ‘अजोका’, जो पिछले पचीस साल से भारत आता रहा है, इसी वजह से मंटो की ज़िंदगी पर आधारित अपनी एक प्रस्तुति लेकर आया था. यह प्रस्तुति विशेषकर तैयार की गयी थी इसी महोत्सव के लिए.  ‘अजोका’ भारत आया था राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के आमंत्रण पर, लेकिन मेजबानों ने उन्हें बताया कि वे अभी भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के कारण कोई ख़तरा नहीं उठाना चाहते. उन्हें अंदेशा था कि नाटक होने पर हंगामा होगा और महोत्सव के रंग में भंग होगा. उत्सव  को बचाने के लिए उन्होंने ‘अजोका’ के साथ पाकिस्तान के दूसरे नाट्य दल ‘नापा’ को भी अपनी लाचारी बताई. अजोका और ‘रापा’ के पास उन्हें ‘समझने’ के अलावा चारा भी क्या था?

दिल्ली के पहले इसी महोत्सव के अंग के रूप में जयपुर में चल रहे उत्सव में भी इन नाटकों को होना था. वहां भी ये प्रस्तुतियाँ रद्द कर दी गईं.  अखबारों ने इस घटना को  पहले पृष्ठ के लायक खबर माना.  उनके मुताबिक़ नाट्य विद्यालय की अधिकारियों ने इस निर्णय को ‘दुखद’ बताया लेकिन सफाई में कहा कि वे कुछ नहीं कर सकती थीं क्योंकि यह फैसला सरकार का था और वे एक सरकारी संस्था हैं.

क्या सचमुच वे कुछ नहीं कर सकती थीं ? क्या वे यह नहीं कह सकती थीं कि यह महोत्सव का केन्द्रीय आकर्षण है और इसके सारे टिकट बिक चुके हैं और आयोजकों के लिए इनका प्रदर्शन रद्द करना संभव नहीं है? यह एक तरह से इस महोत्सव के वास्तविक संरक्षकों के, यानी दर्शकों, नाटक देखने के अधिकार का हनन होगा ? अगर उन्हें सरकार ने नाटक न करने को कहा तो क्या वे उन्हें वापस नहीं बता सकती थीं कि ऐसी हालत में उन्हें महोत्सव ही बीच में रोक देना पड़ेगा ? क्या वे सरकार से यह नहीं कह सकती थीं कि किसी गड़बड़ी को रोकने के लिए सुरक्षा देना राज्य का काम है ? और भी, क्या वे यह नहीं कह सकती थीं कि दरअसल सरकार को फिक्र करने की ज़रुरत भी नहीं क्योंकि इस महोत्सव में, और दिल्ली शहर में सैकड़ों रंगकर्मी मौजूद हैं और वे कमानी सभागार और रंग-महोत्सव की हिफाजत कर लेंगे? क्या वे तमाम मंटो-प्रेमियों को सन्देश नहीं भेज सकती थीं कि वे आएं और निश्चित करें कि यह नाटक हो ? लेकिन यह सब जो लिखा गया, उसी समय भारत के विदेश मंत्री का स्पष्टीकरण  भी आ गया कि सरकार ने नाटक के प्रदर्शन के लिए कोई मनाही नहीं की थी. तो फिर क्या यह समझें कि सरकार ने अनौपचारिक  संकेत किया , जिसे नाट्य-विद्यालय की समझदार प्रशासकों ने फौरन समझ लिया? क्या उनमें इतनी हिम्मत भी नहीं बची थी कि वे लिखित निर्देश मांगतीं? अगर सरकार ने मनाही की होती तो ‘अजोका’ के लिए कहीं भी प्रदर्शन करना असंभव था. वह यह जोखिम नहीं ले सकता था कि मेजबान देश की इच्छा के विरुद्ध चोरी-चोरी नाटक कर ले.ऐसा करने पर आगे उसका भारत आनासंदिग्ध हो जाएगा, उसे मालूम है. इसका मतलब सिर्फ एक है कि यह फैसला राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ने खुद लिया, या तो भय के कारण या अचेतन राष्ट्रवाद के कारण.

ये सारे सुझाव अटपटे हैं या असाधारण हैं ? लेकिन असाधारण स्थिति में क्या असाधारण उपाय नहीं किए जाने चाहिए? और नाटक अपने आप में क्या एक अटपटी चीज़ नहीं है ? हम अगर इस महोत्सव और नाट्य विद्यालय के प्रशासन को छोड़ दें तो इस महोत्सव में बने हुए उन सैकड़ों  रंग-कर्मियों और रंग-प्रेमियों का क्या करें जिन्होंने इस घटना पर अखबारों जितनी प्रतिक्रिया भी नहीं दिखाई?

कुछ ने दिल मसोसते हुए एक-दूसरे  को  फोन किए, एक नाराज़गी जताता बयान आया और लगा कि किस्सा ख़त्म हुआ. जैसा इस घटना पर अपने बयान में जैसा विद्यालय कि   एक प्रशासक ने कहा कि “बाकी शो” वैसे ही चलता रहा , मानो उसे चलाने में किसी खास दिलेरी की ज़रूरत  रही हो.

ठीक इसी समय एक सन्देश घूमने लगा. शाहनवाज़ मलिक , रुक्मिणी और  ऋतु ने एक इमेल  भेजा था, “साथियो,इन दिनों राष्‍ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) में 15वां भारतीय रंगमहोत्‍सव चल रहा है। इस महोत्‍सव में पाकिस्‍तान के दो थिएटर ग्रुप अजोकाथिएटर और नापा रेपर्टरी को सआदत हसन मंटो के जीवन पर आधारित नाटक का मंचनकरने के लिए बुलाया गया था, लेकिन आखिरी समय पर उन्‍हें परफॉर्म करने सेमना कर दिया गया। भारत सरकार के सांस्‍कृतिक मंत्रालय ने जहां इसके पीछेसुरक्षा कारणों का हवाला दिया, वहीं आयोजक एनएसडी ने भी खुद को सरकारीसंस्‍था बताकर कोई स्‍टैंड लेने से इनकार कर दिया। 

नतीजतन हमारे पड़ोसी मुल्‍क से आए रंगमंच के कलाकार अपना नाटक किए बगैर वापस जा रहे थे। 

साथियो, यह हमारे मुल्‍क, मंटो और उनके लेखन के लिए बहुत शर्म की बात है। मैंने आजसुबह अपने फेसबुक वॉल पर यह जानकारी अपने मित्रों के साथ साझा की। तत्‍कालही मुंबई में रुक्‍मणि सेन का फोन आया और यह तय हुआ कि उन कलाकारों कोबिना नाटक किए वापस नहीं जाने देना चाहिए।

साथियों, महज एकदिन की भारी मशक्‍कत, मेहनत और भागदौड़ के बाद आखिरकार यह संभव हुआ है किपाकिस्‍तान वापस लौटने से पहले मदीहा गौहर का ग्रुप अजोका थिएटर अपने नाटक, क्यों  है यह गुस्‍ताख” का मंचन करने जा रहा है। यह मंचन शनिवार, शाम छहबजे अक्षरा थिएटर, बाबा खड्ग सिंह मार्ग पर होगा। 

आप लोगों सेगुजारिश है कि सियासी स्‍वार्थों की लड़ाई के इस दौर में कला, सौहार्द्र औरआपसी भाईचारे को जिंदा रखने की इस कोशिश में हमारा साथ दें और शनिवार, शामछह बजे अक्षरा थिएटर जरूर आएं।

….” इस सन्देश के साथ इन तीनों के फोन नंबर भी थे.

ये नौजवान किसी संगठन के अंग नहीं हैं, रंग-समूह के भी नहीं. रंग-जगत में इन्हें कोई नहीं जानता. इनके पास ऐसी कोई आर्थिक ताकत नहीं कि प्रेक्षागृह का किराया दे सकें. लेकिन सब कुछ हुआ. जानते हुए कि एक ‘राजकीय’ संस्था ने अपने मेहमानों की मेहमाननवाजी करने से इनकार किया है और ऐसे ठुकराए मेहमानों का मेजबान बनने के अपने खतरे हो सकते हैं, राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल के करीब स्थित अक्षरा थिएटर के संस्थापक, वृद्ध गोपाल  शर्मण और जाबाला वैद्य ने नौजवानों के इस साहस में हिस्सेदारी का फैसला किया. और जब वे नाटक शुरू होने के पहले अपनी कांपती , मद्धम मुलायम आवाज़ में मेहमान रंग-दल और दर्शकों का स्वागत करने उठे तो लगा कि यह फैसला उनके लिए कुछ ख़ास न था, कि उन्होंने तो इसे एक साधारण सा काम माना था.
सौ लोगों के बैठ सकने की जगह ठसाठस भर गयी थी. प्रेक्षागृह के बाहर ‘अस्मिता’ नाट्य दल के रंग कर्मी पंक्ति बद्ध मुस्तैद थे. ऑल इंडिया स्टूडेंट्स असोसिएशन और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र भी खड़े थे. लोग आते ही जा रहे थे. ध्यान रहे यह बारह घंटे से भी कम की नोटिस और सिर्फ तीन नौजवानों की पहलकदमी पर हो रहा था.
मैंने नाट्य-विद्यालय के किसी अधिकारी, किसी निर्देशक को नहीं देखा. दिल्ली रंगमंच की किसी पहचानी शख्सियत  को भी नहीं. गोया कि जो यहाँ हो रहा था , वह नाटक न था ! मंटो की जन्म-शताब्दी में उन पर पर्चे लिखने और उनके मुरीद बने लोगों को भी नहीं. फिर भी लोग थे. खामोशीसे जगह लेते हुए, बाहर जगह की कमी पर हंगामा न करते हुए, जो अक्सर रंग-महोत्सव में गेट पर दिखाई देता है.
अजोका की मदीहा गौहर शुक्रिया अदा करने उठीं. उन्होंने कहा कि अभी जब वे बोल रही हैं, उससे थोड़ी देर बाद ही कायदे से कमानी में उनकी प्रस्तुति होनी थी. उन्होंने कहा कि वे नाट्य-विद्यालय की मजबूरी समझ सकती हैं, कि  वे बहुत शुक्रगुजार हैं अक्षरा थियेटर की, जिन्होंने यहाँ नाटक करने की इजाजत दी. गोपाल शर्मण ने उन्हें रोका और कहा हमने तो आपका स्वागत किया, इजाजत की बात क्या.
नाटक के पहले का  यह एक खूबसूरत कला-क्षण था. मैंने मन ही मन शाहनवाज़ , रुक्मिणी और ऋतु का , गोपाल शर्मण और जाबाला का शुक्रिया अदा किया कि उन्होंने औरों के साथ मुझे भी  इस लम्हे में हिस्सेदारी का मौक़ा दिया.
लौटते हुए मैं सोच रहा था कि शायद  साहस इतनी भी असाधारण वस्तु नहीं. अपने जीवन-सिद्धांत को जो ठीक से समझते हैं और उस पर यकीन करते हैं, उनके लिए हिम्मत या साहस रोजमर्रा की चीज़ होती है. जो डर जाते हैं, वे उस क्षण में अपने जीवन-सिद्धांत को या तो भूल जाते हैं , या उसे स्थगित कर देते हैं, यह सोच कर कि वे फिर से इसे पा लेंगे. वे बस यह भूल जाते हैं कि जैसे ही वे ऐसा करते है, वे अपने जीवन के नैतिक-सत्व को हमेशा के लिए गँवा देते हैं. फिर उनका अस्तित्व एक छाया मात्र रह जाता है. जब बंगाल में वाम-मोर्चा तसलीमा नसरीन की हिफाजत न कर पाया , तो उसने अपने साथ यही किया. मेरे विचार से नंदीग्राम में उसके फैसले से भी अधिक इस  भीरुता ने  उससे हमेशा के लिए सत्वहीन कर दिया. वैसे ही दिल्ली विश्वविद्यालय की विद्वत-परिषद् ने जब रामानुजन का लेख पाठ्य-सूची से हटा दिया , उसने ज्ञान के बारे में कुछ भी कहने का अपना हक खो दिया. दिल्ली के प्रगति मैदान में कला मेला करने वालों ने जब हुसेन की कृतियों को हटाया तब उन्होंने भी ‘कला’-मेला होने का अधिकार गँवा दिया.
और मैं कला के बारे में भी सोच रहा था. वह कौन सा तत्व है जो कला को कला बनाता है, जिसकी कमी से वह एक सुंदर सजावट भर रह जाती है? वह भी साहस ही है. केदारनाथ सिंह के पंक्तियाँ याद आईं कि शब्द ठण्ड से नहीं मरते,  मरते हैं तो साहस की कमी से.
मंटो को केंद्र में रखते समय नाट्य-विद्यालय क्या यह भूल गया था कि कला वस्तुतः राष्ट्रवाद का प्रतिलोम है , कि वह हमेशा कि ‘नो मैन्स लैंड’ में ही जीवित रह सकती है? यह इत्तफाक है इस राष्ट्रवादी उन्माद के इस क्षण के शिकार मंटो के नाटक हुए. यह कहना इसलिए ज़रूरी है कि संभव है कि महोत्सव में आगे मंटो से जुड़ी प्रस्तुतियों में कुछ आत्म-वीरता का बखान किया जाए. यह साफ़ होना बहुत ज़रूरी है कि नाटक पाकिस्तानी समूह के  होने की वजह से नहीं होने दिए गए, कि सिर्फ इसी वजह से न तो नाट्य-कर्मियों में न नाटक के जुनूनी दर्शकों में खास बेचैनी देखी गयी. अगर थी भी तो उसे कहीं गहरे दफन कर वे बाकी नाटक देखने में  लग गए, मानो कोई  दुर्घटना ही नहीं हुई हो! किसी ने विरोध स्वरूप अपने नाटक की वापसी का अभी तक  ऐलान नहीं किया.
तो फिर मान लें कि कला को उसके राजनीतिक आशय से पूरी तरह खाली कर दिया गया है और अब वह मन को सहलाने वाली क्रिया से अधिक कुछ नहीं रह गयी है ? या यह कि हमारे शिक्षा संस्थान पूरी तरह से साहस-विहीन हो चुके हैं और इस तरह ज्ञान-सृजन कर्ता की अर्हता खो बैठे हैं? या यह कि साहस अब व्यक्तियों में पाया जाएगा, संस्थाओं में नहीं ? इन प्रश्नों के जो भी उत्तर हम दें, दिल्ली में सांस्थानिक  स्थल पर ‘अजोका’ के नाटक के न होने और एक निजी स्थल पर उसके हो पाने के अभिप्राय कहीं अधिक दूरगामी हैं.
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम

आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात …

24 comments

  1. BAHUT ACHCHHA LEKH. PRATIRODH KEE SANSKRITI AUR MOOLYON KO UPHOLD KARNE KEE QHAATIR EK MOOLYAVAAN AUR SASHAKT VAICHAARIK HASTAKSHEP. SHUKRIYA.
    —–PANKAJ CHATURVEDI
    KANPUR

  2. इस प्रयास की जितनी तारीफ की जाये कम है।…..

  3. Hello! I know this is kinda off topic nevertheless
    I’d figured I’d ask. Would you be interested in trading links or maybe guest authoring a
    blog post or vice-versa? My site discusses a lot of the same subjects as yours and I think we could greatly benefit from each
    other. If you’re interested feel free to send me an email.
    I look forward to hearing from you! Terrific blog by the way!

  4. It’s very simple to find out any matter on net as compared to textbooks, as I found this paragraph at this website.

  5. If you want to get a great deal from this paragraph then you have to apply these techniques to your won blog.

  6. Hey! This is my 1st comment here so I just wanted to give
    a quick shout out and say I truly enjoy reading your
    posts. Can you suggest any other blogs/websites/forums
    that cover the same subjects? Thank you!

  7. Remarkable issues here. I am very happy to peer your article.
    Thank you a lot and I’m looking forward to
    touch you. Will you please drop me a mail?

  8. This is really interesting You re a very skilled blogger. I ve joined your feed and look forward to seeking more of your magnificent post.

  9. Yet another thing I would like to talk about is that in place of trying to suit all your online degree programs on times that you end work (considering that people are worn out when they get home), try to obtain most of your lessons on the week-ends and only one or two courses in weekdays, even if it means a little time off your weekend. This is fantastic because on the weekends, you will be more rested along with concentrated upon school work. Thanks alot : ) for the different recommendations I have realized from your website.

  10. Every weekend i used to pay a quick visit this web site, because i want enjoyment,
    for the reason that this this site conations actually nice funny stuff too.

  11. certainly like your website but you need to check the spelling on several of your posts.

    Several of them are rife with spelling problems and I to find
    it very bothersome to inform the truth on the other hand I’ll definitely come back again.

  12. Hello! Would you mind if I share your blog with my
    twitter group? There’s a lot of people that I think would really enjoy your content.
    Please let me know. Many thanks

  13. If you want to get a good deal from this piece of writing then you have to apply these strategies
    to your won weblog.

  14. I am not sure where you’re getting your information, but great topic.
    I needs to spend some time learning more or understanding more.
    Thanks for magnificent info I was looking for this info for my mission.

  15. Thank you for sharing your thoughts. I truly appreciate your efforts and I am waiting for your next post thank you
    once again.

  16. Do you mind if I quote a couple of your articles as long as I provide credit and sources back
    to your site? My website is in the very same area of interest as yours and my visitors would definitely benefit from a lot of
    the information you provide here. Please let me know if this okay with you.
    Many thanks!

  17. Fascinating blog! Is your theme custom made or did you
    download it from somewhere? A design like yours
    with a few simple adjustements would really make my blog shine.
    Please let me know where you got your theme. Many thanks

  18. Unquestionably believe that which you stated. Your favorite justification seemed to be on the net the simplest thing to be aware of.
    I say to you, I certainly get annoyed while people think about worries that
    they plainly don’t know about. You managed to hit the nail
    upon the top and defined out the whole thing without having side-effects , people can take a signal.
    Will likely be back to get more. Thanks

  19. Attractive section of content. I just stumbled upon your site and in accession capital to assert that I get actually loved account your weblog posts.
    Anyway I will be subscribing for your augment and even I achievement you get entry to persistently rapidly.

  20. If you want to increase your familiarity simply keep visiting this web
    site and be updated with the hottest news update posted here.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *