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भोजपुरी वाया भोजपुरिया नेटवर्क


भोजपुरी सिनेमा के पचास साल के बहाने भोजपुरी नेटवर्क पर एक अच्छा लेख लिखा है ‘दिलनवाज’ ने- जानकी पुल.
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कहा जाता है कि भोजपुरी सिनेमा आम आदमी का सिनेमा है। भोजपुरी फिल्मों की संकल्पना में हिंदी सिनेमा से छूटे समुदाय के लिए एक विकल्प का निर्माण करना था। हाशिए में गुमशुदा लोगों का हिंदी सिनेमा की नगरीय कहानियों से रिश्ता नहीं बन सका था। भोजपुरी फिल्मों में कह सकते हैं कि उन्हें अपनापन मिला। किंतु अब वह जनकल्याण से लोभ की दिशा में चला आया है । लाभ के मोहपाश में जकडकर बाजार बनाने में जुट गया है। फिर भी उसे तरीके की परवाह तो होने चाहिए। टिकट दरों में बेतहाशा वृधि से हाशिए के आदमी का मनोरंजन सुख अपहरण हो गया सो अलग । साधारण सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों का शुल्क भी गरीब आदमी की पहुंच से निकल चुका है। विकल्प के रूप में यह बाजार द्वारा भ्रमित होने की राह पकड लेते हैं। निर्धन भोजपुरी भाई को फिल्हाल अपने हालात से समझौता करना पड रहा। चाईना मोबाइल में भोजपुरी गीत व फिल्मों की मेमोरी से काम चला रहा हैं। जिनके पास थोडा रूपया एवं जानकारी रही वो ‘भोजपुरिया सोशल नेटवर्क’ को संवेदना तलाश का मंच बना रहे।
कम एवं कमतर आमदनी वाले समुदाय के लिए अपनी माटी का प्रतिनिधि मनोरंजन विकसित करने की दिशा में भोजपुरी सिनेमा का उदय हुआ। अभिनेता नजीर हुसेन एवं जददन बाई तथा शाहबादी परिवार ने भोजपुरिया समाज के हित में क्रांतिकारी नींव डाली। यह बहुत हद तक अपनी माटी से संवेदना का परिणाम भी थी। भोजपुरी भाषा व संस्कारों को स्थापित करने का एक आंदोलन फिल्मों के साथ चला। भोजपुरी मनोरंजन में स्थानीय संदर्भ निर्णायक रहे। हिंदी भाषी क्षेत्र में भोजपुरी का खूब चलन है । यूं तो भोजपुरी फिल्मों की लोकप्रियता दूर देशों में भी है, फिर भी अब तक यूपी-बिहार की कहानियों से आगे निकल नहीं सकी । साठ के दशक में ‘गंगा मईया तोहे पियरी चढइबो’ से भोजपुरी फिल्म बनाने का चलन शुरु हुआ। भोजपुरी समाज ने इस पहल को तहेदिल से लिया। कथावस्तु में समाज को चिंताजनक विषयों से रू-ब-रू किया गया। कह सकते हैं कि उस समय भोजपुरी सिनेमा ग्रामीण एवं स्थानीय संवेदनाओं से आत्मीय था। संवेदनशील अभिव्यक्ति का यह काल पहले एक दशक तक चला। निश्चित रूप से प्रस्तुति के हिसाब से यह भोजपुरी सिनेमा का स्वर्णिम काल था। शुरूआती सफर की तुलना में आज का सिनेमा गीत-संगीत के मामले में भी उस उच्च स्तर को पा नहीं सका है। पूरा बाजार पोपुलर आडियो-विडियो से पटा पडा है । तरीके का एक भी बमुश्किल से सामने होगा। पुराने जमाने के भोजपुरी गाने बाजार को दुरूस्त करने में महत्त्वपूर्ण रोल निभा सकते हैं। अब का निर्माता संगीतकार को रोमांटिक व आइटम सांग डालने को कहता है। जरूरी नहीं कि गाने का कहानी से कोई सीधा संबंध हो। इस तरह संगीत कमर्शियल अराजकता से पीडित है। इक्कीसवीं सदी में सांस्कृतिक स्मृति से विचलन का संकट है। भोजपुरी फिल्मों का अब का स्वरूप बहुत अधिक उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता। उसे भोजपुरी भाषा एवं सरोकार से वास्ता रखने में रूचि नहीं । माटी से अधिक बाजार की चिंता का आलम ठीक नहीं। विडम्बना तो देखें कि भोजपुरी फिल्म अपना बाजार अपनी जमीन से बाहर तलाश रही । पारिवारिक मनोरंजन का सीमा निर्धारण रहा नहीं। विशेषकर क्षेत्रीय सिनेमा की व्यापक तुलना में इसे हमेशा नसीहत दी जाती रही है। बहुत से मामलों में भोजपुरी फिल्मों को गाली देने की वजह फिल्म का कंटेंट होता है। अनेक लोग बिना देखे ही गाली देने को तत्पर रहते हैं 
भोजपुरी फिल्मों में माटी से वास्ता रखने वाली कहानी का अभाव चिंता का विषय है। भोजपुरी पद्य साहित्य का सकारात्मक स्तर दूसरे माध्यम(सिनेमा) में नहीं आ सका ।  साहित्य की कहानियों का उचित प्रयोग करने में सिने समाज की रूचि नहीं। चलन तो यह भी हो गया कि गानों के तहत कहानी विकसित की जाती है। दरअसल यह लोग रिसर्च करने से विमुख रहकर आसानी से फिल्म बनाने में दिलचस्पी रखते हैं। फिलवक्त का चलन कुछ ऐसा ही बताता है । अधिकांश फिल्मों की कहानी हिट हिंदी फिल्मों की रिपीट वैल्यु से प्रभावित है । पोपुलर ट्रीटमेंट की भोजपुरी फिल्म। प्रेरित होना खराब नहीं लेकिन उससे उत्साहजनक परिणाम देखने को नहीं मिले हैं । भोजपुरी समाज की समस्यायों का निदान लंदन ब्रिज के भव्य लोकेशन में नहीं मिल सकता। कहना होगा कि यह लोग माटी और संस्कारों से वास्ता रखना चाहते हैं।  इसकी व्यापक गूंज मारीशस और मालदीप में देखी जा सकती है । वहां जा बसे बिहारी माटी से वास्ता रखने में अब भी दिलचस्प हैं । भोजपुरी फिल्मकार इनकी सक्सेस स्टोरी को फिल्म का विषय क्यूं नहीं बनाते?
भोजपुरी सिनेमा पर वर्षों से काम कर रहे शख्सियतों के अनुसार यहां घोस्ट निर्देशकों की बडी जमात है । अब के अधिकांश निर्देशक डुप्लीकेट अथवा जाली प्रोफाईल के हैं । भोजपुरी फिल्मों की सबसे अधिक निंदा शब्द प्रयोग को लेकर की जा रही है । यहां ग्लेमर की कमी नहीं पर ग्रामर की कोई संवेदना नहीं । वर्क कलचर का भी अवलोकन करें तो यहां वो भी उत्साहजनक नहीं । स्टार सितारों की यहां खूब चलती है। लेकिन टेकनीकल लोगों का जोरदार शोषण होता है। अधिकांश फिल्मकार घोस्ट प्रतिभाओं का उपयोग कर नाम कमा रहे हैं। एक बडी समस्या वितरक व एक्जीबिटर का एकाधिकार भी समझ आता है।
भोजपुरी फिल्मों की झिलमिल दुनिया में मुक्ति का मार्ग तलाश रहे समाज हित में सकारात्मक बदलाव ‘सोशल नेटवर्क’ से हुआ । भोजपुरी समुदाय ‘सूचना एक्सप्रेस’ मंच का बेहतर प्रयोग कर समुदाय भावना को बढा रहा है। आज के समय इंटरनेट माध्यम से सामुदायिक नेटवर्क कायम करना काफी चलन में है। भोजपुरी समाज भी इसी को अपना रहा है । साइबर स्पेस में भोजपुरी भाषा व समुदाय के ऊपर बहुत सी उल्लेखनीय वेबसाइट्स चल रही है। यह वेब पते भोजपुरी दुनिया से सीधे वास्ता रखने वाले विषयों को जगह देते हैं । समाचार से आलेख फिर छवियां एवं भोजपुरी हलचल सब कुछ मिलेगा यहां । समाचारों की दुनिया में भोजपुरी क्षेत्र के साथ राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय खबरें प्रकाशित होती हैं । इस तरह यहां पर आने वाला भोजपुरिया समुदाय बहुत सी बातों का जानकार हो जाता है । भोजपुरी दुनिया की टाप वेबसाईट  ‘भोजपुरिया डाट काम’ में साहित्य की श्रेणी विशेष रूप से आकर्षक है । इसके अंतर्गत यूजर्स को रचनात्मक गतिविधि से जोडा जाता है। आलेख से लेकर कहानी एवं कविता फिर साहित्य हलचल तथा संगीत को जगह मिलती है। 
आलेख कालम तहत अनिल झा नीरद के लेख आकर्षित करते हैं। लेखकों की सक्रीय भागीदारी बहुत उत्साहजनक है । संस्कृति कालम में भोजपुरिया पहलुओं पर चर्चा मिलेगी । लेखिका सरोज का विशेष आलेख ‘महात्मय खोईंछा’ के संदर्भ में समाज में विवाह-शादी के संस्कारों पर प्रकाश डालता है । फिर बिहार-यूपी के विशेष आकर्षण ‘छठ पर्व’ से जुडी खबरें व आलेख उपलब्ध कराए जाते हैं । छठी मईया प्रसाद का आनलाईन आयोजन एक रोचक पहल रहती है । संस्कृति कालम में ही भोजपुरिया क्षेत्र के महान पूर्वजों के ऊपर परिचयात्मक आलेख मिल जाएंगे । इसमें कबीर से लेकर भिखारी ठाकुर फिर कुंवर सिंह एवं राजेंद्र प्रसाद तथा उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को प्रमुखता से स्थान मिला है । वेबसाईट का खान-पान कालम भी बहुत रोचक बन पडा है । इसमें मजेदार व्यंजन ‘दाल पिठावरा’ पर प्रस्तुति मिलेगी । इस खास व्यंजन के शौकीन ग्रहणियां यहां आकर सहज फील करेंगी। 
राकेश मिश्र द्वारा डिजाईन ‘भोजपुरी एक्सप्रेस डाट काम’ भोजपुरी भाषा समुदाय को एकजुट करने का महत्ती दायित्त्व निभा रही है । नया यूजर माय पेज पर जाकर अपना भोजपुरी एक्सप्रेस प्रोफाइल बना सकता है । उपलब्ध मनोरंजक सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए ऐसा करना अनिवार्य है । मसलन ‘गेम्स’ का लुत्फ लेने के लिए आपको सदस्य होना होगा । भोजपुरी एक्सप्रेस की तरह ‘जय भोजपुरी डाट काम’ में भी आप सदस्यता प्राप्त कर सकते हैं । भोजपुरी सोशल नेटवर्किंग साईट में फिलहाल दस हजार से अधिक यूजर्स हैं । जय भोजपुरी में विचार-विमर्श के लिए एक्टिव फोरम मंच दिया गया है । माडरेटर द्वारा तैयार ‘भोजपुरी परिवार सदस्यन ऊपर ताजा समाचार’ सर्वाधिक कारगर फोरम के तौर पर विकसित हुआ है। इसके तहत सदस्य लोग समुदाय के साथ संचार भागीदार बनते हैं । महज टाईमपास भोजपुरिया पोर्टल की प्रांगण से आगे  परिवार से जुडे होने का एहसास इसमें किया जा सकता है । भोजपुरी समूहों को समर्पित बहुत से मंच आपको यहां मिल जाएंगे । मसलन यदि हम हास्य समूह को देखें जिसमें बहुत अधिक संख्या में सदस्य हैं । वेबसाईट द्वारा दिए स्पेस में आपन पूर्वांचल से लेकर कैरियर एवं दिल की बात समूह देखने को मिलेंगे । एक्टिव सदस्यों द्वारा लिखे आलेख एक तरह से उनके भीतर लेखन की जिजीविषा दे रहे हैं। 
भोजपुरी गीत-संगीत में रूचि रखने वाले समुदाय के लिए ‘भोजपुरी लिरिक्स’ एक विकल्प के तौर पर देखी जा सकती है । यहां क्लासिक एवं नए जमाने के भोजपुरी गाने का शब्द फार्म उपलब्ध है । हालांकि यह हिंदी फिल्मों को समर्पित एक लोकप्रिय वेबसाईट की प्रेरणा उपज है । फिर भी भोजपुरिया समाज में इस स्तर की पहल का स्वागत किया जाना चाहिए । भोजपुरी समाज की हिंदी पत्रिका ‘भोजपुरी पंचायत’ का प्रकाशन भी एक उल्लेखनीय कदम कहा जा सकता है । यह पत्रिका आपको इंटरनेट पर भी मिल जाएगी । पत्रिका भोजपुरिया समाज व संस्कृति पर विशेष सामग्री उपलब्ध करा रही है। भोजपुरी क्षेत्र से जुडी खबरों के संकलन भी किया जाता है । पत्रिका का फीचर भाग (मनोज भावुक) विशेष कर पाठकों को पसंद आता है।
सार में यह कहा जा सकता है कि भोजपुरी फिल्मों में सामुदायिक संवेदना का व्यापक विघटन होने से बहुत से लोग विमुख हुए । भोजपुरिया समाज व संस्कृति प्रति स्नेह भाव रखने वाले लोगों को अन्य विकल्पों का हांथ मिला है । एक बडे समुदाय को इंटरनेट नेटवर्क में काफी प्यार मिल रहा ।
 
      

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5 comments

  1. For the reason that the admin of this site is working no uncertainty very quickly it will be renowned due to its quality contents.

  2. Existe – T – Il un moyen de récupérer l’historique des appels supprimés? Ceux qui disposent d’une sauvegarde dans le cloud peuvent utiliser ces fichiers de sauvegarde pour restaurer les enregistrements d’appels de téléphone mobile.

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