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बन के सब चिल्ला पड़े- धिक्-धिक् है यह कौन!

नामवर सिंह की हस्तलिपि में मैंने पहली बार कुछ पढ़ा. रोमांच हो आया. इसका शीर्षक भले ‘एक स्पष्टीकरण’ है, लेकिन ऐसा लगता नहीं है कई यह किसी के लिखे विशेष के सन्दर्भ में दिया गया स्पष्टीकरण है. आप सब पढ़िए और निर्णय कीजिये- प्रभात रंजन.

(नोट- साथ में, मूल पत्र की स्कैन प्रति भी है) 
‘दस्तखत’ पर मेरे ही दस्तखत 
एक स्पष्टीकरण
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सुश्री ज्योति कुमारी के कहानी संग्रह ‘दस्तखत और अन्य कहानियां’ में भूमिका की तरह प्रकाशित ‘अनदेखा करना मुमकिन नहीं’ शीर्षक आलेख मेरा ही है. फर्क सिर्फ इतना है कि वह बोलकर लिखवाया हुआ है. उस समय मेरा हाथ कुछ काँप-सा रहा था. संभवतः ठंढ से ठिठुरन के कारण. उम्मीद है, इस स्पष्टीकरण से दुष्प्रचार बंद हो जायेगा.
३.३.२०१३   (हस्ताक्षर: नामवर सिंह)
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रवीन्द्रनाथ ठाकुर

उदा चरितानाम्

फटी भीत के छेद में नाम-गोत्र से हीन
कुसुम एक नन्हा खिला, क्षुद्र, निरतिशय दीन
बन के सब चिल्ला पड़े- धिक्-धिक् है यह कौन!
सूर्य उठे, बोले- “कहो भाई, अच्छे हो न?”
(अनुवाद- हजारी प्रसाद द्विवेदी
(मृत्युंजय रवीन्द्र पुस्तक- पृष्ठ- २६४
यह उद्दरण ज्योति कुमारी की चिंता के निवारणार्थ

 
      

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7 comments

  1. बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब / तमाशा ए अहले करम देखते हैं .

  2. मुझे तो लगता है यह सुश्री ज्योति कुमारी जी की किसी विशेष चिंता के जबाब में उनको सांत्वना कि तरह दिया गया स्पष्टीकरण है |
    बहरहाल जो भी है श्री नामवर सिंह जी की हस्तलिपि से रूबरू होना अपने आप में एक अनुभव है !

  3. After most mobile phones are turned off, the restriction on incorrect password input will be lifted. At this time, you can enter the system through fingerprint, facial recognition, etc.

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