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क्या आप मनोरंजन ब्यापारी को जानते हैं?

मैं भी नहीं जानता था. पहली बार यह नाम अपनी प्रिय लेखिका अलका सरावगी के उपन्यास ‘शेष कादम्बरी’ में पढा था. वे दिन धुआंधार समीक्षा लिखने के थे. मैंने मनोरंजन ब्यापारी नाम को इंटरटेंमेंट इंडस्ट्री से जोड़ा. जाहिर है, उस नाम को मैंने काल्पनिक समझा और मैंने यह लिखा उस चरित्र के माध्यम से अलका जी ने मनोरंजन उद्योग के उभार का अच्छा विश्लेषण किया है. हा! हा! हा! हँसी आती है. कैसी दूर की कौड़ी खोजी थी मैंने. लेकिन एक बात है उस जानदार उपन्यास का वह पात्र मन में अटका रह गया- मनोरंजन ब्यापारी.

उस नाम को भूलने लगा था कि सितम्बर २००८ में कथादेश में बजरंग बिहारी तिवारी ने उस ‘दलित’ लेखक के ऊपर एक लेख लिखा, उनका एक साक्षात्कार लिया. यह हम हिंदी वालों से उस बांग्ला लेखक का पहला परिचय था, जिसका जीवन ही साहित्य है. स्वाध्यायसे शिक्षा अर्जित करने वाले मनोरंजन ब्यापारी रिक्शा चलाते थे, कि वे एक स्कूल में खाना बनाने का काम करते हैं. संयोग से एक दिन महाश्वेता देवी उनके रिक्शे पर बैठीं और उनकी प्रेरणा ने ही उनको लेखक बना दिया. बजरंग जी ने अपने लेख में लिखा है, “मनोरंजन की पढ़ाई ऐसे में संभव ही नहीं थी. भेड़-बकरी चराते, सफाई, कुली, मोची का काम करते उनका बचपन कटा, थोड़ा बड़े हुए तो परिस्थितिवश नक्सलियों के संपर्क में आए. कुछ समय तक उनके लिए काम भी किया. पुलिस द्वारा पकड़े गए. जेल हुई. जेल प्रवास के दौरान एक सहृदय व्यक्ति से पढ़ना-लिखना सीखा. जेल से छूटे तो रिक्शा चलाने का काम करने लगे. उपन्यास-कहानी पढ़ने का चस्का लग गया था. किसी रचना की कोई उल्लेखनीय बात दिमाग में अटक जाती तो मन मसोसकर रह जाते. साथी रिक्शा चालकों की दिलचस्पी इन चीज़ों में प्रायः नहीं होती. एक बार उनके रिक्शा पर जो महिला बैठी वह रंग-ढंग से शिक्षिका लग रही थी. रिक्शे से उतरने के बाद मनोरंजन जी ने हिम्मत करके एक मुश्किल शब्द का अर्थ पूछा- ‘जिजीविषा’. भली महिला की उत्सुकता बढ़ी. उन्होंने मनोरंजन से पूछताछ की और अपनी पत्रिका ‘वर्तिका’ में रिक्शा चालकों की जिंदगी पर कुछ लिखने का आमंत्रण दे डाला. यह महिला कोई और नहीं प्रख्यात रचनाकार महाश्वेता देवी थीं. इससे पहले मनोरंजन जी ने कुछ लिखा नहीं था. महाश्वेता जी ने साहस दिया. मनोरंजन जी लिखते और उसे दुरुस्त करके महाश्वेता जी ‘वर्तिका’ में छापतीं.’

पटना लिटरेचर फेस्टिवल के मंच से यह कहानी मनोरंजन जी ने खुद भी सुनाई. उनकी इस कहानी, पटना लिटरेचर फेस्टिवल में लेखकों-श्रोताओं ने जिस तरह से उनका स्वागत किया- उससे मन में एक सवाल उठता रहा. आज पूछ रहा हूँ. जो लोग लिटरेचर फेस्टिवल को एलिटिस्ट मानते हैं, यह सवाल उनसे है. किस गंभीर साहित्यिक मंच ने आज तक मनोरंजन ब्यापारी को बुलाया? किस ने उनके ऊपर चर्चा आयोजित की? पटना लिटरेरी फेस्टिवल ने जिस तरह से मनोरंजन ब्यापारी को स्थान दिया. अगले दिन हिन्दुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने पर उनके ऊपर स्टोरी प्रकाशित की. निश्चित तौर पर इस आयोजन ने मनोरंजन ब्यापारी जैसे लेखक को बड़े स्तर पर सामने लाने का काम किया. इसके लिए मैं फेस्टिवल के क्रिएटिव डायरेक्टर सत्यानन्द निरुपम को सलाम करता हूँ. उनके माध्यम से ही तो हम मनोरंजन ब्यापारी से मिले, उनके साथ कई घंटे बिताने का हमें मौका मिला. उनकी कुल एक कहानी हिंदी में अनूदित है. आने वाले समय में जानकी पुल पर हम उसको भी आपके लिए प्रकाशित करेंगे. 
 
      

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7 comments

  1. अब जान लिया और, मान गए. प्रेरणादायक.

  2. bahut badhiya,aapko aur satyanand nirupam dono ko dhanyavad.

  3. Prabhatji, yeh ek saraahaneey kadam hoga aapka aur Janki pool ka. inke alaawa bhee hum gumnaamee ke andhere se apne rachanakaaroN ko nikalenge aur readers ke saamne laaeynge.

  4. Existe uma maneira melhor de localizar rapidamente um telefone celular sem ser descoberto por ele?

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