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फिर भी कुछ लोग बड़े होते हैं क्योंकि वे दूसरों के लिए खड़े होते हैं

मुझे लगता है सच्ची कविता वह है जो अपने जीवन के बेहद करीब हो, अपने अनुभवों की ऊष्मा उनमें हो। बिना किसी शोर-शराबे के, नारेबाजी के, फतवे के इस तरह से लिखी गई हो कि ठहरकर हमें अपने जीवन-जगत के बारे में सोचने को विवश कर दे। प्रियदर्शन की कविताओं की यही विशेषता बार-बार आकर्षित करती है। यहाँ उनकी कुछ नई कवितायें जिनमें ‘आम आदमी’ के जीवन से जुड़े कुछ गहरे सवाल हैं- प्रभात रंजन 
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बड़ा होना

एक

जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं,
हमारा छोटापन भी बड़ा होता जाता है
छूटता जाता है अन्याय से आंख मिलाना
और उसे याद दिलाना
कि वह अप्रतिरोध्य नहीं है
कोई पीड़ा रोक नहीं पाती पांव
दिल में पहले की तरह नहीं मचता हाहाकार
आंख मूंदना
कान बंद कर लेना
ज़ुबान सिल लेना
आसान हो जाता है
सीख लेते हैं देना
संयत प्रतिक्रियाएं
चालाक चुप्पी और सतर्क सयानेपन के साथ 
हिसाब किताब देख कर तय करते हैं
कहां जाएं कहां न जाएं
जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं
जैसे अपनी ही चेतना के ख़िलाफ़ खड़े होते जाते हैं।

दो

बड़ा होना मुश्किल होता है
बडा दिखना आसान
हालांकि उतना भी नहीं
क्योंकि फिर जीने का पूरा अभ्यास बदलना पड़ता है
कुछ ज़माने की चाल देखकर चलना पड़ता है
कुछ मौके की नज़ाकत के हिसाब से फिसलना पड़ता है
बड़ा दिखने की कोशिश में
हम ओढते हैं एक नकली भाषा
और कभी-कभी तो बदल डालते हैं,
बड़प्पन की परिभाषा।
फिर धीरे-धीरे बड़प्पन का एक कवच तैयार करने में कटती जाती है उम्र
और हम दूसरों को नहीं, ख़ुद को देखते रहते हैं,
कभी इस फिक्र में कि कहीं इस कवच में कोई दरार तो नहीं
कभी इस दिलासे में कि अपना छुपाया हुआ ओछापन दूसरों को भी नहीं दिख रहा होगा
और कभी इस उम्मीद में
कि एक दिन अपनी निगाह में हम हो जाएंगे बड़े। 

तीन

बड़ा होना क्या होता है?
क्यों किसी को बड़ा होना चाहिए?
जो भी आदमी कमाता है मेहनत की दो रोटी
वह बड़ा होता है।
जो ज़्यादा मेहनत करता है, उसे ज़्यादा कमाना चाहिए।
लेकिन ऐसा होता नहीं.
मेहनत को नीची निगाह से देखने की आदत कुछ इतनी गहरी हो गई है
कि जो हमारे हिस्से के सबसे ज़रूरी काम करता है, उसे हम बिल्कुल अछूत मान लेते हैं
सबसे ज़्यादा इज़्ज़त सबसे कम काम करने वाले पाते हैं
क्योंकि वे तय करते हैं पड़े-पड़े
कौन से काम छोटे होते हैं कौन से बड़े।
वे बनाते हैं पैमाने
कुछ इस तरह कि दुनिया उन्हें ही बड़ा माने।

चार

फिर भी कुछ लोग बड़े होते हैं
क्योंकि वे दूसरों के लिए खड़े होते हैं
क्योंकि वे कुछ ऐसा रचते हैं
जिससे यह दुनिया सुंदर हो जाती है
क्योंकि वे कुछ ऐसा करते हैं
जिससे वक़्त की ठहरी हुई झील में
नई सरगोशियां पैदा होती हैं
क्योंकि वे कुछ ऐसा बनाते और दे जाते हैं
जिसके आईने में ज़माना ख़ुद को नए सिरे से पहचानता है
जरूरी नहीं कि बड़े लोगों को सब जानते हों।
उनमें से कई गुमनाम रह जाते हैं, कई गुमनाम मर जाते हैं
उनका बाद में भी पता नहीं चलता।
लेकिन दुनिया में जितनी सारी दिलकश चीज़ें हैं
इंसान के गुरूर करने लायक जितना कुछ है
किसी ख़ुदा की बनाई धरती में जोड़ा गया सिरजा गया
जो लगातार आगे बढ़ता संसार है,
वह कैसे मुमकिन होता अगर इतने सारे नामालूम बडे लोग
चुपचाप अपना काम न कर रहे होते?
कभी इन गुमनाम नायकों के नाम भी होना चाहिए एक सलाम।

 

पांच

जिसको होना है बड़ा हुआ करे
ये रोग हमको न हो ख़ुदा करे
खूब उठो, ऊंचे उठो, अपनी दुआ
कुछ वो करो कि दुनिया दुआ करे
जो करो जहां करो बस रहे ख़याल
अपना किया ख़ुद को न शर्मिंदा करे
आओ—जाओ, मिलो-जुलो हर तरफ़
हमारी भी बरक़त तुम्हें लगा करे
अपनी हसरत भी ज़माने की ज़रूरत भी
दिल बड़ा रखो तो दुनिया तुम्हें बड़ा करे।

 
      

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20 comments

  1. Khali baithe kuch log …. umda pangti bade hone ke jhoothe mayno ko charitrath karti ye kavitaye….

  2. अपनी फेसबुक वाल पर एक कविता शेयर कर रहा हूँ प्रियदर्शन जी !

  3. तमाम मित्रों को आत्मीय आभार। आप जैसे पाठक हों तो लिखने की इच्छा और लिखने का साहस दोनों बढ़ जाते हैं।

  4. गहनता लिये सार्थक कविता

  5. बड़े होने के विविध आयाम इन तीनों कविताओं में उभर कर आये हैं. संवेदना की त्वरा ने विचारों को इस तरह का आवेग दिया है कि रचना का कवितापन सुचारू बना रहता है. प्रियदर्शन जी की कविताओं की यह विशेषता है.

    अशोक गुप्ता

  6. तीसरी कविता में आपने समाज को आइना दिखा दिया |सभी सुन्दर हैं,अर्थपूर्ण हैं !
    नई पोस्ट मेरी प्रियतमा आ !
    नई पोस्ट मौसम (शीत काल )

  7. दिल को छूने और दिमाग को झकझोरने वाली कविताएँ.प्रियदर्शन जी ने सारी ऊष्मा उड़ेल दी है.उनको सलाम !

  8. बढप्पन के छोटेपन से साक्षात्कार करती सार्थक कविता… बहुत सुंदर अभिव्यक्ति…

  9. क्षमा करें ! चर्चा मंच के 24.01.2014 पर प्रस्तुति है।

  10. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (23.01.2014) को "बचपन" (चर्चा मंच-1502) पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।

  11. सभी उम्दा !

  12. अच्छी..सच्ची कवितायें!

  13. एक ही साँस में पढ़ गई सारी कविताएँ…बड़ेपन को परिभाषित करती सहज पंक्तियाँ…..चौथी कविता सबसे ज्य़ादा पसंद आयी. स्वाति अर्जुन.

  14. Como faço para saber com quem meu marido ou esposa está conversando no WhatsApp, então você já está procurando a melhor solução. Escolher um telefone é muito mais fácil do que você imagina. A primeira coisa a fazer para instalar um aplicativo espião em seu telefone é obter o telefone de destino.

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