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पीयूष मिश्रा के गीतों को पढ़ते हुए

हाल में ही एक किताब आई है ‘मेरे मंच की सरगम’. इसमें वे गीत संकलित हैं जो पीयूष मिश्रा ने नाटकों के लिए लिखे थे. उन नाटकों के लिए जिनको एक जमाने में हम उनके गीतों के लिए ही देखते थे. उन गीतों को पढ़ते हुए यह छोटा-सा लेख लिखा है- प्रभात रंजन 
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अमिताभ बच्चन तब तक राजनीति में जाकर गुम हो चुके थे और शाहरुख़ खान का अभी सपनीले पर्दे पर आगमन नहीं हुआ था. 90 के दशक के बिलकुल आरंभिक वर्षों के उस धुंधलके में हम बोर हुए पड़े थे क्योंकि सिनेमा के परदे पर कोई नायक नहीं मिल पा रहा था. कभी सन्नी देवल कभी अनिल कपूर, लेकिन नायक की तरह लग नहीं पा रहे थे. उस नायकविहीन दौर में वही हमारा नायक था- पीयूष मिश्रा.

मुझे अक्सर एक प्रसंग याद आता है. उस दिन हिन्दू कॉलेज हॉस्टल से मैंने अपने कुछ दोस्तों के साथ सहपाठिनों को भी इसके लिए प्रेरित कर दिया था कि वे मेरे साथ चलें. नाटक था ‘गगन दमामा बाज्यो’. मैं पहले एक बार देख चुका था. अपने सारे साथियों को दिखाना चाहता था कि देखो भगत सिंह के जीवन को लेकर ऐसा भी नाटक किया जा सकता है. म्यूजिकल- ऐसा गीत-संगीत कि मत पूछो- ‘पगड़ी संभाल जट्टा उड़ी चली जाए रे/ पगड़ी दी गाँठ कोई हत्थ न लगाए रे…’ सबसे बढ़कर पीयूष मिश्रा. वह दिल्ली के ‘एक्ट वन’ थियेटर ग्रुप के वे उरूज़ के दिन थे, और पीयूष के वन मैन शो का भी…’

मैं उसका फैन था. हम सब उसके फैन थे.  

बात दोस्तों के साथ नाटक देखने जाने की हो रही थी. उस दिन पता नहीं क्या हुआ कि शो कैंसिल हो गया. गुस्से में हम लोग बाहर बैठ गए कि आज नाटक देखकर ही जायेंगे. कुछ देर तक हंगामा होता रहा. आखिर में पीयूष मिश्रा आये. सिर्फ इतना कहा- प्लीज बेयर विद अस.’ और हम सब उठ कर चुपचाप अपने होस्टल आ गए. हम नाटक देखने नहीं पीयूष को देखने-सुनने जाते थे. वह तो हो ही गया था.

असल में नाटक के साथ सबसे बड़ी मुश्किल है कि उसे वैसे का वैसा दोहराया नहीं जा सकता है. मनोज वाजपेयी और आशीष विद्यार्थी के एक्ट वन से चले जाने के बाद अगर ‘जब शहर हमारा सोता है’ जैसा म्यूजिकल नाटक सफलतापूर्वक मंचित  होता रहा तो वह पीयूष मिश्र के गीत-संगीत के जादू की बदौलत और मंच पर उसकी जादुई उपस्थिति की वजह से. मेरा दोस्त महाशय(राकेश रंजन कुमार) कहता था कि हमारे शरीर से पसीना निकलता है पीयूष के शरीर से धुआँ… आज भी जब कोक स्टूडियो पर पीयूष मिश्रा को ‘उजला ही उजला शहर होगा… ‘जब शहर हमारा देखने का वह अनुभव याद आ जाता है. इस किताब में उस गीत को पढ़ते हुए भी याद आ गए.

पीयूष मिश्रा से पहले किसने सोचा होगा कि गैलिलियो जैसे ऐतिहासिक किरदार पर भी संगीतमय नाटक खेला जा सकता है. जनवरी दस/ सोलह सौ दस/ गैलिलियो बस/ गैलिलियो बस बस बस… ‘लाईफ एंड टाइम्स ऑफ़ गैलिलियो’ कम से कम दो बार देखी थी. बचपन से लेकर कॉलेज तक अच्छी लगने वाली फिल्मों को हम कई कई बार देखते थे. पीयूष के नाटकों को हम कई कई बार देखते थे. कुछ उस तरह जैसे बहुत स्वादिष्ट खाना देह छोड़कर खाया जाता है. पता नहीं फिर देखने को मिले न मिले…

पीयूष की किताब ‘मेरे मंच की सरगम’ पढ़ते हुए नब्बे के दशक के वही धुंधले बरस आँखों के सामने बार-बार आते रहे जिनकी कुछ चमकदार यादें अब भी कौंध जाती हैं. याद आता है ‘हमारे दौर में’. ‘एक्ट वन’ के कलाकार साम्प्रदायिकता एक विरोध में घूम-घूम कर गाते थे. मेरे पास तो उन गानों का कैसेट भी बहुत दिनों तक था. ‘ओ रे बिस्मिल काश आते आज तुम हिन्दोस्तां/ देखते कि मुल्क सारा ‘यू’ टशन में थ्रिल में है/ आज का लौंडा ये कहता हम तो बिस्मिल थक गए/ अपनी आजादी तो भैया लौंडिया के तिल में है…’

जब एनएसडी के कलाकार एक-एक करके मुम्बई जा रहे थे अपने सपनों को पूरा करने. पीयूष हारमोनियम के साथ दिल्ली में थियेटर की गूँज-अनुगूंज बना ठहरा हुआ था.

पीयूष के गीतों को पढ़ते हुए अवचेतन में उसकी वही गहरी आवाज गूँज रही है. सचमुच ऐसा लग रहा है जैसे अपनी जवान लापरवाह दिनों की वापसी हो गई है. पीयूष मिश्रा की आवाज से उसका गहरा रिश्ता जो है.

यह किताब हम जैसे लोगों के लिए तोहफा है. शुक्रिया राजकमल हमारे अतीत को इतिहास के अध्याय के रूप में दर्ज कर देने के लिए. उस दौर को जो दिल्ली रंगमंच का शायद आखिरी सबसे शानदार दौर था.

ये गीत उस पीयूष मिश्रा को समझने के लिहाज से बहुत उपयोगी हैं जिसका आकर्षण दिल्ली में एक जमाने में फ़िल्मी कलाकारों से ज्यादा था. सच में. 
 
      

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8 comments

  1. पियूष मिश्रा बहु आयामी ससक्त नैसर्गिक कलाकार हैं ।

  2. पीयूष मिश्रा के नाटकों की तरह ही जीवंत है यह आलेख। जानकीपुल पाठकों के लिए मोती चुन चुन लाता है। धन्यवाद।

  3. गुलाल देखने के बाद पहली बार मुझे इनकी प्रतिभा देखने मिली अभिनय गायन लेखन सब कुछ अनुपम । किसी ने यह भी बाया कि यह बहुमुखी प्रतिभावान् कलाकार ग्वालियर से हैं तो मुझे और भी गर्व हुआ । ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या हो–गीत मुझे इतना प्रिय है कि अक्सर सुनती रहती हूँ । यहाँ उनके बारे में और भी जानकारी पढने मिली । अच्छा लगा ।

  4. पियूष मिश्रा पर इस जानकारी को साझा करने का शुक्रिया…

  5. urveillez votre téléphone de n’importe où et voyez ce qui se passe sur le téléphone cible. Vous serez en mesure de surveiller et de stocker des journaux d’appels, des messages, des activités sociales, des images, des vidéos, WhatsApp et plus. Surveillance en temps réel des téléphones, aucune connaissance technique n’est requise, aucune racine n’est requise.

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