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पीयूष मिश्रा के चुनिन्दा गीत

ऐसे सुहाने मौसम में और नहीं कुछ तो पीयूष मिश्रा के गीतों को ही पढ़ा जाए. 90 के दशक में जब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पढता था तब इन गीतों को बारहा सुना. आज पढ़ के ही संतोष करते हैं. इन गीतों का कोई सम्बन्ध बरसात से नहीं है, शायद मन की बरसात से हो. बहरहाल, पीयूष मिश्रा ने जो गीत अपन नाटकों के लिए लिखे थे वह एक जिल्द में आई है, ‘मेरे मंच की सरगम’ नाम से. उसके कुछ चुनिन्दा गीत- मॉडरेटर 
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उजला ही उजला
उजला ही उजला शहर होगा जिसमें हम तुम बनाएँगे घर
दोनों रहेंगे कबूतर से जिसमें होगा ना बाज़ों का डर
मखमल की नाज़ुक दीवारें भी होंगी
कोनों में बैठी बहारें भी होंगी
खिड़की की चौखट भी रेशम की होगी
चंदन से लिपटी हाँ सेहन भी होगी
संदल की खुशबू भी टपकेगी छत से
फूलों का दरवाज़ा खोलेंगे झट से
डोलेंगे महकी हवा के हाँ झोंके
आँखों को छू लेंगे गर्दन भिगो के
आँगन में बिखरे पड़े होंगे पत्ते
सूखे से नाज़ुक से पीले छिटक के
पाँवों को नंगा जो करके चलेंगे
चर-पर की आवाज़ से वो बजेंंगे
कोयल कहेगी कि मैं हूँ सहेली
मैना कहेगी नहीं हूँ अकेली
बत्त$ख भी चोंचों में हँसती सी होगी
बगुले कहेंगे सुनो अब उठो भी
हम फिर भी होंगे पड़े आँख मूँदे
कलियों की लड़ियाँ दिलों में हाँ गूँधे
भूलेंगे उस पार के उस जहाँ को
जाती है कोई डगर…
चाँदी के तारों से रातें बुनेंगे तो चमकीली होगी सहर
उजला ही उजला शहर होगा जिसमें हम तुम बनाएँगे घर
आओगे थककर जो हाँ साथी मेरे
काँधे पे लँूगी टिका साथी मेरे
बोलोगे तुम जो भी हाँ साथी मेरे
मोती सा लूँगी उठा साथी मेरे
पलकों की कोरों पे आए जो आँसू
मैं क्यों डरूँगी बता साथी मेरे
उँगली तुम्हारी तो पहले से होगी
गालों पे मेरे तो हाँ साथी मेरे
तुम हँस पड़ोगे तो मैं हँस पडूँगी 
तुम रो पड़ोगे तो मैं रो पडूँगी
लेकिन मेरी बात इक याद रखना
मुझको हमेशा ही हाँ साथ रखना
जुड़ती जहाँ ये ज़मीं आसमाँ से
हद हाँ हमारी शुरू हो वहाँ से
तारों को छू लें ज़रा सा सँभल के
उस चाँद पर झट से जाएँ फिसल के
बह जाएँ दोनों हवा से निकल के
सूरज भी देखे हमें और जल के
होगा नहीं हम पे मालूम साथी
तीनों जहाँ का असर…
राहों को राहें भुलाएँगे साथी हम ऐसा हाँ होगा सफर
उजला ही उजला शहर होगा जिसमें हम तुम बनाएँगे घर 
मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका
मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका
खूब जाना चाहता हूँ अमेरिका
पी जाना चाहता हूँ अमेरिका मैं
खा जाना चाहता हूँ अमेरिका
क्या क्या क्या है अमेरिका रे बोलो
क्या क्या क्या है अमेरिका
बस खामख्वाह है अमेरिका रे बोलो
बस खामख्वाह है अमेरिका
सोने की खान है अमेरिका
गोरी-गोरी रान है अमेरिका
मेरा अरमान है अमेरिका रे
हाय मेरी जान है अमेरिका
मैं जाना चाहता हूँ…
अमरीका में ऐसे क्या-क्या हीरे-मोती जड़े हुए
देखो उसके फुटपाथों पर कितने भूखे पड़े हुए
जिधर उसे दिखती गुंजाइश वहीं-वहीं घुस जाता है
सबकी छाती पर मूँगों को दलना उसको आता है
अमरीका है क्या…कद्दू
अमरीका है क्या…बदबू
अमरीका है क्या …टिंडा
अमरीका है…मुछमुंडा
अब भी सँभल जाइए हज़रत मान हमारी बात
कि घुसपैठी है अमेरिका
बंद कैंची है अमेरिका
बाप को अपने ना छोड़े
ऐसा वहशी है अमेरिका
मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका
आपको क्या मालूम जगह है वो क्या मीठी-मीठी-सी
नंगी पिंडली देख के मन में जले है तेज़ अँगीठी-सी
बड़े-बड़े है फ्लाईओवर और बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें वहाँ
बड़े-बड़े हीरो-हिरोइन बड़े-बड़े एक्टिंगें वहाँ
जहाँ भी चाहो घूमो मस्ती में कोई ना रोके है
पड़े रहो तुम मौला बनकर कोई भी ना टोके है
इसीलिए चल पड़िए मेरे कहता हूँ मैं साथ
कि रॉल्सरॉइस है अमेरिका
मेरी ख्वाइश है अमरीका
फरमाइश है अमेरिका रे मेरी
गुंजाइश है अमेरिका
मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका
अमरीका की बात कही तो खूब मटक गए वाह वाह वाह
ये भूले कि वहाँ गए तो खतम भटक गए वाह वाह वाह
क्या-क्या है उसके कूचे में जो है नहीं हमारे में
बात करे हमसे कुव्वत इतनी भी नहीं बेचारे में
हम बतलाएँगे उसको जि़ंदादिल कैसे होते हैं
सबकी सोचें महक-महक कर वो दिल कैसे होते हैं
इक बंदा है वहाँ पे जिसका नाम जॉर्ज बुश होता है
छोटे बच्चों पर जो फेंके बम तो वो खुश होता है
ऐसे मुलुक में जा करके क्या-क्या कर पाएँगे जनाब
जहाँ पे चमड़ी के रंग से इंसाँ का होता है हिसाब
इसीलिए हम कहते हैं आली जनाब ये बात
कि हिरोशिमा है अमेरिका
नागासाकी है अमेरिका
वियतनाम के कहर के बाद अब
क्या बाकी है अमेरिका
मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका
ये तो फरमा दिया आपने अमरीका क्या होता है
पर रहती हैं आप जहाँ पे वहाँ पे क्या-क्या होता है
इक रहता है बंदा जिसकी ज़ात और कुछ होती है
$कौम-परस्ती देख के उसकी तकलीफें खुश होती हैं
वो फिरता है यहाँ-वहाँ ये आस लिये कि पहचानो
मुझको भी इस वतन का हिस्सा वतन का टुकड़ा ही मानो
वरना देखो मेरे अंदर भी इक जज़्बा उट्ठेगा
रक्खा है जो हाथ जेब में निकल के ऊपर उट्ठेगा
इसीलिए वो बंदा कहता बार-बार यही बात
कि मैं जाना चाहता हूँ कहीं और…?
ना…
मैं रहना चाहता हूँ इसी ठौर…?
ना…
मैं जानना चाहता हूँ वहाँ-वहाँ…?
ना…
मैं रहना चाहता हूँ यहाँ-वहाँ…?
ना…
वहाँ…?
नहीं
तो वहाँ…?
नहीं
तो वहाँ…?
नहीं
तो कहाँ…?
जब कोई ठौर मेरा ना होने की होती है बात…
तो मैं जाना चाहता हूँ अमेरिका
मैं
 
      

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6 comments

  1. प्रियदर्शन जी, आपने सही कहा कि इन गीतों का असली आनंद उनकी अपनी आवाज में सुनने में है. सीडी से पहेल के दौर ने 'एक्ट वन' ने 'हमारे दौर में' नाम से एक कैसेट जरूर निकाला था, जिसके कई गीत मुझे फिल्म 'गुलाल' में सुनने को मिले. कोक स्टूडियो में यू ट्यूब पर इनके दो गीत हैं. बस

  2. इन गीतों का अपना एक आस्वाद है। लेकिन पीयूष जी की आवाज़ में इन्हें सुनना तो एक विरल अनुभव है। क्या उनकी आवाज़ में इन सबकी सीडी भी सुलभ है?
    वैसे सरफरोशी की तमन्ना का एक और वर्सन पीयूष जी के पास है- कहीं ज्यादा दिलचस्प, तीखा और धारदार। बहरहाल, प्रभात जी, आपको धन्यवाद इसे साझा करने के लिए।

  3. इनके गीतों में व्यंग्य ,टीस , पीड़ा और अनुभूति की तीव्रता है । साथ ही एक अनूठापन भी ।

  4. बहुत अच्छे गीत है। इक बगल में चांद होगा इक बगल में रोटियां ..काश ऐसे दिन आते ।

  5. साझा करने के लिए शुक्रिया प्रभात जी … Act one के दिनों से पीयूष जी के गीतों को सुना है …सामाजिक सरोकारों को समेटने के बावजूद इनके गीतों की गीतात्मकता और गेयता कम नहीं होती .. एक अच्छे संगीतकार होने का उन्हें अतिरिक्त लाभ मिला है … मेरा पसंदीदा गीत 'मन करे चकमक' है जिसे थोड़े परिवर्तन के साथ वे गुलाल फिल्म में लेकर आये …

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