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विस्मय और चमत्कार : विश्व सिनेमा में अद्भुत रस की फिल्में

आइआइटी पलट युवा लेखक प्रचण्ड प्रवीर को कुछ लोग ‘अल्पाहारी गृहत्यागी'(हार्पर कॉलिन्स) उपन्यास के कारण जानते हैं, आजकल मैं उनको विश्व सिनेमा पर लिखी इस लेखमाला के कारण जान रहा हूँ, जिसमें उन्होंने रसों के आधार पर विश्व सिनेमा की विशेषताओं को रेखांकित करने का काम किया है. आज अद्भुत रस के आधार पर विश्व सिनेमा का एक मूल्यांकन प्रस्तुत है. पढ़िए बड़ा रोचक है- प्रभात रंजन 
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इस लेखमाला में अब तक आपने पढ़ा:
1.                  भारतीय दृष्टिकोण से विश्व सिनेमा का सौंदर्यशास्त्र – https://www.jankipul.com/2014/07/blog-post_89.html  
2.                  भयावह फिल्मों का अनूठा संसार – https://www.jankipul.com/2014/08/blog-post_8.html  
3.                  वीभत्स रस और विश्व सिनेमा – https://www.jankipul.com/2014/08/blog-post_20.html   
भारतीय शास्त्रीय सौंदर्यशास्त्र के दृष्टिकोण से विश्व सिनेमा का परिचय कराती इस लेखमाला की चौथी कड़ी है अद्भुत रस की विश्व की महान फिल्में :-
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विस्मय और चमत्कार : विश्व सिनेमा में अद्भुत रस की फिल्में 

प्राचीन शास्त्रीय सिद्धान्त को पढ़ने और समझाने में कई दिक्कतें आती हैं। एक तो, इतने तरह के विचार-परिवार और विशिष्ट परंपरा हैं और उनके आपस के विचित्र मतभेद कि समझ नहीं आता कि सारांश में किस शब्द का क्या अर्थ निकाला जाये। सांख्य – योग में जिसको मन, अंतःकरण, चित्त, बुद्धि, अहंकार कहते हैं, वैशेषिक-न्याय में इन्हीं शब्दों कुछ और मतलब निकलता है। बौद्ध धर्म की शाखाओं – माध्यमिका और योगाचार दर्शन में बुद्धि अलग ही तरह से परिभाषित है।  प्राचीन वैशेषिक और वृहत प्राचीन साँख्य ईश्वर शब्द को भी अलग-अलग तरह से देखते हैं। कभी-कभी सोचता हूँ कि अपनी छाती फुलायें, अपनी संस्कृति का झंडा और हाथों में डंडा उठाये जो लोग हर बात पे कहते हैं कि तू क्या है, उनसे पूछा जाए कि आपके अपने अंदाज़-ए-गुफ्तगु में शामिल उन नायब लफ़्ज़ों के मायने भी पता हैं?

अद्भुत रस के लिए विस्मय भाव, और विस्मय भाव के लिए अद्भुत रस का होना आवश्यक है। कई मूर्धन्य विद्वानों का मानना है कि सामान्य की परिस्थिति से बढ़ कर चित्त की चमत्कृत अवस्था ही विस्मय है। मेरा मानना है कि ऐसी परिभाषा मिथ्या नहीं है, पर अपूर्ण है। यह अविद्या है चूँकि अविद्या मिथ्या न हो कर भ्रम की स्थिति होती है, और अविद्या को दूर करना ही सबसे बड़ा पुरुषार्थ है।

विश्व सिनेमा और अद्भुत रस की चर्चा करने से पहले दो फिल्मों का पुनरावलोकन करते हैं.

कुछ साल पहले आयी Martin Scorsese की  Hugo (2011) में सन 1902 में बनी A Trip to the Moon या Le Voyage dans la Lune के निर्देशक के बारे में बताया गया था था। चाँद पर मानव के कदम से 67 साल पहले, जुल वर्न के उपन्यास से प्रभावित इस अठारह मिनट की फिल्म में कुछ लोगों का चाँद पर जाना दिखाया गया है, और चन्द्रवासियों का इन पर्यटकों का विरोध भी चित्रित किया गया है। कपोल कल्पना पर बनी विशिष्ट सेटों पर बनी यह फिल्म कुछ हिस्सों में रंगी हुई थी।

बारह मिनट की अमेरिकी फ़िल्म The Great Train Robbery (1903) में लुटेरे ट्रेन लूट लेते हैं, बाद में उसका पीछा करते हुए कुछ लोग लुटेरों की हत्या कर देते हैं। इस फिल्म में चलती ट्रेन से एक आदमी को फेंक दिया जाता है। वस्तुतः यह पहली बार डमी का इस्तेमाल था। अपनी मौलिक तकनीक और कथानक से यह फिल्म बड़ी हिट साबित हुयी थी।
इन दोनों फिल्मों में दर्शक विस्मित रह गये थे। यह ठीक ठीक कहा जा सकता है कि उस समय की तकनीक आज की तुलना में पिछड़ी हुई थी, और आज ऐसी फिल्मों को कोई न पूछेगा। चकित और चमत्कृत होने के लिए दर्शकों में वैसा चमत्कार की भावना आनी चाहिये। इसी तरह Martin Scorsese की  Hugo (2011) अपने अपूर्व त्रिआयामी (3-D) प्रभाव से दर्शकों को ऐसी विस्मित कर देती है।

नाट्यशास्त्र के अनुसार अद्भुत रस की उत्पत्ति के लिए आवश्यक विस्मय के विभाव कुछ इस तरह से हैं : भव्य महल, अट्टालिका, सभा में प्रवेश करना, अलौकिक दृश्यों या घटना, और जादू के करतब देखना। अद्भुत रस दो तरह के होते हैं : अलौकिक और हर्षजन्य। अलौकिक अद्भुत रस में अपूर्व दृश्य या घटना की अनुभूति होती है। हर्षजन्य अद्भुत रस उस तरह के हर्ष के लिए हैं जिस के होने की संभावना नगण्य हो अथवा बिलकुल ही असंभव हो।
 
फिल्मों के इतिहास में अधिकतर बड़े बजट की फिल्में, और व्यवसायिक रूप से बहुत सफल फिल्में अद्भुत रस से जुडी हुयी हैं। 

यह बहुत मुश्किल नहीं होगा बहुत बड़े बजट वाली हॉलीवुड की कमाऊ फिल्में (जैसे कि Pirates of the Caribbean, Spider Man, Harry Potter, The Dark Knight, Star Wars,  Superman, James Bond movies, X-Men,  Lord of the Rings Trilogy, Matrix Trilogy, Transformers) का मुख्य भाव अलौकिक अद्भुत रस से सम्बंधित है।

कई महान फिल्म निर्देशकों ने फिल्म सेटों की भव्यता, विशालता से विस्मय पैदा करनी कोशिश रही है। ऐसा कई प्रयोग व्यावसायिक दृष्टि से काफी सफल रहा है।

मूक फिल्मों के सबसे प्रमुख निर्देशक D W Griffith ने अपनी नस्लवादी फिल्म The Birth of a Nation (1915) पर आलोचकों को जवाब देने के लिए उस समय तक की सबसे महँगी फ़िल्म Intolerance (1916) बनायीं। यह फिल्म युद्ध के दृश्यों, बेबीलोन के राजदरबार के भव्य सेटों से सजी उम्दा बनी। लेकिन फिल्म के पिट जाने के बाद ग्रिफिथ के दोस्तों को अपनी फिल्म कम्पनी बंद करनी पड़ी। फिल्म में बेबीलोन का भव्य सेट जो तीन साल बाद नष्ट किया गया, अपने समय में अच्छा खासा आकर्षण केंद्र बन गया था। तीन हज़ार एक्स्ट्रा कलाकारों को सहेजे, यह फिल्म आज भी विश्व सिनेमा की कलात्मक उपलब्धि है.

Dr. Mabuse the Gambler (1922) और M (1931) जैसी अविस्मरणीय जर्मन फिल्मों के फिल्म निर्देशक Fritz Lang (1890- 1976) ने सन 1927 में दुनिया की सबसे महँगी मूक फिल्म Metropolis बनायीं थी। विस्मय के लिए भव्य सेट, बड़े कारखाने, हजारों एक्स्ट्रा कलाकारों की भीड़, पागल वैज्ञानिक का एक हाथ में काला दस्ताना पहनना (Stanley Kubrick की Dr Strangelove (1964) में इसका प्रभाव साफ़ दीखता है) और एक अद्भुत महिला रोबोट भी थी। फिल्म की शूटिंग में भी कई दिक्कतें थी, मिसाल के तौर पर पांच सौ छोटे बच्चों को पंद्रह दिन तक ठण्डे पानी में शूटिंग कराना, आदि। वैश्विक समाजवादी आंदोलनों के दौर में निर्देशक ने यह सन्देश देने की कोशिश की थी कि हाथ और दिमाग के मिलन के बीच में दिल का होना चाहिये।

अमेरिकी निर्देशक Victor Flemming (1875- 1948) दो महान फिल्मों The Wizard of Oz (1939) और Gone with the Wind (1939) के लिए प्रसिद्ध रहे। ये दोनों ही फिल्में अद्भुत रस की हैं। पहली फिल्म में, जो प्यारे प्यारे गीतों से भरी है, डोरोथी नाम की बच्ची सपने में विचित्र प्राणियों और जादूगरों से मिलती है। जब कि इस जादू भरी फिल्म ने बहुत पैसे नहीं कमाये, लेकिन सन 1956 में टीवी प्रसारण के बाद इस फिल्म को महान फिल्मों में गिना जाने लगा। साल 1939 के अंत आयी गोन विद द विंडमुद्रास्फीति के संतुलन के बाद दुनिया के सबसे कमाऊ फिल्म मानी जाती है। इसमें आगजनी का बड़ा विस्मयकारी दृश्य है।

मूक फिल्मों के महान निर्देशकों में प्रमुख Cecil B. DeMille (1881- 1959) ने अपने महान कैरियर में आखिरी फिल्म The Ten Commandments (1956) बना कर भव्यता, कला, और पुरजोर कमाई के लिए नए मानक बना दिए। मूसा और मिस्र के फैरो की बाइबिल की कहानी पर आधारित फिल्म बनाने के लिए मिस्र के इतिहास, नयी तकनीक, आज से साधे तीन हज़ार साल पहले की वेश भूषा का गहरा अध्ययन और प्रयोग है- जैसे कि पिरामिड का निर्माण, मिस्र की औरतों का चेहरा देखने के लिए धातु की चमकती चादर का प्रयोग करना (शीशे का आईना ग्यारहवी सदी के बाद प्रचलन में आया, और चाँदी की परत वाला शीशे का आईना सन 1835 में आया)। फिल्म के प्रसिद्द दृश्य में मूसा नदी को दो हिस्सों में काट कर पानी में लोगो के जाने का रास्ता बना देते हैं। इस अद्भुत कथा का फिल्मांकन फिल्म इतिहास में अमर है।

महान अमेरिकी निर्देशक William Wyler (1902- 1981) जो अपनी रोमांटिक और ड्रामा फिल्मों के लिए जाने जाते थे, ईसा मसीह के समकालीन यहूदी व्यापारी के जीवन पर विशाल फिल्म Ben Hur (1959) ने ग्यारह अकादेमी अवार्ड जीत कर नया कीर्तिमान बनाया था। इस फिल्म में रथों की दौड़ का एक अद्भुत दृश्य है। इसने भी कमाई के नए कीर्तिमान बना दिए थे।

Great Expectations (1946), Oliver Twist (1948), और Brief Encounter (1946) जैसी ड्रामा फिल्मों के लिए प्रसिद्द ब्रिटिश निर्देशक David Lean (1908- 1991) ने दो महान फिल्में बनायीं, जो कि भव्य होने के साथ साथ, फिल्म कला के लिए बड़ी महत्वपूर्ण रहीं- Lawrence of Arabia (1962) और Doctor Zhivago (1965)! विभिन्न देशों और उनकी विषम परिस्थियों, जैसे एक जोशीले आदमी का लंबा रेगिस्तान पार कर जाना, एक युद्ध की अगुवाई करना, कई सालों के बाद बिछड़े प्रेमी-प्रेमिका का मिलना, साइबेरिया का बर्फीला मैदान, ये बृहद फिल्में कई तकनीकी कारणों से भी अद्भुत बन पड़ी हैं, जिसके केवल देख कर अनुभव किया जा सकता है।

मशहूर ड्रामा फिल्म All about eve(1950) के लिए जाने जाने वाले फिल्म निर्देशक Joseph L. Mankiewicz (1909- 1993) ने जब बेहद ही महँगी Cleopetra (1963) बनायी, तब छः घंटे की फिल्मों को काट छांट कर दो भागों में दिखने के बजाये एक ही भाग की तीन घंटे की फिल्म बना दी गयी। उस साल सबसे ज्यादा कमाई करने के बावजूद इस फिल्म ने अपने बड़े बजट के कारण तत्कालीन ४४ मिलियन डॉलर का नुक्सान उठाया था। इस फिल्म में एलिज़ाबेथ टेलर ने पैंसठ बार कपड़े बदल कर नया रिकॉर्ड बनाया था।

बड़ी फिल्मों के बनाने के लिए ढेर सारा पैसा और जोखिम उठाने का कलेजा होना चाहिये। कुरोसावा बहुत दिनों से एक बड़े पैमाने पर फिल्म बनाना चाहते थे। Red Beard (1965) के उपरांत अभिनेता Toshiro Mifune (1920-1997) और Akira Kurosawa (1910- 1998) की महान जोड़ी टूटी, तब से कुरोसावा के हालात बिगड़ते गए। नौबत यहाँ तक आयी कि उन्होंने आत्महत्या का प्रयत्न तक किया। उनकी फिल्मों से प्रभावित Star Wars के निर्देशक George Lucas और Godfather
 
      

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2 comments

  1. ज्ञानवर्धक लेख. बधाई प्रवीर जी.

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