नीलाभ को हम हिंदी वाले कई रूपों में जानते हैं, लेकिन उनका स्थायी भाव कविता ही है. बहुत दिनों बाद मन भर कविताएं पढ़ी नीलाभ की, जिनमें से चुनिन्दा आपसे साझा कर रहा हूँ. आनंद लीजिये- प्रभात रंजन
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ण्त्थितिहुयणि जंच णहुदिट्ठु
तुम्हेहिंवि जंन सुअविअडबन्धु सुच्छन्दुसरसउ
णिसुणेविणुको रहइललियहीणु मुक्खाहफरसउ
तोदिग्गिच्चिय छेअरिहिंपत्तिहि अलहंतेहिं
आसासिज्जइकह कहिवि सइवत्तीरसिएहिं
(सन्देशरासक: अब्दुल रहमान)
(त्रिभुवनमें ऐसाकुछ नहींहै जिसेआप लोगोंने देखाया सुनान हो;
इसकेअलावा, विकट–बन्धऔर सरसछन्द सुनकर
मुझमूर्ख कीलालित्यहीन परुषकविता कोकौन पसन्दकरेगा.
तोभी अभावमें जिसतरह विदग्धजनपात्र केन होनेपर
कमलके पत्तेपर भोजनकरके तसल्लीकर लेतेहैं,
उसीतरह मेरीइस कविताको भीलिग कभी–कभीपढ़ लियाकरेंगे.)
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1
सबूत
क़दमक़दमपर
वेमांगतेरहेसबूत
हमदेतेचलेआये
मुसलमानहोनेपर
अपनीदेशभक्तिकासबूत
औरतहोनेपर
अपनेसतीत्वकासबूत
हरिजनहोनेपर
अपनी मेधा कासबूत
बलत्कृतहोनेपर
चरित्रकीश्रेष्ठताकासबूत
नौकरीकरनेपरनिष्ठाकासबूत
तरक़्क़ीकेलिए
योग्यताकासबूत
हरराष्ट्रीयआपदामें
त्यागऔरसाहसकासबूत
हमनेमांगाउनसेसिर्फ़
मनुष्यताकासबूत
उन्होंनेदियायहहमें
फांसीकेतख़्तेपरलेजाकर
2.
मारागया
जिसरास्तेसेभीजाऊं
माराजाताहूं
मैंनेसीधारास्तालिया
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उम्दा रचनाये
सुबह की चाय
नीलाभ सर से शिमला में चाय पीते हुए सुनी अद्भुत
मैं जानकीपुल.कौम और प्रभातरंजन का तो आभारी हूं ही कि उन्होंने इन कविताओं को प्रकाशित किया, सबसे ज़ियादह मैं आप सभी का विनम्रतापूर्वक आभारी हूं जिन्होंने इन कविताओं को न सिर्फ़ पढ़ा, बल्कि अपनी प्रतिक्रिया भी दी. लिखारी जानते हैं कि ये प्रतिक्रियाएं ही उनके असली पुरस्कार हैं.
इनदिनों नीलाभ जी की रचनाएँ ही पढ़ रहा हूँ. उनकी कविता और संस्मरण में जो तुर्शी है वह नीलाभ जी ही दे सकते हैं. और इस देन के पीछे उनके अनुभव हैं. धन्यवाद जानकीपुल.
ज़िन्दगी की मार-धाड़ में फंसे लोग
उतना भर समाज हैं
जितना दारुण सूखे में
जंगल के अकेले जलाशय पर
प्यास के मारे प्राणी
उक्त पंक्तियाँ सटीक चित्रण करती है संघर्ष का।
नीलाभ जी के साथ प्रभात जी आपको धन्यवाद
मारा गया , कम शब्दों में बहुत कुछ बोलती है
बहुत सुन्दर कविताएं हैं । कई बार पढ़ चुका हूँ पर एक बार फिर से पढ़ गया । पहली और दूसरी कविता ज़्यादा अच्छी लगी । 'मेरी कविताई' शीर्षक कविता में दिक़्क़त है । 'फ़ौजी स्त्रैण' पद पर ध्यान दें । इस तरह की दिक़्क़तों से नीलाभ जी कभी उबर नहीं पाए ।
नीलाभ अपने ढ़्ग के अकेले कवि है .जिस रास्ते से जांऊ..मारा जाता हूं..जैसी पंक्तियां नीलाभ ही लिख सकते हैं.