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क्या आप संगीतकार जेपी कौशिक के बारे में जानते हैं?

संगीतकार जगफूल सिंह कौशिक उर्फ़ जेपी कौशिक ने ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्मों ‘शहर और सपना. तथा ‘सात हिन्दुस्तानी’ में संगीत दिया था. उसी ‘सात हिन्दुस्तानी’ में जिससे अमिताभ बच्चन ने अपना फ़िल्मी सफ़र शुरू किया था. आज वे गुमनामी का जीवन जी रहे हैं. उनके ऊपर बड़ा रोचक लेख लिखा है सैयद एस. तौहीद ने- मॉडरेटर 
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संगीतकार जगफूल कौशिक उर्फ जेपी कौशिक का नाम एक भूला बिसरा नाम है। ख्वाजा अहमद अब्बास की मशहूर शहर और सपनाव ‘सात हिन्दुस्तानी’ में संगीत देने वाले कौशिक खबरों से दूर सांताक्रूज में जीवन की सांझबेला से गुजर रहे हैं। साठ दशक में अब्बास की क्रांतिकारी पेशकश से फिल्म सफर शुरू कर सात हिन्दुस्तानी समेत उनकी तकरीबन आधा दर्जन फिल्मों में संगीत दिया। आप ने राजस्थानी- गुजराती एवं हरियाणवी फिल्मों में भी सेवाएं दी थी। आप के हिस्से में काम की बारंबारता बहुत अधिक नहीं थी। आप ने जिन फिल्मों को सेवाएं दी वो उच्च स्तर की थी। रोहतक हरियाणा की नौकरी त्याग मुंबई आए जगफूल को अब्बास साहेब का सान्निध्य प्राप्त हुआ। इंटर की पढाई के दिनों में आजादी के बिगुल ने अपनी ओर खींच लिया। खुद को इस आहवान से अलग नहीं रख सके। अधूरी पढाई को किनारे कर आजादी के आंदोलन में कूद पडे। संगीत आपको विरासत थोडी दादाजी से मिली। दादा जी होली गीतों को कमाल अंदाज में गाया करते थे। हारमोनियम फनकार पिता की सीखें विरासत का बाकी हिस्सा थीं। नौकरी नहीं राह आई तो हारमोनियम साथ पकड लियाखानदानी जुनून पेशा बन गया।

पिता से मिली हारमोनियम को आपने वसीयत की कबूल किया। जिंदगी के किसी सफर पर निकलेहमसफर साथ रहा। खुद से अलग । फौजियों के मनोरंजन  के लिए वहां के फनकार फौजी जगफूल को ही बुलाया जाता था। आप सांस्कृतिक महफिलों के अहम हिस्सा हुआ करते । ऐसी ही एक महफिल में आपकी मुलाकात उस्ताद अली अकबर खान से हुई। उस्ताद साहेब को आपने गुरू बना लिया। अली अकबर ने बताया कि सरोद के बजाए वायलिन को शिक्षा का माध्यम बनाना आपके लिए लाभदायक होगा। जेपी उसे कबूल कर शिक्षा में लीन हो गए। तकरीबन पांच बरस की इस शिक्षा के दरम्यान आप सचिन देव बर्मन व जयदेव सरीखा सक्षम संगीतकारों के करीब भी आए। जेपी के लिए यह स्वर्णिम समय रहा जब आपको उत्तर लेकर दक्षिण के महान सारथियों का आशीर्वाद मिला। नौकरी के दिनों में जेपी का सलाना मुंबई आना होता था । आपका ज्यादातर समय जयदेव व सचिन देव बर्मन के पास गुजरता था। यह सीखने की प्रक्रिया हुआ करती थी। उस समय संगीत शायद शौक के जुनून से सांसे पा रहा था। संगीत को रोज़ी रोटी का जरिया बनाने की बात नहीं सोंची थी लेकिन वो जरिया बन गया। आज के जेपी अपने अभिन्न केपी टंडन को बहुत ज्यादा मिस करते हैं। टंडन साहेब को आप तोहफे में मिली बेशकीमती शास्त्रीय संगीत की किताबों के लिए याद करते हैं।

साठ दशक के प्रारंभ में जेपी जुनून की आवाज पर हमेशा के लिए मुंबई चले आए। संगीतकार जयदेव व पार्श्व गायक मुकेश के जरिए उन्हें काम तो जरूर मिलालेकिन दमदार शुरुआत नहीं। ख्वाजा अहमद अब्बास की शहर और सपनाने वो शुरुआत दी जिसकी बेशब्री से तलाश थी । अब्बास साहेब तक पहुंचा देने में रमानंद सागर व मनमोहन कृष्ण का रोल सराहनीय था। रमानंद व मनमोहन से जेपी की मुलाकात जेमिनी गेस्ट हाउस में हुई।  मनमोहन ने एक नज्म सुनाकर उसके अनुकूल धुन बनाने को कहा। आपने उसी समय एक उम्दा धुन बना डाली। उस धुन ने मनमोहन का मन मोह लिया। इसी तरह दूसरी नज्म की धुन भी कमाल कर गयी। इत्तेफकाक देखिए यह नज्में अब्बास की शहर और सपनाके हिस्सा बना लिया गया।  अब्बास ने जेपी की धुनें सुनकर समूची फिल्म की जिम्मेदारी आपको दे डाली। उस समय तक अनिल बिश्वास अब्बास की फिल्मों में सेवाएं दे रहे थे। अब्बास की मुन्ना एवं परदेसी फिर राही तथा चार दिल चार राहें में अनिल दा का संगीत था। अली सरदार जाफरी के लिखे गीत यह शाम भी कहां हुई एवं प्यार को आज नयी तरह निभाना होगाव जेपी का संगीत शहर और सपना की खासियत थी। 

अब्बास की इस पेशकश को राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह आज के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों का शुरुआती जमाना था। पुरस्कार के लिए अब्बास पूरी टीम के साथ दिल्ली में आए। नेहरू ने अब्बास को बच्चों के लिए फिल्म बनाने का मशविरा दिया। ‘मुन्ना’ बनानेके  बाद अब्बास ने ‘हमारा घर’ का निर्माण किया। जेपी को इस फिल्म की जिम्मेदारी मिली। आपने हमारा घर के लिए धुनें बनाई। फिल्म में जेपी के बेटे सुनील व बाल कलाकार अजीम पाशा को लिया गया था। फिल्म का गीत तुझको अपनी दुनिया आप बनानी हैको आज भी याद किया जा सकता है। साठ दशक के मध्य में रिलीज हुई अब्बास की आसमान महल में जेपी की अच्छी धुनें संकलित हैं। महेन्द्र कपूर, गीता दत्त व विद्या मजूमदार ने आपकी धुनों पर बोल गाए।  गीता दत्त का गाना अए रात ज़रा आहिस्ता गुजरकाफी लोकप्रिय हुआ। अब्बास व जेपी सर के हवाले से भूले बिसरे अभिनेता मधुकर भी याद आते हैं। मधुकर जी ने अब्बास की सात हिन्दुस्तानमें किरदार निभाया था। अब्बास की बंबई रात की बाहों में तथा सात हिन्दुस्तानी संगीतकार जेपी की यादगार उपलब्धि रही। इन फिल्मों के गीतों को हसन कमाल ने लिखा था। शीर्षक गीत को आशा भोंसले ने अपनी आवाज दी थी। फिल्म के लिए जेपी को राज्य सरकार का सर्वश्रेष्ठ संगीतकार अवार्ड भी मिला था। सात हिन्दुस्तानी में कैफी आजमी के लिखे आंधी आए या तुफान कोई गम नहींको आपने सजाया।
 
      

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10 comments

  1. जेपी कोशिक पर केन्द्रित आलेख बहुत सारी जानकारी देता है और उनकी गुमनामी जिन्दगी की कसक भी

  2. Como recuperar mensagens de texto excluídas do celular? Não há lixeira para mensagens de texto, então como restaurar mensagens de texto após excluí – Las?

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