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सिनेमा में वीर रस क्या होता है?

युवा लेखकों की एक बात मुझे प्रभावित करती है- वे बड़े फोकस्ड हैं. अपने धुन में काम करते रहते हैं. अब प्रचण्ड प्रवीर को ही लीजिये रस-सिद्धांत के आधार पर विश्व सिनेमा के विश्लेषण में लगे तो लगता है उसे पूरा किये बिना नहीं मानेंगे. आज वीर रस की फिल्मों पर उनके लेख का दूसरा खंड. अंतराल हो गया है, लेकिन पिछले लेखों के लिंक दिए गए हैं- प्रभात रंजन 
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इस लेखमाला में अब तक आपने पढ़ा:
1. हिन्दी फिल्मों का सौंदर्यशास्त्र https://www.jankipul.com/2014/06/blog-post_7.html

2.भारतीय दृष्टिकोण से विश्व सिनेमा का सौंदर्यशास्त्र https://www.jankipul.com/2014/07/blog-post_89.html

3.भयावह फिल्मों का अनूठा संसार https://www.jankipul.com/2014/08/blog-post_8.html

4.वीभत्स रस और विश्व सिनेमा https://www.jankipul.com/2014/08/blog-post_20.html

5. विस्मय और चमत्कार : विश्व सिनेमा में अद्भुत रस की फिल्में https://www.jankipul.com/2014/08/blog-post_29.html

6.  विश्व सिनेमा में वीर रस की फिल्में – (भाग) – https://www.jankipul.com/2014/09/blog-post_24.html

भारतीय शास्त्रीय सौंदर्यशास्त्र के दृष्टिकोण से विश्व सिनेमा का परिचय कराती इस लेखमाला की छठी कड़ी में वीर रस की विश्व की महान फिल्में भाग २ :-
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विश्व सिनेमा में वीर रस की फिल्में (भाग- २)

(…पिछले अंक से आगे)
शत्रु से लड़ाई को दर्शाती वीर रस की फिल्में
अब चर्चा करते हैं उन फिल्मों का जिसमें उत्साह का साधारण अर्थ लिया जाता है, मतलब शत्रु से युद्ध।  इस अर्थ में वीरता के लिये आवश्यक है कि कोई शत्रु हो। कई परिस्थितियों में यह व्यक्तिगत शत्रु होता है, कई बार जोखिम भरे कामों में हर तरह की बाधा को शत्रु समझा जाता है, बहुधा शत्रु समाज का शत्रु होता है, या उसे समाज का शत्रु की तरह पेश किया जाता है। सेना में परीक्षण के दौरान यह सिखाया जाता है कि जिसपे निशाना चलाया जा रहा है वह शत्रु है। सैनिक का काम शत्रु की पहचान करना नहीं, बल्कि उससे हट कर मात्र शत्रु को समाप्त करना हो जाता है। लेकिन उत्तम कोटि के वीर अपने शत्रु की पात्रता देखते हैं। जितना बड़ा वीर, उतना बड़ा शत्रु। वीरों को अपने बराबर के शत्रु से लड़ना चाहिये. अगर शेर चूहे शिकार करे तो क्या कहा जा सकता है? इसलिये महावीर, महानायक या सुपरहीरो के फिल्मों के कथानक में शत्रु या बाधा या दुर्घटना का अर्थ भी बहुत बड़ा करना पड़ता है। मिसाल के तौर पर Superman (1978) फिल्म में अंत में नायक की असीम क्षमता को दिखाने के लिये वह असंभव कार्य करते, यहाँ तक कि समय का चक्र बदलता नजर आ जाता है। Spiderman(2002, 2004, 2007, 2012, 2014) फिल्मों में हर बार बेहद ताकतवार खलनायक नजर आते हैं। बैटमैन फिल्में Batman Series (The Dark Knight वगैरह) जिनमें बैटमैन केवल अपने बुद्धि और शक्ति से दुश्मनों को पराजित करता है वे परालौकिक न हो कर बैटमैन की तरह ही बुद्धिमान और शक्तिशाली नजर आते हैं।
भारतीय दृष्टिकोण से वीरों के चिंतन पर कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान लिखती हैं कि वीरों का कैसा हो वसंत’ :-


गलबाँहें हों या हो कृपाण

चलचितवन हो या धनुषबाण

हो रसविलास या दलितत्राण

अब यही समस्या है दुरंत –

वीरों का कैसा हो वसंत


भारत में शूरवीरता का पारंपरिक चित्रण करना हो तो तत्क्षण शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविन्द सिंह जैसे नायकों का ध्यान आता है जिनके पास तलवार, कटार, खंजर, ढाल जैसे अस्त्र होंगे, भाला जैसा शस्त्र होगा, और एक मजबूत कद काठी का घोड़ा वाहन होगा। लेकिन अब औद्योगिक क्रांति के बाद घोड़े, तलवार, खंजर पुरानी बातें हो गयीं। यहाँ वीरता का अर्थ एक पुरुष कर एक या दो-तीन लोगों से युद्ध हो जाता है। कभी किसी कथानक में कोई नायक एटम बम ले कर एक साथ सब कुछ समाप्त करने के लिए उद्धत नहीं दिखायी देता, बल्कि ऐसा करने वाला खलनायक दिखलाये जाते हैं। सिनेमा में शूरवीर हमेशा किसी किस्म की बन्दूक ले कर चलेंगे।

वीर रस की फिल्मों में वेस्टर्न फिल्में अक्सर सराही जाती हैं। वेस्टर्न मूवीज उन फिल्मों को कहते हैं जो उन्नीसवीं सदी के अमेरिका में (पश्चिम में – अत: वेस्ट में) स्थित वहाँ के मूल निवासियों से युद्ध करता निशानेबाज नायक घोड़े पर चलता हो, और बन्दूक से लोगों मुकाबला करता नज़र आता हो। यह फार्मूला बहुत चला और अभी तक चलता ही आ रहा है। लेकिन इसको कला के रूप में स्थापित करने वाले थे महान आयरिश मूल के अमेरिकी निर्देशक जॉन फोर्ड John Ford (1894 – 1973), जिन्हें कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया। उनकी फिल्म Stage Coach (1939) को ऑर्सन वेल्स ने Citizen Kane (1940) बनाने से पहले चालीस बार देखी थी। अकिरा कुरोसावा अपनी फिल्मों पर उनकी वेस्टर्न फिल्मों का गहरा प्रभाव मानते थे। सत्यजित राय, फेडेरिको फेलिनी, इंगमार बर्गमन, मार्टिन स्कोरसीज, झों लुक गोडार्ड, अल्फ्रेड हिचकॉक, क्लाइंट ईस्टवुड जैसे निर्देशक उनका लोहा मानते थे। जॉन फोर्ड की The Informer (1935), Stage Coach (1939), The Grapes of Wrath (1940), How Green Was My Valley (1941), The Searchers (1956), The Man Who Shot Liberty Valance  (1962) विश्व सिनेमा में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। वीरता को दर्शाने के लिए उन्होंने नायकों में मति, गर्व, क्रोध जैसे भावों को दर्शाया। कई बार उनका नायक उदार, दयालु, किन्तु जिद्दी और अदम्य शारीरिक क्षमता रखने वाला हुआ करता। जमीन से जुड़ा उनका नायक रेगिस्तान को पार करता, बड़े पहाड़ों पर चढ़ता, बरसती गोलियों से जूझता निर्बल लोगों की रक्षा करता।
ऑस्ट्रिया में जन्मे अमेरिकी फिल्मों के निर्देशक Fred Zinnemann (1907- 1997) की कई फिल्में वीर रस पर आधारित थी। इसमें High Noon (1952) वास्तविक समय सीमा में दिखायी गयी शानदार फिल्म है, जिसमें नायक गैरी कूपर अपनी शादी के दिन ही टाउन मार्शल होने के नाते शहर में आये गुंडों के गिरोह से जान हथेली पर लिए अकेला ही भिड़ जाता है। उनकी From Here to Eternity (1953) में पर्ल हार्बर से ठीक पहले सैनिकों का जीवन दिखाते कर्तव्य प्रतिबद्धता, और फिल्म A Man For All Seasons (1966) में मध्यकालीन इंग्लैंड में एक मंत्री का अपने विचारों और कर्तव्यों से प्रतिबद्धता बहुत सुन्दर रूप से दिखायी गयी हैं। फिल्म The Day of the Jackal (1973) में फ्रांस के राष्ट्रपति के हत्या का षड़यंत्र को विफल करने में लगे नौकरशाह की वीरता का वर्णन है।
अगर हम हिन्दी फिल्मों की तरफ नज़र दौड़ाये तो यहाँ सर्वशक्तिमान, बुद्धिमान, बलवान, निशानेबाज, भरोसेमंद नायकों का दौर अमिताभ बच्चन के उदय के साथ होता है। फिल्म शोले (1975) कई वेस्टर्न फिल्मों जैसे अकिरा कुरोसावा की महान फिल्म Seven Samurai (1954) पर आधारित The Magnificent Seven (1960), इटालियन निर्देशक सेर्जो लिओने Sergio Leone (1929 – 1989) की बिना नाम वाले नायक की तीन फिल्में- For A Few Dollars More (1965) (अकिरा कुरोसावा की  Yojimbo (1961) पर आधारित),  The Good, The Bad and the Ugly (1966), और Once Upon A Time in The West (1968);  Sam Peckinpah (1925 –1984) की The Wild Bunch (1969) और  दो बैंक डकैतों की सच्ची कहानी पर आधारित The Butch Cassidy and Sundance Kid (1969) जैसी बहुचर्चित फिल्मों से प्रेरित थी। क्या किसी प्रबुद्ध दर्शक को इन फिल्मों को नहीं देखना चाहिये, जब कि आज के दौर में ऐसी फिल्में इंटरनेट पर सुलभ हो गयी हैं।


अमेरिकी निर्देशक Sam Peckinpah (1925 –1984) आजीवन वीर और वीभत्स रस से जुड़ी फिल्में बनाते रहे। द्वितीय विश्वयुद्ध की घटनों पर आधारित Cross of Iron (1977) में वीरता, कर्त्तव्य और पुरस्कार की अच्छी विवेचना की गयी है। उपरोक्त वेस्टर्न फिल्मों में वीरता दर्शाने के लिए बदले की भावना, बदला लेने के लिए हिंसा, निशानेबाजी, सुन्दर स्त्रियों के द्वारा नायक का अभीष्ट होना दिखाया जाता है। यहाँ सुभद्रा कुमारी चौहान में वीरता के मानक को छिन्न-भिन्न करते गलबाँहें, कृपाण, चलचितवन, धनुषबाण, रसविलास, दलितत्राण, सारे चीजें वीरों के वसंत में दिखायी जाती हैं। यह भी स्मरणीय है कि ये कोई जरुरी नहीं है कि वीरता के ऐसे पश्चिमी मानक श्रेष्ठ हों। लेकिन आम दर्शक अक्सर ऐसी गलती कर बैठते हैं।
इस तरह से जॉन फोर्ड से प्रभावित हो कर, वीर रस की महान फिल्म बनाने वालों में सर्वेश्रेष्ठ जापानी निर्देशक अकिरा कुरोसावा को कहा जा सकता है, जिनकी  Seven Samurai (1954),  The Hidden Fortress (1958), Yojimbo (1961), और High and Low (1963) में उत्साह भाव के कई अनछुये एवं शाश्वत आयाम जुड़े हैं। इन फिल्मों पर चर्चा करने से ठीक पहले हमें कायरता और वीरता पर चर्चा करनी चाहिये। आमतौर पर कायर उसे कहा जाता है जो कि ज़ोखिम भरे कामों से डरता हो, जहाँ पर कार्य सिद्धि होनी चाहिये, वहाँ बहाना बना कर कन्नी काट लेता हो। कायरता की परिभाषा ऐसे भी दी जाती है कि यह एक ऐसा भाव है जहाँ पर मानव की आकांक्षा किसी डर से अवरुद्ध हो जाती है जिससे उसके बराबरी के लोग करने का साहस रखते हैं। किसी कमजोर, जीर्ण-शीर्ण, वृद्ध आदमी से शारीरिक वीरता अपेक्षित नहीं होती। यदि हमारे सामने कोई ऐसा लक्ष्य रख दिया जाए जहाँ पर हमारी हार सुनिश्चित हो, तो क्या उसे नकारना कायरता माना जाएगा? उदहारण के तौर पर, अगर हमें किसी पहाड़ से खाई में सकुशल कूदने को कहा जाये, निश्चय ही हमारा डर कायरता में नहीं माना जायेगा। अगर हमारे सुरक्षा का पूरा इंतज़ाम हो, फिर कुछ जोखिम हो, जैसे कि पैराशूट लगा कर ऊँचाई से हवा में कूदना, काफी ऊँचाई से एक रस्सी किसी बाँस के सहारे चलना, ऐसे करतब करने के लिए हमारे कायरता का पैमाना एक वर्ग विशेष से सम्बंधित हो जाएगा, जो ऐसे काम करने में सिद्धहस्त हो। फ्रेंच निर्देशक Henri-Georges Clouzot की The Wages of Fear (1953) में वीरता और कायरता के बहस के दौरान एक पात्र कहता है कि युवा लोग जोखिम उठा लेते हैं क्योंकि उनके पास पर्याप्त अनुभव नहीं होता, और चालीस के उम्र का आदमी बहादुरी का सही मतलब समझता है।
कुरोसावा की फिल्मों में वीरता को हमेशा कायरता के वैषम्य में दिखाया जाता रहा है। फिल्म Seven Samurai (1954) के निर्माण के दौरान कई लोगों को गाँव वालों के विशिष्ट चरित्रों में ढाला गया, इसके बाद शूटिंग शुरू की गयी। फिर सात समुराई योद्धाओं द्वारा कमजोर गाँव वालों को आत्म रक्षा के लिए तैयार करना, फिल्म का बड़ा हिस्सा है। इस फिल्म की शुरुआत में यह डायलॉग है- घाटी के एक छोटे से गाँव में चार समुराई योद्धा की कब्रें हैं। जब जापान महत्वकांक्षी समुराई से टूटा फूटा था, ये कहानी है सात समुराई योद्धाओं की, जिन्होंने अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए नहीं बल्कि गरीब किसानों के रक्षा के लिए युद्ध किया। इनमें तीन जो नहीं मरे, उन्होंने गाँव छोड़ दिया और फिर कभी उनके बारे में कभी सुना नहीं। लेकिन जिस बहादुर और आत्म बलिदान की भावना से उन्होंने लड़ाई लड़ी, वह आज भी बड़े सम्मान के साथ याद की जाती है। वे समुराई थे.दलितत्राण और यश की अनिच्छा, न्याय की प्रति निष्ठा, दया और शौर्य जैसे मूल्यों से सजी यह फिल्म विश्व सिनेमा की व्यवसायिक रूप से सफलतम और आलोचकों द्वारा सर्वाधिक सराही फिल्मों में से एक गिनी जाती है। निर्देशक जौर्ज़ लुकास George Lucas (जन्म 1944) की सफल फिल्म Star Wars Episode IV: A New Hope (1977) कुरोसावा की The Hidden Fortress (1958) से बहुत प्रभावित थी, जिसमें एक सेनापति अपनी राज्य की राजकुमारी की रक्षा में एक गुप्त किले में रह रहा होता है। दो गरीब, लालची और डरपोक किसान सोने की लालच में सेनापति और राजकुमारी को एक पड़ोसी देश तक ले जाने के सफ़र में उनके सहयात्री बन जाते हैं। इस श्वेत श्याम फिल्म में घाटी में छुपा गुप्त किला, एक राज्य का जल में छुपा गुप्त धन, खूबसूरत राजकुमारी की चपलता और न्याय प्रियता, प्रसिद्ध और महान तलवारबाज सेनापति का शौर्य जैसे तत्व इसके कथानक और दृश्य को अनुपम बना देते हैं। इस फिल्म को देख कर हमें अफसोस होता है कि आज तक हिन्दी फिल्म सिनेमा उद्योग चंद्रकांता’, ‘चंद्रकांता संततिऔर भूतनाथजैसे महान रोमांचक कहानियों पर एक भी फिल्म न बना सका। क्या हमारे पास अच्छे संवाद लेखक नहीं हैं, या निर्माताओं के पास पैसे नहीं, या अच्छे निर्देशकों का सर्वथा आभाव है?

कुरोसावा की Yojimbo (1961) में महान अभिनेता तोशिरो मिफ्यून ने एक समुराई का किरदार निभाया है जो एक छोटे से शहर में दो गैंग की लड़ाई के बीच अपने बुद्धि और शौर्य से बदमाशों का अकेले ही खात्मा कर देता है। फिल्म के क्लाइमेक्स में अकेला समुराई बहुत सारे गुंडों पर भारी पड़ता है और सब का वध कर डालता है। इस फिल्म में गुण्डे मंदबुद्धि और कायर दिखाये गये हैं। फिल्म High and Low (1963) एक पुलिस ड्रामा है, जिसमें एक अमीर आदमी के ड्राईवर के बेटे का अपहरण हो जाता है। जबकि अपहरण अमीर आदमी के बेटे का करना होता है, पर अपहरणकर्ता उस अमीर आदमी को फिर भी उतनी ही रकम देने के लिए बाध्य करता है। चूँकि अमीर आदमी के ड्राईवर का एक ही बेटा होता है, अपनी पत्नी के दवाब में आ कर फिरौती चुकता कर के बच्चे को छुड़ा लेता है। इसके बाद पुलिस उस बदमाश का पता लगाती है। यह उदहारण है कि रहस्य-रोमांच की फिल्में कई बार उत्साह और भय भाव के बीच झूलती रहती हैं। हमें यह भी याद रखना चाहिये कि रस कुछ दृश्यों में कुछ क्षणों में होता है। कोई भी स्थायीभाव हमेशा नहीं रह सकता। 

कुरोसावा की उपरोक्त फिल्में संवाद से ज्यादा कलाकारों के अभिनय, सातिव्क भाव, अंग प्रत्यंग की गतियों से सुशोभित रहीं। इन फिल्मों के दृश्य भी यादगार रहे। कुछ फिल्म विशारद- जैसे कि कुरोसावा, ऑर्सन वेल्स, बर्गमैन, तारकोवस्की, अल्फ्रेड हिचकॉक दृश्यों की परिकल्पना, शूटिंग का कोण, सेट पर कथानक से कहीं ज्यादा ध्यान देते रहे। उनकी तकनीकें कथानक, अभिनय, पार्श्व संगीत पर कई बार हावी पड़ती रही। इसलिए कई बार फिल्म विशारदों की फिल्म कई कई बार देखना भी रुचिकर अनुभव होता है।

सेर्जो लिओने की डॉलर ट्रायोलॉजी से मशहूर हुये क्लाइंट इस्टवुड ने Dirty Harry फिल्म सीरिज  (1971, 1973, 1976, 1983, 1986) में एक इंस्पेक्टर को अपराध से लड़ते हुये दिखाया और बेहद लोकप्रियता पायी। उनकी निर्देशित Unforgiven (1992) औऱ Million Dollar Baby (2004) ने ऑस्कर सम्मान पाया। फिल्म Unforgiven (1992) में एक बूढ़ा निशानेबाज पैसों के लिये कुछ बदमाश लोगों का कत्ल करने निकलता है और इस यात्रा में वीरता के साथ सहृदयता, कर्त्तव्यबोध, समझ, और हत्यारे की नृशंसता का अद्भुत चित्रण है।

नायकों का चरित्र सुदृढ हो यह आवश्यक नहीं। चिड़चिड़ा, रूखा, वक्री स्वाभाव का नायक किसी अपराध में लिप्त या उसको सुलझाता, कत्ल की वारदात, जिसमें अपूर्व खतरनाक सुंदरियों का छल कपट हो, ऐसे फार्मूलों से भरी श्वेत श्याम न्वायर फिल्में (film noir) चालीस औऱ पचास के दशक में काफी चलती थी। फिल्मों के इतिहास के अध्ययन में यह याद रखना चाहिये कि अधिकांश फिल्में काफी लागत से बनती थी। कई अच्छे निर्देशक केवल फिल्में बनाने अमेरिका बस गये (जैसे चार्ली चैप्लिन, अल्फ्रेड हिचकॉक आदि)। अमेरिकी फिल्मों ने दुनिया भर की फिल्मों को प्रभावित किया। कई बार इस वजह से कि फिल्में तकनीक से अलग नहीं रही, और तकनीक को ले कर नवीनतम प्रयोग (जैसे बोलती फिल्में, रंगीन फिल्में, त्रिआयामी फिल्में) हॉलीवुड में होते रहे। फिल्म न्वायर अपनी श्वेत श्याम की सिनेमेटोग्राफी क

 
      

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