आईआईटी से विज्ञान पढ़कर प्रचण्ड प्रवीर जब से गल्प की दुनिया में आये हैं तब से किस्सों की झड़ी लगा दी है उन्होंने. कहते हैं कि सारे देशी संस्थान विदेशी विज्ञान पढ़ाते हैं. इसलिए अब मेरी उनमें रूचि कम होती जा रही है. किस्से-कहानियों की दुनिया में आये ही इसलिए हैं क्योंकि उनका मानना है कि यह भारत का मूल ज्ञान है, और जहाँ ज्ञान होता है विज्ञान वहीं होता है. आज स्वामी विवेकानंद की जयंती पर उनकी नजर विज्ञान के कूड़े के ढेर के नीचे दबे इस किस्से पर गई. कौन कह सकता है कि आधुनिक विज्ञान भारतीय आध्यात्म का ऋणी नहीं है. हाँ, यह ऐसा ऋण है जिसे ऋण लेने वाला डकार गया. हमारे वैज्ञानिक आविष्कारों को पचा गया, अपने नाम पर पेटेंट करवाकर न जाने कितने वैज्ञानिक दुनिया में छा गए. आज ऐसे ही एक वैज्ञानिक का किस्सा जिसके काम के पीछे प्रेरणा थी स्वामी विवेकानंद की. आप कहेंगे प्रमाण, तो साहब अनुमान के आधार पर काम करने वाले लोगों को प्रमाण नहीं माँगना चाहिए. अब इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा कि लोक में यह किस्सा मौजूद है.
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महान वैज्ञानिक निकोला टेसला को हम दुनिया में बिजली के उपकरणों के सुगम उपयोग के आविष्कार लिये जानते हैं। निकोला टेसला पर स्वामी विवेकानंद का प्रभाव दुनिया में किसी से छुपा नहीं रहा है। लेकिन हाल ही में निकोला टेसला पर शोध करने वाले इतिहासकारों ने एक ऐतिहासिक तथ्य को उजागर किया है। सर्बिया मूल का वैज्ञानिक टेसला ने थॉमस अल्वा एडीसन के प्रयोगशाला की नौकरी सन 1882 उसकी वादाखिलाफी से चिढ कर छोड़ दी थी, जब पचास हजार डालर देने का वादा कर के मुकर जाने के बाद एडीसन ने टेसला की तनख्वाह केवल दस डॉलर से बढा कर अट्ठारह डॉलर करने की पेशकश की। अगले कुछ सालों तक छिट-पुट मजदूरी और कब्र खोदने का काम करने वाला पागल वैज्ञानिक इतनी बड़ी कम्पनी का मालिक कैसे बना इसके पीछे एक गहरा रहस्य है। सन 1893 में शिकागो के विश्व कोलम्बिया मेले में टेसला की कंपनी ने एडीसन के कंपनी के डायरेक्ट करेंट के बदले अल्टरनेटिंग करेंट पर जो दाँव लगाया, उसी ने टेसला की किस्मत बदल दी। इसी मेले से ठीक पहले निकोला टेसला की मुलाकात स्वामी विवेकानंद जी से हुयी थी, जिन्होंने टेसला को अल्टरनेटिंग करेंट का आध्यात्मिक ज्ञान दिया था। इसी रहस्य के कारण निकोला टेसला जीवन भर ब्रह्मचारी रहे, और स्वामी विवेकानंद के अहसानमंद रहे। #मेडइनइण्डिया
प्रेरक पोस्ट हेतु आभार .