मुम्बई के अपराधियों को लेकर एक से एक ब्लॉकबस्टर किताबें लिखने वाले पत्रकार से किताबकार बने एस. हुसैन जैदी की एक किताब है ‘मुम्बई की माफिया हसीनाएं’. इस किताब में मुम्बई के रेड लाईट एरिया कमाटीपुरा की अम्मा गंगूबाई का भी एक किस्सा है, जो बहुत प्रेरणादायक है.
ब्लाउज में सोने की बटन लगाने वाली और टूटे दाँतों की जगह सोने के दांत लगाने वाली गंगूबाई का कमाटीपुरा में ऐसा जलवा था कि वहां उसकी मूर्ति आज भी लगी है. उसके मरने के दशकों बाद आज भी कोठों पर उनकी तस्वीर टंगी मिलती है.
इसके कारण हैं. वह कमाटीपुरा की पहली अम्मा थी जिसका रुतबा समाज में था. वह पहली बदनाम औरत थी वहां की जिसने वहां की वेश्याओं के हक़ की लड़ाई लड़ी. उसने उस समय के कुख्यात बदमाश करीम लाला को राखीबन्द भाई बनाया. वह काठियावाड़ की थी और वह खुद को कोठेवाली नहीं कठेवाली कहलवाना पसंद करती थी. कहते हैं कि उसका रुतबा इतना बुलंद हो गया कि वह कमाटीपुरा में सबसे कम उम्र की कोठे वाली बनी. वह भी चुनाव जीतकर. वह कमाटीपुरा की पहली महिला थी जिन्होंने मुम्बई के आजाद मैदान में भाषण दिया और वेश्याओं की समाज में जरुरत और उनके हक़ को लेकर खुलकर भाषण दिया.
बहरहाल, किस्सा यह है कि 1960 के दशक के आरम्भ में कमाटीपुरा के पास सेंट एन्थोनी स्कूल के संचालकों ने वहां से वेश्याओं की बस्ती को हटाने की मुहिम शुरू की. उसके पीछे यह कानून था कि शिक्षा संस्थान के 200 मीटर के दायरे में इस तरह के धंधे नहीं किये जा सकते हैं. रेडलाईट एरिया के खिलाफ मजबूत आन्दोलन उठ खड़ा हुआ. वह ज़माना सुधार-उद्धार का था. कमाटीपुरा की धन्धेवालियाँ डर गईं और वे सब मिलकर गंगूबाई के पास गई.
इस पर किस्सा यह है कि गंगूबाई ने अपने रसूख से प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु से मिलने का समय ले लिया. नेहरु जी के सामने उसने बड़े तर्कपूर्ण ढंग से कमाटीपुरा के महत्व और जरूरत को लेकर अपनी बात रखी और यह कहा कि क्यों समाज को बचाने के लिए उसे बचाए रखना जरूरी है.
किस्सा यह है कि नेहरु जी उसकी वक्तृता से बड़े प्रभावित हुए और कहा कि वह इस धंधे में क्यों आई जबकि उसे अच्छा पति मिल सकता था, वह इतनी हुनरमंद है. नेहरु जी ने उसे सलाह दी कि उसे यह बुरा काम छोड़ देना चाहिए. उसने तत्काल जवाब देते हुए कहा कि अगर आप मुझे मिसेज नेहरु बना लें तो मैं यह धंधा छोड़ दूंगी. यह सुनकर प्रधानमंत्री बड़े नाराज हुए. इस पर गंगूबाई ने कहा कि सर मैं तो यह साबित करने के लिए यह कह रही थी कि कुछ करने से उपदेश देना हमेशा आसान होता है.
नेहरु जी प्रभावित हुए और उन्होंने उसको आश्वासन दिया कि वे कानून के मुताबिक़ जो उचित होगा करेंगे. कहते हैं उसके बाद कमाटीपुरा को हटाये जाने का इरादा टाल दिया गया. इस तर्क के आधार पर कि वहां रेड लाईट इलाका बहुत पहले से था, जबकि स्कूल बाद में खुल. तब स्कूल बनाने वाले अंधे थे जो उन्होंने इस बात की तरफ ध्यान नहीं दिया.
किस्सा यह है कि यह प्रधानमंत्री से गंगूबाई की उस मुलाकात का ही नतीजा था. एस. हुसैन जैदी ने लिखा है कि वैसे इस किस्से का कोई प्रामाणिक आधार नहीं मिलता लेकिन कमाटीपुरा में आज भी इस किस्से को बड़े फख्र से सुनाया जाता है.
bahut badiya ..
Bahoot Badhiyan