Home / ब्लॉग / राजनीति की चालें और लेखक!

राजनीति की चालें और लेखक!

मुझे पुण्यप्रसून वाजपेयी की वह बात अक्सर याद आती है जो उन्होंने बहुत पहले मुझे साक्षात्कार देते हुए कही थी. उन्होंने कहा था कि भारतीय मानस में अभी कैमरे का मतलब सिनेमा होता है. आप टीवी का कैमरा लेकर कहीं भी जाइए लोग सिनेमा की शूटिंग की तरह जुटने लगते हैं. टीवी पत्रकारिता को लेकर लोग गंभीर नहीं हो पाए हैं अभी.

बहरहाल, लेखकों द्वारा साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाए जाने के प्रकरण में त्याग, नाटकीयता के बीच अतिनाटकीयता का तत्व पैदा किया एबीपी न्यूज ने. उस चैनल ने लेखकों का संवाद आयोजित किया और बीच शो में मुनव्वर राना ने पुरस्कार लौटाने का ऐलान कर दिया. सिर्फ ऐलान ही नहीं किया बल्कि लाइव शो में पुरस्कार लौटा कर जबरदस्त धमाका कर दिया.

उनको प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से मिलने के लिए बुलाया गया. अब वे जायेंगे, उनके साथ और लेखक जायेंगे यह तय होना बाकी है. लेकिन इतना जरूर हुआ कि इसकी वजह से मूल वजह पीछे छूट गई. पुरस्कार लौटाने की वजह  अकादेमी पुरस्कार प्राप्त कन्नड़ लेखक कलबुर्गी की हत्या थी, और उस हत्या को लेकर साहित्य अकादेमी की तरफ से किसी तरह का शोक प्रस्ताव न आना था. सबसे पहले उदय प्रकाश ने इसी मुद्दे को लेकर पुरस्कार लौटाया था. बाद में अशोक वाजपेयी ने दादरी की घटना को मुद्दा बनाकर पुरस्कार लौटाया. उसके बाद पुरस्कार लौटाने वाला ज्यादातर लेखक समाज में बढती असहिष्णुता को लेकर पुरस्कार लौटा रहे थे.

हालाँकि यह बात बार-बार उठती रही कि क्या साहित्य अकादेमी पुरस्कार सरकारी पुरस्कार है? क्या इसकी स्वायत्तता को लेकर हमारे मन में पहले से संदेह रहा है? क्या पहले जितने पुरस्कार दिए गए वे सरकार की नीतियों को ध्यान में रखते हुए दिए गए? कल गुलजार साहब ने भी यही बयान दिया है कि साहित्य अकादेमी पुरस्कार सरकार नहीं देती है. हालाँकि, यब बात भी है कि अगर लेखक आहत हो तो वह क्या करे?

कल जबकि साहित्य अकादेमी ने कलबुर्गी की हत्या की निंदा कर दी है. लेखकों एक व्यापक दबाव के सामने संस्था को पहली बार झुकना पड़ा है तो क्या यह बात यहीं समाप्त हो जाती है? लेखकों को पुरस्कार वापस ले लेना चाहिए. यह एक बड़ा प्रश्न है.

मुझे अपने दो मूर्धन्य लेखकों के कथन याद आते हैं जो उन्होंने राजनीति को लेकर दिए थे. अज्ञेय जी का यह मानना था कि लेखकों को राजनीति से दूर रहना चाहिए. दूसरी तरफ उनके ही समकालीन लेखक मुक्तिबोध पूछते थे- पार्टनर तुम्हारी पोलिटिक्स क्या है!

राजनीति में फंसकर लेखकों का यह पावन कदम कलुषित होता जा रहा है! 
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम

आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *