Home / ब्लॉग / तेरे मेरे इश्क़ की वही पुरानी कहानी नहीं है ‘बाजीराव मस्तानी’ और ‘तमाशा’

तेरे मेरे इश्क़ की वही पुरानी कहानी नहीं है ‘बाजीराव मस्तानी’ और ‘तमाशा’

ज्योति नंदा ने पिछले साल के आखिर में आई दो फिल्मों पर एक पठनीय लेख लिखा है- मॉडरेटर 
==============================================================
“बाजीराव मस्तानी” दर्शन से पहले “तमाशा” देखी थी। “तमाशा” देखने के बाद इतना कुछ कहने को मन हुआ कि शब्दों की तरतीब ही न बन सकी, सो कुछ नहीं कहा। कभी किसी फिल्म; किसी किताब, किसी कहानी या व्यक्ति से जुड़ाव इस कदर हो जाय कि दूर बैठ के देखना कठिन लगे  तो चुप ही रहना बेहतर । “बाजीराव मस्तानी” देखने के बाद भी कहने का मन हुआ, लेकिन “तमाशा” तो अब भी साथ है । मुझे दोनों फिल्मो में बहुत सी समानताऐं  दिखती है। 
    “बाजीराव मस्तानी” प्रेम कहानी है। “तमाशा” भी प्रेम कहानी है. ऐसा दोनों फिल्मो के निर्देशक कहते है। एक ही कथ्य होते हुए भी बहुत सी असमानताएं भी है. 
    असल में  हर हिंदी फिल्म नायक नायिका की प्रेम कहानी ही है। “वही पुरानी कहानी बार बार कही जाती है।” विमल रॉय, राज कपूर, गुरुदत्त, मनमोहन देसाई,प्रकाश मेहरा, यश चोपड़ा से होते हुए “चली कहानी”, चल रही है। बस  कहने का तरीका बदल- बदल जाता है। इसीलिए कभी- कभी दृश्यों में होकर भी कहानी “फ़क़त जुबानी” बचती है। प्रेम कहानी होकर भी “छुटपुट आशिकी में ढली कहानी” बनके रह जाती है जैसे “बाजीराव मस्तानी”। हमेशा की तरह संजय लीला भंसाली की कहानी में कहानी किसी मनोरम फ्रेम  के लुभावने  रंग में घुल कर कहन खो देती है, छुप जाती है मोहक दृश्यों के कोलाज़ में। वो विजुअल मीडियम को भरपूर जीते है।  दर्शक सचमुच कुछ घंटो के लिए अंधेरे यथार्थ से कूद कर परदे के नीले ,पीले,चम्पई, सुरमई  रंगो में डूब जाता है। 
   कभी- कभी कोई इम्तियाज़ अली दावा करता है  “अनगिन साल से वही पुरानी तेरे मेरे इश्क़ की कहानी” है “तमाशा” , उन्ही बने बनाये रास्तों पे चलते जाने का भ्रम देते हुए वो नायक नायिका के छिटपुट आशिकी से बहुत आगे निकल जाता है। उसकी पूरी कहानी प्रेम कविता बनकर दृश्यों में ढली जिंदगी की कविता बन जाती है।  वो “मुहब्बत की मिसालों का सफरनामा” लिखते- लिखते “शुरू तुमसे खत्म तुमपे” कहते- कहते,  तुम और मैं से ऊपर उठ जाता है, उसके किरदार पीठ पे यात्राओ का सामान नहीं ढोते वो दुनिया से मिली या  कहे लाद  दी गयी पहचान को पिट्ठू बैग में ठूंस के घूमते- फिरते है, पैरो में पहन लेते है अपने अस्तित्व की तलाश।  फ़िल्मकार इम्तियाज़ की कहानियो में प्रेम जीवन का मर्म है. जीवन किसी भी हालात में ठहरता नहीं। हमें कई बार रुका सा लगता है। मगर निष्क्रियता भी समय के बाहर नहीं है और समय गतिहीन नहीं होता।  इसी निष्क्रिय सी लगती प्रेम गली में “फिर से उड़ चला मन” को गतिशील  दर्शाने के लिए जो “कभी डाल डाल कभी पात पात” उड़ता है,  वो अपनी चलती फिरती कहानियों  में कभी  ट्रेनों (जब वी मेट )  कभी सड़कों पे ट्रक और मोटरसाईकिल (हाइवे और रॉकस्टार) जैसे साधनो का इस्तेमाल करते है। 
संजय लीला भंसाली की प्रेम कहानी में हमेशा भीड़ मौजूद रहती है उनके प्रेमी सदा से  दुनिया की भीड़ में थोपी गयी पहचान के साथ मिलते है।  “हम दिल दे चुके सनम” हो कि “देवदास” प्रेमियों  का व्यक्तिगत स्पेस कही है ही नहीं। खानदान, परम्परा,की  बनावटी भव्यता में लिप्त।  इम्तियाज़ के नायक नायिका इस बोझ से मुक्त होने की यात्रा में जीते है इसलिए  भीड़ से घिरे  होते हुए भी निर्लिप्त दिखाई  देते है। 
 भंसाली कहीं किसी पेंटिग से प्रेरित फ्रेम में अपनी नायिका चस्पा कर देते है (काशीबाई का अकेले  रोने का दृश्य और बेटे का अचानक प्रवेश। वो फ्रेम राजा रवि वर्मा की पेंटिग से प्रेरित है ) काशीबाई का रुदन मनोरम दृश्य बन जाता है और इच्छा  होती है काश यह फ्रेम यही ठहर जाय, इसके बीच उसके अकेलेपन की पीड़ा दर्शक तक पहुँच ही नहीं पाती। इम्तियाज़ की मीरा का प्रेमी से छूटने का दर्द ख़ामोशी से प्रेषित हो जाता है। अकेलेपन की पीड़ा कहने के लिए खूबसूरत लोकेशन नहीं चाहिए बस अपना स्पेस  ढूढ़ती दो जोड़ी सूनी आँखे काफी है इस पार बैठी सैकड़ों जोड़ी आँखों को नम करने के लिए।  
संजय लीला भंसाली की मस्तानी झिलमिल कास्ट्यूम देख कर  सातवी, आठवी कक्षा की इतिहास की किताब में बंद राजा रानी याद आते है। उनके परिधानों पे आधुनिक  फैशन महारथी अपनी कारीगरी के बेलबूटे मढ़ देते है और मस्तानी को पर्सियन रानी की चलती फिरती तस्वीर में तब्दील कर देते है।
 सौंदर्य की प्रतिमा  मस्तानी के भीतर की प्रेयसी, “मैं दीवानी दीवानी” कहते नही  थकती किन्तु उसकी दीवानगी जैसे थोपी हुयी लगती है। बिल्कुल उसके भारी भरकम परिधानों की भांति जो किसी भी राजकुमारी से उसका मनुष्य होना छीन ले । क्लोज़ आप शॉट में मस्तानी की ग्लिसरीन से गीली आँखों और लांग शॉट में शानदार कास्ट्यूम के सिवा कुछ नहीं दीखता। प्रेम से सराबोर मस्तानी नदारद है। बाजीराव और मस्तानी के कितने ही प्रेम दृश्य  है। वे हर जुल्म सर आँखों पे लिए सहते रहे। मगर “तमाशा” की मीरा और वेद का अलग अलग पहाड़ी पे बैठे होना, वेद का शून्य में ताकना और मीरा का उसे देखना, सब कह गया जो भंसाली की मस्तानी ” कुबूल है कुबूल है” करके नहीं कह सकी । 
 भंसाली अपनी  पिछली फिल्मो की तरह कई फ्रेम और कई परिस्थितयो की पुनरावृत्ति करते हैं । मस्तानी और काशीबाई का एक फ्रेम में आना जैसे पारो और चंद्रमुखी की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश । “हम दिल दे चुके सनम” में ऐश्वर्य रॉय का झूले पे लेटे हुए दर्द बयान करता दृश्य काफी चर्चित हुआ। वे बाजीराव का दर्द भी उसी कैमरा एंगिल से वैसे ही झूले पे बयां करने की कोशिश करते है।
   हमेशा की तरह उनके किरदार, अभिनेता अभिनेत्रियों की आँखों से फिसल कर लोकप्रिय, चुटीले संवादों का मोहताज़ होकर रह जाते है। “बाजीराव ने मस्तानी से मुहब्बत की है अय्याशी नहीं” मगर बाजीराव योद्धा तो बन गया, लेकिन जिस मुहब्बत की बात करता है उसे ठीक से नहीं जी पाता, वो योद्धा बन जाता है मगर प्रेमी नहीं। ठीक उसी तरह जैसे मस्तानी  योद्धा पहले थी प्रेमिका बाद में, योद्धा होना क्या यूँ ही आसानी से समाप्त हो जाता है? बॉलीवुडयन “मैं तुलसी तेरे आँगन की” टाइप में आने के लिए भंसाली की हर नायिका आतुर दिखाई देती  है।  
 मीरा के प्रेम की पराकाष्ठा है “माफ़ी मुझे मांगनी  चाहिए क्योंकि मैंने तुम्हारे किसी काम्प्लेक्स को छू दिया होगा जो मुझे नहीं करना चाहिए” ऐसा कहते हुए तमाशा की दीपिका बाजीराव की दीपिका से बहुत आगे निकल जाती है। उसकी भीगी आँखे किरदार में तो हैं ही साथ ही फ्रेम की  कैद से बाहर भी है । वेद के लिए उसकी धड़कन सुनायी देती है।   
इम्तियाज़ अली की प्रेम कहानी सफरनामा है उनके किरदारों का जो दुनिया भर की सड़के नापता है कि खुद तक पहुँच सके।  सेल्फ को छूने के कई और रास्ते भी है.- ज्ञान, भक्ति, दुःख, यातना, जो किसी के लिए “अँधेरे से उजाले का सफरनामा “बन सकता है। हिंदी फिल्मी कथा में इश्क़ सबसे लोकप्रिय राह है। इम्तियाज़ को भी उसे चुनना पड़ता है।  इस सफर में कभी नायक  (हाईवे में रणदीप हुड्डा) तो कभी नायिका (तमाशा में  मीरा तथा रॉकस्टार में  हीर) उनके सहयात्री  होते है।  इश्क़ से रोशन  अंतर्मन  के साथ वो  खुद से रिहाई भी मांगते है। ये रिहाई भी प्रेम के दर पे ही मिलती है। आँखे बंद करके भंसाली की प्रेम कहानी को याद करे तो दिखेंगे ठहरे हुए खूबसूरत फ्रेम में कुछ मनमोहक विज़ुअल्स। उन तस्वीरों में कैद बेजान किरदार। 
इम्तियाज़ की किसी भी कहानी को उठा लीजिये, हर कहानी में जीवन है, गति है, धड़कन है तभी अब तक उनकी फ़िल्मी यात्रा की हर कहानी, प्रेम कहानी है। 
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम

आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात …

7 comments

  1. Best Review.

  2. बेहद उम्दा..

  3. Wonderful goods from you, man. I’ve understand your stuff previous to
    and you’re just too great. I really like what you’ve
    bought right here, really like what you’re saying and the way
    during which you say it. You are making it entertaining
    and you continue to take care of to stay it smart. I can’t wait to learn far
    more from you. This is really a terrific site.

  4. This site was… how do you say it? Relevant!! Finally I’ve found something which helped me.
    Thanks!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *