Home / ब्लॉग / देवयानी भारद्वाज की चुनिन्दा कविताएं

देवयानी भारद्वाज की चुनिन्दा कविताएं

इस पुस्तक मेले में एक उल्लेखनीय कविता संग्रह आया है देवयानी भारद्वाज का ‘इच्छा नदी के पुल पर’. दखल प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह की कुछ चुनिन्दा कविताएं. देवयानी जी की कविताओं की आवाज बिलकुल अलग है, समकालीन कवियों में सबसे ठोस. अस्त्रित्व को लेकर इतनी गहरी चिंता कम ही कवियों में दिखाई देती है- मॉडरेटर 
===============
इच्छा नदी के पुल पर
इच्छा नदी का पुल 
किसी भी क्षण भरभरा कर ढह जायेगा 
इस पुल मे दरारें पड़ गई हैं बहुत 
और नदी का वेग बहुत तेज है 
सदियों से इस पुल पर खड़ी वह स्त्री 
कई बार कर चुकी है इरादा कि 
पुल के टूटने से पहले ही लगा दे नदी में छलांग 
नियति के हाथों नहीं
खुद अपने हाथों लिखना चाहती है वह 
अपनी दास्तान 
इस स्त्री के पैरों में लोहे के जूते हैं
और जिस जगह वह खड़ी है 
वहां की ज़मीन चुम्बक से बनी है 
स्त्री कई बार झुकी है 
इन जूतों के तस्मे खोलने को 
और पुल की जर्जर दशा देख ठहर जाती है 
सोचती है कुछ 
क्या वह किसी की प्रतीक्षा में है 
या उसे तलाश है 
उस नाव की जिसमें बैठ
वह नदी की सैर को निकले 
और लौटे झोली में भर-भर शंख और सीपियाँ 
नदी किनारे के छिछले पानी में छपछप नहीं करना चाहती वह
आकंठ डूबने के बाद भी  
चाहती है लौटना बार-बार
उसे प्यारा है जीवन का तमाम कारोबार 
—————————————————————————
सूखे गुलमोहर के तले
चौके पर चढ़ कर चाय पकाती लड़की ने देखा
उसकी गुड़ि‍या का रिबन चाय की भाप में पिघल रहा है
बरतनों को माँजते हुए देखा उसने
उसकी किताब में लिखी इबारतें घिसती जा रही हैं
चौक बुहारते हुए अक्सर उसके पाँवों में
चुभ जाया करती हैं सपनों की किरचें
किरचों के चुभने से बहते लहू पर
गुड़ि‍या का रिबन बाँध लेती है वह अक्सर
इबारतों को आँगन पर उकेरती और
पोंछ देती है खुद ही रोज़ उन्हें 
सपनों को कभी जूड़े में लपेटना
और कभी साड़ी के पल्लू में बाँध लेना
साध लिया है उसने
साइकिल के पैडल मारते हुए
रोज़ नाप लेती है कोई एक फासला
बिस्तर लगाते हुए लेती है थाह अक्सर
चादर की लंबाई की
देखती है अपने पैरों का पसार और
समेट कर रखती जाती है चादर को
सपनों का राजकुमार नहीं है वह
जो उसके घर के बाहर साइकिल पर लगाता है चक्कर
उसके स्वप्‍न में घर के चारों तरफ दरवाज़े हैं
जिनमें धूप की आवाजाही है
अमलतास के बिछौने पर गुलमोहर झरते हैं वहाँ
जागती है वह
जून के निर्जन में
सूखे गुलमोहर के तले
—————————————————————————-
क्या तुम्हें याद हैं
बीकानेर की काली-पीली आँधियाँ
उजले सुनहले दिन पर
छाने लगती थी पीली गर्द
देखते ही देखते स्याह हो जाता था
आसमान
लोग घबराकर बन्द कर लेते थे
दरवाज़े खिड़कियाँ
भाग-भाग कर सम्हालते थे
अहाते में छूटा सामान
इतनी दौड़ भाग के बाद भी
कुछ तो छूट ही जाता था 
जिसे अंधड़ के बीत जाने के बाद
अक्सर खोजते रहते थे हम
कई दिनों तक
कई बार इस तरह खोया सामान
मिलता था पड़ौसी के अहाते में
कभी सड़क के उस पार फँसा मिलता था
किसी झाड़ी में
और कुछ बहुत प्यारी चीजें
खो जाती थीं
हमेशा के लिए
मुझे उन आँधियों से डर नहीं लगता था
उन झुलसा देने वाले दिनों में
आँधी के साथ आने वाले
हवा के ठंडे झोंके बहुत सुहाते थे
मैं अक्सर चुपके से खुला छोड़ देती थी
खिड़की के पल्ले को
और उससे मुँह लगा कर बैठी रहती थी आँधी के बीत जाने तक
अक्सर घर के उस हिस्से में
सबसे मोटी जमी होती थी धूल की परत
मैं बुहारती उसे
अक्सर सहती थी माँ की नाराज़गी
लेकिन मुझे ऐसा ही करना अच्छा लगता था
बीते इन बरसों में
कितने ही ऐसे झंझावात गुज़रे
मैं बैठी रही इसी तरह
खिड़की के पल्लों को खुला छोड
ठंडी हवा के मोह में बँधी
अब जब कि बीत गई है आँधी
बुहार रही हूँ घर को
समेट रही हूँ बिखरा सामान
खोज रही हूँ
खो गई कुछ बेहद प्यारी चीज़ों को
यदि तुम्हें भी मिले कोई मेरा प्यारा सामान
तो बताना ज़रूर
मैं मरुस्थल की बेटी हूँ
मुझे आँधियों से प्यार है
मैं अगली बार भी बैठी रहूँगी इसी तरह
ठंडी हवा की आस में
——————————————————————–


बदनाम लड़कियाँ
बदनाम लड़कियाँ
देर तक रहती हैं
लोगों की याद में
उनसे भी देर तक
रहते हैं याद उनके किस्से
बरसों बाद
बीच बाजार
दिख जाती है जब
अपनी बेटी का हाथ थामे
अतीत से निकल कर चली आती
ऐसी कोई लड़की<

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम

आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात …

14 comments

  1. इतना खूबसूरत है आपकी कविताये पढ़ना , सच में बहुत सुन्दर लिखती है आप

  2. Is bahut achchhe kavita Sangrha Ka haardik Svaagt !! Devyani ji ko Bahut badhai !! Jankipul Salaam!!
    – Kamal Jeet Choudhary

  3. यह समय गुमराह करने का समय हैयह कविता मुझे बहुत बेहतरीन लगी और आज बिल्कुल यही स्थिति है हम जिसके साथ खड़े होते हैंअचानक से
    पता चलता है हम गलत थे

  4. यह समय गुमराह करने का समय हैयह कविता मुझे बहुत बेहतरीन लगी और आज बिल्कुल यही स्थिति है हम जिसके साथ खड़े होते हैंअचानक से
    पता चलता है हम गलत थे

  5. Very nice..

  6. वाह, शानदार, कमाल कविताएँ

  7. क्या कविताएँ हैं! सर से पाँव तक एहसास से भीगी हुई रचनाएँ । सारी की सारी कविताएँ देवयानी के बेहद संवेदनशील मन का पता देती हैं।

  8. देवयानी की कवितायें मैंने जयपुर में सुनी थी .उनकी कवितायें भाषा और बिंब में अलग है .यही उनकी विशेषता है .बधाई और शुभकामनायें..

  9. बहुत बढ़िया

  10. द‍ेवयानी की कविताओं में इच्‍छाएँ हैं, सपने हैं, अस्तित्‍व के लिए संघर्ष है और इन सबके बीच एक व्‍यंजना का तीखापन है जो यथार्थ को उघाड़कर रख देता है. इन्‍हें पढ़ना आपको बेचैन करता है.

  11. कमाल की कवितायें हैं…..

  1. Pingback: vistarchitects

  2. Pingback: PG

  3. Pingback: pod ks lumina

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *