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मनोज कुमार पांडेय की कहानी ‘घंटा’

मनोज कुमार पांडेय अपनी पीढ़ी के मेरे कुछ प्रिय कथाकारों में हैं. उनकी यह नई कहानी “घंटा’ आई है ‘पल-प्रतिपल’ पत्रिका. पत्रिका तो कहीं मिलती नहीं है सोचा यह कहानी ही पढ़ी पढ़ाई जाए- प्रभात रंजन 
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जैसा कि कहने का चलन है, इस कहानी की समूची कथा स्थितियाँ और चरित्र पूरी तरह से काल्पनिक हैं। उनका किसी भी चरित्र या कथा-स्थिति से मिलान समय की बदमाशी मात्र है। यह कथा लेखक अपने आनंद और पाठकों के मनोरंजन के लिए कह रहा है जो कि आज के समय में साहित्य का एकमात्र राजनीतिक सरोकार है।
यह भविष्य की कथा नहीं है
दूर भविष्य में कहीं बहुत सारे गाँव और कस्बे हैं। उन्हीं में से एक छोटे से कस्बे का नाम शिवराजपुर है। एक छोटे मोटे जमींदार शिवराज सिंह – जिसे लोग राजा कहते हैं। कोई जमींदार कहे तो बुरा भी मान जाते हैं – के नाम पर इसका नामकरण संस्कार किया गया है। शिवराज सिंह अठारह सौ सत्तावन के संग्राम में बागियों के साथ शामिल हो गए थे। इस वजह से अंग्रेजों ने उन्हें एक पेड़ की डाल पर लटकाकर फाँसी दे दी थी। उनके साथ और भी सैकड़ों लोगों को फाँसी पर चढ़ाने के किस्से आज भी आम हैं। कस्बे के दक्षिण की तरफ जो टीला है, कहा जाता है कि वहीं राजा साहब की हवेली थी। वहीं एक कुएँ में अपनी सब धन दौलत डालकर उन्होंने अपने घर की औरतों और बच्चों को भी उसी कुएँ में डाल दिया था ताकि वह लोग अँग्रेजों की पकड़ में न आ सकें। कहते हैं कि उन सब लोगों के भूत आज भी टीले के आसपास टहलते दिखाई दे जाते हैं।  
पर यह सब इस कस्बे का अतीत है। इसमें भी कितनी सचाई है और कितनी अफवाहें या मिथक यह कोई नहीं जानता। पर यह सब सच हो या मिथक इसका आज के इस कस्बे के रंग-रूप या चाल-ढाल से कोई संबंध नहीं है। कस्बा मुख्यतः खेतिहरों का है। जमीनें उपजाऊ हैं फिर भी पेट मुश्किल से भरता है। कुछ लोग दुकान वगैरह रखते हैं जिसमें कई बार रुपये पैसे की जगह अनाज वगैरह के बदले भी सामान मिल जाता है। पढ़े-लिखे और नौकरीपेशा लोग बहुत कम हैं।
कस्बे में एक टाकीज है और एक इंटर कालेज। अभी पिछले दिनों एक डिग्री कालेज भी खुला है। पुलिस थाना भी है। दो साप्ताहिक बाजार लगते हैं। इसी बाजार वाली जगह पर दशहरा आदि का मेला भी लगता है। यहीं रामलीला होती है और तरह तरह की नौटंकियाँ भी। चुनाव के समय नेताजी लोग भाषण देने के लिए यहीं पर प्रकट होते हैं। एक मंदिर और एक मस्जिद है। एक पागल भी है जो गालियाँ बकता रहता है। कस्बे के लोग उसे सिद्ध टाइप का कुछ मानते हैं और उससे गाली खाने के लिए लालायित रहते हैं। उनका भरोसा है कि उसकी गालियाँ लोगों के लिए आशीर्वाद के रूप में फलित होती है।
ऐसे लोगों की संख्या भी काफी है जो चौबीसों घंटे खाली रहते हैं। इसमें से अनेक हैं जो धर्म, प्रेम, जाति, क्रिकेट, फिल्म तथा राजनीति आदि मामलों के विशेषज्ञ हैं। कई बार यह विशेषज्ञ आपस में टकरा भी जाते हैं। ऐसी घटनाएँ पूरे कस्बे के लिए रोमांचक और मनोरंजक होती हैं। ऐसे ही यहाँ एक कवि भी हैं, और एक पत्रकार भी। पत्रकार महोदय की अखबार और पत्रिकाओं की दुकान है। यह किराए पर जासूसी उपन्यास, रोमानी उपन्यास तथा सत्यकथा आदि भी रखते हैं। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि यहाँ मस्तराम की रंगीन फोटो वाली किताबें भी मिलती हैं। टाकीज के सामने एक चाय नाश्ते की दुकान है जिस पर तमाम लोग चाय-वाय पीने, समोसा जलेबी और अखबार आदि देखने के लिए इकट्ठा होते हैं। यह दुकान कस्बे के बीच में सार्वजनिक केंद्र की हैसियत रखती है। यहीं से तमाम खट्टी-मीठी बातें और अफवाहें फैलती हैं जिनमें दुकान के मालिक मेवाराम की प्रमुख भूमिका होती है। लगे हाथ बताते चलें कि कस्बे की इकलौती टाकीज के मालिक भी मेवाराम जी ही हैं।
यह कहानी इसी कस्बे की है। कस्बा थोड़ा ढीला-ढाला सा है। सुस्त और अपनी ही चाल से चलता हुआ। समझ लीजिए कि यह एक शांत झील है जिसमें तमाम जीव जंतु आपस में लड़ते भिड़ते पड़े रहते हैं पर उनकी लड़ाइयों का कोई भी असर झील की सतह पर देर तक नहीं दिखाई देता। जहाँ जीवन जीने का अपना ही तरीका है। हर सुख दुख के बीच अपनी इज्जत नाम की चीज बनाए रखने की कोशिश करना। कल की बहुत चिंता फिक्र न करना। यह इज्जत नाम की चीज भी हर किसी के लिए अलग ही मतलब रखती।
सीधे सीधे कहें तो यह कस्बा गतिहीनता से भर चुका था। लोग थे, उनका जीवन था पर सब कुछ पर एक किस्म की जड़ता तारी थी। कस्बे में करने के लिए कुछ खास नहीं था। इसलिए नई उमर के लड़के यहाँ कम ही दिखाई देते। लड़के कुछ कमाने धमाने के लिए बाहर निकल जाते और ज्यादा से ज्यादा बीस-बाईस की होते होते लड़कियों की शादी कर दी जाती। बाकी कस्बे में बचे लोग किसी तरह से एक झूठी आन-बान और शान में खुद को भरमाए रखते। और रोजी रोटी के लिए तरह तरह के कामों से बचे हुए समय में अफवाहों और इधर-उधर की खुराफातों और उखाड़-पछाड़ से अपना मनोरंजन करते। और इसी तरह की अन्य बहुतेरी हरकतों में अपना समय काटते।
कस्बे का यह धुँधला सा चित्र करीब बीस पचीस साल पहले का है। बीस-पचीस साल पहले इस स्थिति में कई वजहों से अचानक ही कई परिवर्तन आए। तब इस कस्बे ने बदलना शुरू किया तो आज तक बदलता ही जा रहा है। आज इस कस्बे के लड़कों के आदर्श सलमान खान, शाहरुख खान, विराट कोहली, महेंद्र सिंह धोनी, सानिया मिर्जा, सनी लियोनी या योयो हनी सिंग जैसे लोग हैं। यह कितनी तेजी से बदल रहा है यह इससे भी पता चलता है कि क्रिकेट आइकन के रूप में सचिन तेंदुल्कर का नाम लेने वाले अब अंकल कहे जाते हैं।
अतीत… यानी एक समय था
एक समय था कि लोगों का काम खेती या छोटे-मोटे धंधों से चल जाता था। खाने भर को हो जाता था। इससे ज्यादा कि चिंता करते कम ही लोग दिखाई देते थे। जब पैसे की जरूरत होती नजदीकी शहर में जाकर कोई छोटा बड़ा काम कर आते कुछ दिन। उसके बाद फिर वापस आ जाते। उन्हें बहुत ज्यादा की तलब नहीं थी पर उनके जल्दी लौट आने में शायद इस बात की भी गहरी भूमिका थी कि वे अपने इस छोटे से कस्बे के बिना कहीं रह ही नहीं पाते थे। वे अपना कस्बा पोटली में गठियाकर झोले में डाल लेते और रोज थोड़ा थोड़ा खर्च करते। जब वह खत्म होने लगता तो उन्हें बेचैनी होने लगती और एक दिन वह जहाँ भी होते वापस लौट आते।
पर पीढ़ी बदलते बदलते यह स्थिति बदल गई। बच्चे बड़े हुए और जब उनके परिवार हुए, जमीनों का बँटवारा हुआ तो ज्यादातर के पास इतनी जमीनें भी नहीं बचीं कि वे खेती करके साल भर का अन्न उपजा सकते सो जल्दी ही उनमें से बहुतों को आसपास के शहरों में गुम हो जाना पड़ा। थोड़े समय तक तो शहर भी खुश ही हुए इस बात से। वे बन रहे थे और उन्हें बहुत सारे गुमशुदा लोगों की जरूरत थी। पर शहर और स्वार्थ का ऐसा घना रिश्ता कि जैसे ही शहरों का पेट भरा उन्होंने गुमशुदा लोगों को बाहर की तरफ ढकेलना शुरू किया। कुछ जिद्दी लोग गंदे नालों के किनारे, रेलवे की पटरियों के किनारे बसे और उसी में खो गए। शहर भी उनके वहाँ रहने से संतुष्ट हो गया थोड़े समय के लिए। शहर को भी एक आसान बहाना मिल गया कि वह गाहे बगाहे अपनी तमाम समस्याओं के लिए इन्हें जिम्मेदार ठहरा सके।
पर इन आसपास के शहरों की एक सीमा थी। जल्दी ही बहुत सारे लोगों को दूर के बड़े बड़े शहरों की तरफ भागना पड़ा। इन शहरों के पेट बहुत बड़े थे। उनके पास न काम की कमी थी न गंदे नालों की। जगह की कमी जरूर पड़ती रहती और जब भी उन्हें ऐसा लगता आसपास के दस बीस गाँवों और कस्बों को निगल जाते और अगले कुछ समय तक अपने फूले हुए पेटों पर हाथ फेरते रहते। पर अब कभी कभी उन्हें अपच भी होने लगा था। और तब वे निगले हुए लोगों को कुछ इस तरह उगलने लगते कि वे उनके मुँह से निकलते तो सीधे अपने गाँवों और कस्बों में गिरते जो कि कहीं बचा ही नहीं था।
भए प्रगट कृपाला…
जब दूर बहुत बड़े बड़े शहरों से फेंके गए लोग अपना घर परिवार और कस्बा ढूँढ़ रहे थे कि कस्बे में अपना राज्य ढूँढ़ते हुए राजा राजकरन सिंह प्रकट हुए। राजा साहब ने खुद को इस कस्बे के करीब डेढ़ सौ साल पहले अठारह सौ सत्तावन में मारे गए राजा शिवराज सिंह का वंशज बताया और सार्वजनिक रूप से यह प्रण लिया कि वह अपना राज्य दुबारा से स्थापित करेंगे। क्योंकि वर्तमान राज्य उनकी प्रजा का ध्यान अच्छे से नहीं रख रहा है। खेल खेल में ही बहुत सारे लोग सहमत हो गए क्योंकि यह तो सच ही था कि लोगों का ध्यान अच्छे से तो क्या खराब तरीके से भी नहीं रखा जा रहा था। वे सड़क और बिजली की कौन कहे पेट भर भोजन जैसी प्राथमिक समस्याओं से ही जूझ रहे थे। उनके पास रोजगार नहीं था।
राजा साहब ने बताया कि राजा शिवराज सिंह की कोई एक रानी वहाँ से भाग निकली थीं और वह उस समय पेट से थीं। उनका परिवार तब से लगातार अगले नब्बे सालों तक भागता रहा। देश की आजादी के समय उनके दादा कोलकाता में रहते थे। अभी दस साल पहले जब दादा मरे तो उनके तमाम कागजातों में उन्हें वह कागजात भी मिले जो बताते थे कि उनका मूल स्थान यहाँ था। उन्हें अपने परदादा की वसीयत भी मिली जिसके अनुसार उन्हें वहाँ कोलकाता में सब कुछ बेंचकर उसी पुरखों के कस्बे में फिर से अपना खोया हुआ राज्य खड़ा करना था। अब यह कस्बे में आ गए हैं और फिर से अपना राज्य खड़ा करेंगे।
राजा साहब के आने से कस्बे में पहला परिवर्तन तो यह हुआ कि कस्बे का अतीत नए सिरे से चर्चा में आ गया। और एक तरह से कस्बे के बारे में जो तमाम अफवाहें थीं उनको नए सिरे से वैधता मिल गई। दूसरी यह बात कि कस्बे में एक ऐसा व्यक्ति आया जो फिर से अपना राज्य खड़ा करने की बात करता था और बाकी कस्बे वालों को अपनी प्रजा मानता था। इस बात पर कस्बे में कई तरह के रिएक्शन आए। कुछ लोगों ने राजा साहब को पागल या सनकी सिरफिरा माना। कुछ ने बाहरी जासूस। किसी ने छुपा हुआ अपराधी तो बहुतों ने उन्हें सचमुच का उसी शिवराज सिंह का वंशज माना।
इन सबके बावजूद यह भी था कि नए राज्य का विचार उनके लिए एक मजेदार चीज था और राजा राजकरन सिंह उनके लिए मनोरंजन की चीज था। राजा और उसके व्यवहार की अनेक मनोरंजक चीजों के बावजूद जब राजा ने कस्बे के पश्चिमी किनारे पर अपना भव्य महल खड़ा कर लिया और उसमें बिजली लगवाने में भी सफलता हासिल कर ली तो लोगों ने उसको थोड़ा सीरियसली लेना शुरू किया। इस सीरियसली लेने के पीछे एक वजह और थी कि राजा ने जरूरत पड़ने पर लोगों की थोड़ी बहुत मदद भी की। कस्बे में अनेक लोग किसी न किसी समय राजा साहब की मदद ले चुके थे और इस तरह से राजा साहब के अहसानों के नीचे दबे हुए थे।
और राजा थे कि जब तब मौका-बेमौका खुलेआम अपने ऐश्वर्य का प्रदर्शन करते। यज्ञ कराते, लोगों को भोज देते। शिवराजपुर तो क्या आसपास के गाँवों कस्बों में भी किसी की जमीन वगैरह बिकती तो दस में से नौ बार राजा साहब ही खरीदते। लोग उनके वैभव को देखकर चकित होते। उनके रुपये पैसे के बारे में तरह तरह के अंदाजे लगाते। एक अफवाह यह भी फैली कि राजा साहब ने टीले पर के भूतों को साध लिया है और उन्हें राजा शिवराज सिंह का पूरा का पूरा खजाना हासिल हो गया है। अनेक लोग उनके महल के आसपास टोह लेने के लिए घूमते।
राजा साहब के यहाँ तरह तरह के लोग आते जाते रहते। शिवराजपुर जिस जिले में था उस जिले के बड़े बड़े अधिकारी राजा साहब के यहाँ दिखाई देते। लोग उन लोगों को घेरे रहते जो राजा साहब के यहाँ काम आदि करने के लिए जाते। ऐसे ही एक दिन जब मेवाराम की दुकान पर किसी ने राजा साहब के नए नए पुरोहित रामलोचन त्रिपाठी से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि राजा साहब के पास एक चमत्कारी घंटा है। राजा साहब का सारा ऐश्वर्य उसी घंटे से निकला है। लोग हँस पड़े, घंटा न हुआ अलादीन का चिराग हो गया।
कस्बे की समस्याएँ…
यह सब ऐसे ही चल रहा था कि एक दिन राजा साहब ने पूरे कस्बे की मीटिंग बुलाई। मीटिंग में राजा साहब ने कस्बे के लोगों से पूछा कि उनकी समस्याएँ क्या हैं? जवाब में बहुत सारी समस्याएँ सामने आईं। पहली समस्या यह कि कस्बे का मंदिर गिर रहा है और उसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है… एकाध बुजुर्गों ने यह भी बताया कि एक जमाने में राजा शिवराज सिंह खुद इस मंदिर में पूजा किया करते थे। ऐसे ही स्कूल में पढ़ाई न होना… या बरसात में सड़क पर पानी भर जाना… आदि कुछ और समस्याएँ आईं। बाबा गालीदास ने कहा कि लोगों के पत्थरों से बने उनके जख्म सड़ रहे हैं उनके इलाज की व्यवस्था की जाय… और लोगों से कहा जाय कि पत्थर धीरे धीरे मारें… या कि सिर्फ मिट्टी के ढेले से मारें। कुछ ने पुलिस की अवैध वसूली की शिकायत की… कुछ ने गरीबी या बेरोजगारी जैसे मुद्दे भी उठाए जिन्हें लोगों ने चुप ही करा दिया था कि इसमें भला राजा साहब क्या करेंगे। पर खुद राजा साहब ने उन्हें बोलने के लिए उत्साहित किया और कहा कि अपनी प्रजा की सारी समस्याएँ हमारी समस्याएँ हैं। हम उन्हें दूर करेंगे।
      राजा साहब का लोकतंत्र देखकर लोग बाग बाग हो उठे। और फिर तो शिकायतों का पिटारा ही खुल गया। पूरे कस्बे में ऐसे बहुत कम लोग मिले जिन्हें कोई शिकायत न रही हो। किसी को पड़ोसी के कुत्ते से शिकायत थी तो किसी को बीवी के खर्राटे से। और इन्हीं शिकायतों के बीच कुछ गंभीर शिकायतें भी सामने आईं। जैसे कुछ लोगों ने गंदगी की बात की। कुछ लोगों ने प्रदूषण की बात की… यहाँ तक कि ध्वनि प्रदूषण तक की बात सामने आई और यह भी कहा गया कि यह ध्वनि प्रदूषण दूसरे धर्म वाले सबसे ज्यादा फैलाते हैं। उनकी सुबह की पूजा की आवाज कस्बे की नींद खराब कर देती है। इस बात का दूसरे धर्म वालों ने प्रतिवाद किया। और देखते ही देखते यह सब तूतूमैंमैं से होते हुए हाथापाई और गाली गलौज में बदल गया। इस तरह से राजा साहब की बुलाई हुई पहली आम सभा कामयाब रही। इसके पहले व्यक्तिगत लड़ाइयाँ जितनी भी हुई हों पर इस तरह से समुदाय एक दूसरे के आमने सामने नहीं आए थे।
पत्रकार जगत नरायन पांडेय उर्फ ‘आजाद केसरी’ ने कहा कि वे अपना अखबार निकालना चाहते हैं ताकि कस्बे की समस्याओं को कायदे से उठाया जा सके। शहर के अखबार कस्बे की बातों को नहीं छापते। इसी तरह कवि रामप्यारे गुप्ता उर्फ ‘बागी अरमान’ ने कस्बे में पढ़ने लिखने की कोई संस्कृति न होने की बात की और एक पुस्तकालय की माँग सामने रखी। अब पुस्तकालय रहेगा तो उसमें किताबों की जरूरत तो होगी ही सो उन्होंने यह भी माँग रखी कि उन्हें कुछ पैसों का अनुदान दिया या दिलाया जाय ताकि वह अपनी चार-पाँच किताबें छपवा सकें और मीरा तथा गालिब आदि की चार पाँच किताबें खरीद सकें ताकि लोगों को समकालीन साहित्य के साथ साथ कुछ पुराना भी पढ़ने को मिल सके।
राजा साहब ने सभी समस्याओं को कितने ध्यान से सुना था यह तब पता चला जब हफ्ते भर बाद उन्होंने दोबारा आम सभा बुलाई। पिछली बार के अनुभवों से शर्मिंदा कुछ लोग नहीं गए पर जो लोग गए उनके बीच में राजा साहब ने कस्बे के बारे में अपनी योजनाओं का एक खाका प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि उनके पास इतना पैसा है और इतनी ताकत है कि वह कस्बे की सारी समस्याओं का समाधान एक दिन में कर सकते हैं पर सवाल सिर्फ समस्याओं का नहीं हैं उन्हें दूर करने वाली चेतना का है। और कस्बे की समस्याओं को दूर करने में होने वाली जन भागीदारी का है। इसलिए मैं जो भी करूँगा आपके सहयोग से ही करूँगा और आपके दम पर ही एक दिन शिवराजपुर का राज्य फिर से हासिल करूँगा।
      इसके बाद राजा साहब ने कस्बे को लेकर अपना एक खाका प्रस्तुत किया। सबसे पहले तो उन्होंने कस्बे के हित में शिवराज सेना के गठन का ऐलान किया। और बताया कि यह सेना पूरी तरह से लोकतांत्रिक तरीके से कस्बे की लड़ाई लड़ेगी और इस सेना की जिम्मेदारी पूरी तरह से उनकी होगी। सभी सैनिकों को वेतन दिया जाएगा और उनके दायित्व में वह सब कुछ आएगा जिसे कि राजा साहब कहेंगे। तुरंत ही सैकड़ों लोगों की फौज तैयार हो गई… पर सेना का मामला था सो राजा साहब के विशेष सहायक ने उसके लिए विशेष भर्ती परीक्षा का ऐलान किया। दूसरा राजा साहब ने बेरोजगारी दूर करने के मसले पर कस्बे में तरह तरह के उद्योग लगाने का ऐलान किया। और कहा कि अगर कस्बे के लोग उन्हें सहयोग करें तो आने वाले सालों में वे कस्बे में किसी एक को भी बेरोजगार नहीं रहने देंगे। जो भी काम करना चाहेगा सबको काम मिलेगा। इसके बाद उन्होंने तमाम छोटी बड़ी समस्याओं के लिए कुछ स्वयं सहायता समूहों के गठन का ऐलान किया जो कि कस्बे के विकास के लिए दुनिया भर से फंड ले आएगा।
      इसके बाद उन्होंने कहा कि जहाँ तक कस्बे के स्कूल की बात है तो पूरे देश के स्कूलों का यही हाल है। लेकिन कस्बे के लोगों के हित में वे जल्दी ही कस्बे का अपना स्कूल खोलेंगे जो अभी तो देश की शिक्षा व्यवस्था से जुड़कर चलेगा पर निकट भविष्य में अपना राज्य स्थापित होते ही शिवराजपुर का अपना बोर्ड होगा। इसी तरीके से हमारा थाना, हमारी कचेहरी सब कुछ हम खुद ही कायम करेंगे आप सब के लिए। क्योंकि यह ईश्वर का आदेश और पुरखों की इच्छा है जिसकी वजह से मैं आपके बीच में आया हूँ। हमारे पुरखों ने आपका जो ध्यान रखा है और बदले में आपने उन्हें जो मान सम्मान दिया है मैं उसी सिलसिले को आपके लिए दोबारा जिंदा करने के लिए आया हूँ।  
इस महत्वपूर्ण घोषणा के बाद राजा साहब ने एक सांप्रदायिक सद्भाव कमेटी के गठन का ऐलान किया, जिसमें दोनों समुदायों के लोग होंगे और जिसकी अध्यक्षता राजा साहब खुद करेंगे। कमेटी में संप्रदायों का प्रतिनिधित्व उनकी जनसंख्या के आधार पर किया जाएगा। और कोई भी फैसला बहुमत से किया जाएगा। इस तरह इस कमेटी में अपने धर्म वालों के आठ और दूसरे धर्म वालों के दो प्रतिनिधि होंगे। कमेटी ने फिलहाल तय किया कि माइक लगाना धार्मिक विशेषाधिकार है सो दोनों ही धर्मों के लोग जितने चाहें उतने माइक लगा सकते हैं।
      इसी तरह ‘शिवराज एक्सप्रेस’ नाम से एक अखबार निकालने की भी घोषणा की  गई जिसका संपादक पत्रकार जगत नरायन पांडेय उर्फ ‘आजाद केसरी’ को होना था और कवि ‘बागी अरमान’ को राजकवि का ओहदा देते हुए उन्हें ‘शिवराजरासो’ लिखने का काम सौंपा गया। इसी तरह से और भी अनेक योजनाओं की घोषणा की गई। इसके बाद राजा साहब ने मंदिर के पुनरोद्धार के लिए कस्बे के इंटर कालेज के सेवानिवृत्त प्राचार्य और अपने ताजे ताजे पुरोहित पंडित रामलोचन त्रिपाठी को जिम्मेदारी देते हुए उन्हें राजपुरोहित के पद पर नियुक्त किया और साथ में यह भी व्यवस्था दी कि जो लोग बाबा गालीदास को पत्थर मार कर उनका आशीर्वाद लेना चाहें उन्हें मंदिर में एक निश्चित राशि दान करनी होगी। बदले में मंदिर उन्हें पत्थर मुहैया कराएगा और आइंदा से बाबा गालीदास के ईलाज और भरण-पोषण की जिम्मेदारी राजा साहब की तरफ से राजपुरोहित उठाएँगे। इसी तरीके से और भी तमाम समस्याओं का समाधान किया गया।
      और सबसे आखिर में राजा साहब ने सबसे महत्वपूर्ण घोषणा की। उन्होंने कस्बे में एक घंटा लगवाने का एलान किया जो बिना बजाए ही चौबीसों घंटे बजता रहेगा। इस घंटे के पास जाकर कभी भी अपनी समस्या कही जा सकती थी और दुनिया भर की समस्याओं के बारे में जाना जा सकता था। इस घंटे की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि यह आपकी शिकायत या समस्या की तह में पहुँचने में जरा भी देर नहीं लगाता था। भले ही यह तह कितने भी भीतर क्यों न लगी या लगाई गई हो। जैसे एक दिन कस्बे के रामलुभाया ने पेट दर्द की शिकायत की तो यह तुरंत ही घंटे ने बताया कि रामलुभाया को पेट दर्द इसलिए हो रहा है क्योंकि बगल के घरों में कुछ लोग वर्जित मांसाहार में लिप्त हैं।
राजा का बाजा
अब राजा हैं तो साथ में मसखरे तो होंगे ही। बल्कि ध्यान से देखा जाय तो राजा साहब की उपस्थिति ही पूरी मसखरी है। यह दुबले पतले सींकिया पहलवाल टाइप के व्यक्ति हैं। लंबाई बढ़िया है। बड़ी बड़ी मूँछें रखते हैं जो इनके लंबोतरे चेहरे के साथ जरा भी मेल नहीं खाती। उमर होगी करीब पैतालीस साल। लंबी लंबी टाँग फेंकते हुए चलते हैं। हमेशा गंभीर दिखना पसंद करते हैं। सिद्धांततः मानते हैं कि राजा को हर ऐरे-गैरे के मुँह नहीं लगना चाहिए। पर अभी राज्य निर्माण में संलग्न हैं इसलिए उन्होंने अपने इस सिद्धांत को स्थगित कर रखा है। यह अपनी पत्नी को हर हाइनेस और बेटे को प्रिंस कहते हैं। आमदनी का स्रोत क्या है कुछ पता नहीं। कहते हैं कि कोलकाता में अपनी रियासत बेचने पर इतना पैसा मिला कि जिसका ब्याज ही कई पीढ़ियों के लिए काफी है। जबर्दस्त दिखावा पसंद हैं। बहुत सारे गहने पहनते हैं। हाथ की सभी उँगलियाँ अँगूठियों से भरी पड़ी हैं। किसी से खुश होते हैं तो अक्सर हाथ गले की मालाओं की तरफ चला जाता है जैसे उतार कर उसको देना चाहते हों। पर देते कभी नहीं हैं।
      यूँ तो उनके घर में नौकरों चाकरों की कमी नहीं है और ज्यादातर तो शिवराजपुर के ही हैं पर उनका सबसे विश्वसनीय नौकर है उनका ड्राइवर किसन जिसे वह ड्राइवर की बजाय सारथी कहना पसंद करते हैं। यही नहीं यह सारथी जी राजा साहब के सबसे विश्वसनीय सलाहकार भी हैं और मंत्री भी। मजेदार यह है कि हर भूमिका का ड्रेस अलग अलग है। जब वह जिस भूमिका में होते हैं उसी के अनुरूप ड्रेस भी धारण करते हैं।  जैसे कि राजा साहब सेवक या सारथी से कहते हैं कि जाओ मंत्री जी को बुला लाओ तो सेवक किसन जाएगा जाएगा और मंत्री का ड्रेस पहन कर मंत्री किसनजी के रूप में वापस आ जाएगा। अभी इनकी जिम्मेदारियाँ थोड़ी कम हो गई हैं नहीं तो पहले इन्हें खाना बनाने वाले महराज, डुगडुगी वाले और खबरची आदि की भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभानी पड़ती थीं। किसन जी मन ही मन रानी यानी कि हर हाइनेस से प्रेम करते हैं और मजे की बात यह है कि इस बात को हिज हाइनेस राजा साहब के अलावा खुद रानी साहिबा भी नहीं जानतीं।
      हर हाइनेस रानियों की तरह खूब सजी-बजी और गहनों-जेवरों से लदी-फँदी रहती हैं। प्रिंस और प्रिंसेस विद्याध्ययन के लिए विलायत में रहते हैं। कभी आते हैं तो शिवराजपुर की बजाय देश की राजधानी वाले बंगले में रहना पसंद करते हैं। तब राजा साहब हर हाइनेस के साथ खुद उनसे मिलने और उन्हें राज काज के बारे में जरूरी बातें सिखाने पहुँच जाते हैं। उस दौरान शिवराजपुर की सारी जिम्मेदारी मंत्री किसनजी सँभालते हैं।
      किसनजी कस्बे में घुल मिल गए हैं। पहले लोग उन्हें मजाक में मंत्री जी कहते पर जल्दी ही उन्होंने इतनी ताकत इकट्ठी कर ली कि उनका मजाक उड़ाना आसान नहीं रह गया। उन्होंने कस्बे में अपना गजब का जासूसी तंत्र विकसित किया। टाकीज और खानपान की दुकान के मालिक मेवाराम को उन्होंने कस्बे का प्रधान जासूस नियुक्त किया। और थोड़े दिनों में ही कस्बे के लोगों के बारे में उनके पास इतनी ज्यादा जानकारियाँ इकट्ठा हो गईं जितना कि कस्बे के लोग भी खुद के बारे में नहीं जानते थे। इसके बाद उद्योग वगैरह लगाने के लिए जमीन इकट्ठा करने में भी उन्होंने गजब की सफलता हासिल की। और इस तरह से कस्बा मुँह बाकर विकास नाम के सपने की तरफ टकटकी लगाकर देखने लगा। इस सपने में नए पुराने बहुत सारे रंग मिले हुए थे। यह सपना बहुत रंगीन था।   
जल्दी ही अन्य योजनाओं ने काम पकड़ लिया। अखबार छपने लगा, जिसकी एक प्रति मुफ्त शिवराजपुर के हर घर में पहुँचने लगी। अखबार में यह नियमित रूप से बताया जाता कि कैसे राजतंत्र एक शासन तंत्र न होकर एक पूरी जीवन पद्धति है। एक पवित्र पूजा पद्धति… एक आध्यात्मिक व्यवस्था। कि अपना धर्म अपने सही रूप में राजतंत्र में ही उन्नति कर सकता है। किसी भी और तरह की शासन पद्धति अपने धर्म की नींव को कमजोर करेगी और धीरे धीरे करके एक धर्म के रूप में, एक सनातन आध्यात्मिक संप्रदाय के रूप में उसके अस्तित्व को हमेशा के लिए समाप्त कर देगी। बताया गया कि हमारा प्यारा राजतंत्र जनता और ईश्वर के बीच की दूरी को समाप्त कर देता है क्योंकि वह ईश्वर के आध्यात्मिक प्रतिनिधि के रूप में राजा को स्थान देता है। ऐसे में खुद ईश्वर ही राजा को बाध्य करता है कि वह ईश्वर में आस्था रखने वाली प्रजा के धार्मिक विश्वासों और हितों का पूरा खयाल रखे।
      हर रविवार को राजा साहब खुद संपादकीय लिखते और अपनी आगे की योजनाओं और नीतियों का हवाला देते। अखबार में इस मसले पर भी लेख प्रकाशित होते कि कैसे राजतंत्र हमारे अतीत का गौरव फिर से लौटाएगा। और हम पहले की तरह दुनिया का नेतृत्व करेंगे। इस बारे में भी लेख छपते कि राजतंत्र में भ्रष्टाचार नहीं होता जबकि लोकतंत्र में नेता लूटने की जल्दी में इसलिए भी रहते हैं क्योंकि पाँच साल बाद या उसके पहले ही सब कुछ छिन जाने वाला होता है। जबकि राजतंत्र में पूरा राज्य ही राजा का है तो क्या वह अपना ही राज्य लूटेगा? अपनी ही प्रजा के खिलाफ भ्रष्टाचार करेगा… बुरे से बुरा

 
      

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8 comments

  1. कहानी में थोडा फैलाव आ गया है, मगर कहानी लगातार बाँधती है. मनोज कुमार पांडे की दूसरी कहानियों की तरह एक प्रभावशाली कहानी.

  2. When some one searches for his essential thing, so he/she
    needs to be available that in detail, thus that thing is maintained over here.

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