Home / ब्लॉग / जय नारायण बुधवार की ग़ज़लें

जय नारायण बुधवार की ग़ज़लें

जय नारायण बुधवार को बरसों से हम ‘कल के लिए’ पत्रिका के संपादक के तौर पर जानते रहे हैं. वे बहुत अच्छी क्लासिकी अंदाज़ की ग़ज़लें लिखते हैं. आज उनकी चुनिन्दा ग़ज़लें- मॉडरेटर 
======================

1. 
कुँआ ये प्यार का प्यासा बहुत है
 सम्हलना,देखकर,गहरा बहुत है।

मेरे दिल पर न कोई तंज़ करना
ये बच्चा रात भर रोया बहुत है।

पता देती है उसकी बदमिजाजी
किसी ने टूट कर चाहा बहुत है।

नहीं है ख़ास कुछ चेहरे में मेरे
तुम्हारी आँख ने देखा बहुत है।

वहीं से आती हैं ठंढी हवाएं
तुम्हारी रूह में झाँका बहुत है।

बुरा मत मानो उसकी बेदिली का
वो राजा है,मगर तनहा बहुत है।

रहम मत कीजिये मुझ पर खुदाया
ये मरहम जख्म में लगता बहुत है।


२.
हमने जब जब खून बहाया, रास आया
झूठ का नुस्खा जब अजमाया,रास आया

 नफरत से नुकसान नहीं पहुंचा हमको
मौत का जब भी जश्न मनाया,रास आया।

पेशा ही ऐसा है यार सियासत का
भाई को भाई से लड़ाया,रास आया।

बाढ़ और सूखे की रकम डकार गए
एक हिस्सा मंदिर में चढ़ाया,रास आया।

 एक सड़क ही आज तलक बनवायी है
हर छह महीने पर नपवाया,रास आया।

3.

अब आप भी पधारें,खेला अदब का है
जो जी में आये छानें तेला ,अदब का है।

 खाली पड़ी हुई है दूकान किताबों की
सब भीड़ है सर्कस में मेला अदब का है।

चप्पल से ले के जूता,शीशे से इत्रदानी
 हर माल है मुहैया,ठेला अदब का है।

जब वक्त मिले छीलें,खुद खाएं और खिलाएं
अब फेसबुक पे बिकता,केला अदब का है।

जिस तरह की मर्ज़ी हो चंपी कराते रहिये
मायूस नहीं होंगे,चेला अदब का है।


4.

सम्हल कर वोट देते लोग ग़र पिछले इलेक्शन में
हमारे मुल्क में खुजली की बीमारी नहीं आती।

न आती ग़र अदाकारा वज़ीरों की कतारों में
हमारे कॉलेजों में इतनी ऐयारी नहीं आती।

मियाँ तुम लौट जाओ क्या करोगे तुम सियासत में
तुम्हें तो घर मोहल्ले से भी गद्दारी नहीं आती।

यहाँ इन बस्तियों में तो तरक्की एक गाली है
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

तन्हाई का अंधा शिगाफ़ : भाग-10 अंतिम

आप पढ़ रहे हैं तन्हाई का अंधा शिगाफ़। मीना कुमारी की ज़िंदगी, काम और हादसात …

14 comments

  1. हर शख्स अदम नहीं हो सकता।बस।कोशिश है कुछ ठीक ठाक सा लिखने की।

  2. जानकीपुल का बतौरे ख़ास।

  3. आप सभी का बेहद शुक्रगुज़ार हूँ,हौसला अफजाई के लिए।

  4. बेहतरीन गज़लों का गुलदस्ता .. 🙂

  5. जय नारायण बुधवार जी नायाब गजलें पढ़वाने हेतु धन्यवाद!

  6. जयनारायण जी आप वरिष्ठ है और अदम गोंडवी की सोहबतें आपको हासिल रही हैं। ग़ज़लियात बेशक़ क़ाबिले-तारीफ़ हैं लेकिन मिज़ाज को बदलने मत दीजिए। मुझे तो ये वाली ज़्यादा पसंद आई।
    सम्हल कर वोट देते लोग ग़र पिछले इलेक्शन में
    हमारे मुल्क में खुजली की बीमारी नहीं आती।

    न आती ग़र अदाकारा वज़ीरों की कतारों में
    हमारे कॉलेजों में इतनी ऐयारी नहीं आती।

    मियाँ तुम लौट जाओ क्या करोगे तुम सियासत में
    तुम्हें तो घर मोहल्ले से भी गद्दारी नहीं आती।

    यहाँ इन बस्तियों में तो तरक्की एक गाली है
    रसोई में यहाँ बरसों से तरकारी नहीं आती।

    उलझ कर रह गए होते पुरस्कारों के चक्कर में
    हमारे शेरों में भी इतनी खुद्दारी नहीं आती।
    मैं आपसे अदम वाले तेवर की तवक़्क़ो करता हूँ। मुबारकबाद !

  7. सारी की सारी एक से बढ़ कर एक। सुन्दर बहुत ही सुन्दर

  8. वक़्त की नब्ज़ टटोलती हुई गज़ले है ,जो बेबाकी के हुनर से सच बयां करती है ।
    बुधवार सर के शेर फेसबुक पर पढ़ती रहती हूँ ,एक या दो अश्आर भी अपनी मुकम्मल बात कह देते है ।
    धन्यवाद जानकीपुल
    शुभकामनाएं ,जय नारायण सर

  9. मेरे मिजाज ने चुना हर हॉल में रिश्ता …वाह्ह्ह्ह्ह्

  10. अलग मिजाज की गजलें. जो हमारे समय के हालात बंया करती है .बुधवार जी अपने प्रति निस्पृह हैं .आपने उन्हे प्रकाशित कर अच्छा किया ..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *