Home / Featured / बांग्ला कवयित्री मंदाक्रांता सेन की कविताएँ

बांग्ला कवयित्री मंदाक्रांता सेन की कविताएँ

आज मंदाक्रांता सेन की कविताएँ. समकालीन बांगला साहित्य में मंदाक्रांता सेन का नाम जाना-माना है. उनको आनंद पुरस्कार भी मिल चुका है. उन्होंने साहित्य अकादेमी का युवा पुरस्कार लौटा दिया था. उनका एक उपन्यास ‘झपताल’ हिंदी अनुवाद में उपलब्ध भी है. हम आभारी हैं उत्पल बैनर्जी के कि उन्होंने उनकी कविताओं का इतना सुन्दर अनुवाद किया. जबरदस्त फेमिनिस्ट कविताएँ हैं- मॉडरेटर 
=========
  
1.
रास्ता
तुम्हारी आँखों के भीतर
एक लंबा रास्ता ठिठका हुआ है
इतने दिनों तक मैं उसे नहीं देख सकी
आज जैसे ही तुमने नज़रें घुमाई
मुझे दिखाई दे गया वह रास्ता।
बीच-बीच में तकलीफ़ झेलते मोड़
रास्ते के दोनों ओर थे मैदान
फ़सलों से भरे खेत
वे भी जाने कब से ठिठके हुए थे
यह सब तुम्हें ठीक से याद नहीं
आँखों के भीतर एक रास्ता पड़ा हुआ था
सुनसान और जनहीन।
दूसरी ओर
कई योजन तक फैला हुआ है कीचड़
वहाँ रास्ता भी व्यर्थ की आकांक्षा-जैसा मालूम होता है
कँटीली झाड़ियाँ और नमक से भरी है रेत,
कहीं पर भी ज़रा-सी भी छाया नहीं
इन सबको पार कर जो आया है
क्या तुम उसे पहचानते हो?
वह अगर कभी भी राह न ढूँढ़ पाए
तो क्या तुम उससे नहीं कहोगे
कि तुम्हारी आँखों में एक रास्ता है
जो उसका इंतज़ार कर रहा है?
2
लज्जावस्त्र
रास्ते से जा रही हूँ
और मेरे वस्त्र खुलकर गिरते जा रहे हैं
मैं नग्न हुई जा रही हूँ माँ!
और आखि़र घुटनों के बल बैठ जाती हूँ
दोनों हाथों से जकड़ लेती हूँ
दोनों घुटनों को,
छुपा लेती हूँ अपना चेहरा
अपना पेट अपना सीना
खुली पीठ पर अनगिनत तीर बिंधने लगते हैं
माँ, यकृत तक को तार-तार कर रही हैं नज़रें
हृदय और फेफड़ों को भी …
शायद ये सब दुःस्वप्न हैं
लेकिन दुःस्वप्न तो हर रास्ते पर बिखरे हुए हैं
भागने की जी जान से कोशिश करती हुई
मैं गलियों कोनों-अँतरों में घुस जाती हूँ
हर तरफ़ भीड़ ही भीड़!!
कितने कौतूहल से देखती रहती हैं गलियाँ
दोनों ओर से दीवारें जकड़ लेती है
मेरा दम घुटता जा रहा है
अट्टहासों का झुण्ड मेरी ओर दौड़ता आ रहा है
ओ माँ,ख़ून की धार में बही जा रही हूँ
खू़न पोछूँ किस तरह …
मेरी देह पर कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं
भयंकर लज्जा से मरी जा रही हूँ
आखि़रकार मैं किस तरह
अपने घर लौट सकी भगवान जाने …
और माँ,उधर उन लोगों ने तब
मेरे नग्न शव को
परचम से ढँकना शुरू कर दिया था …
3.
स्वप्नरूपेण
मुझे विश्वास है कि तुम कर सकती हो।
तुमने निहायत सस्ती
सिंथेटिक साड़ी पहन रखी थी
हाथ में था प्लास्टिक का गुलाबी पैकेट
कलाई में केवल शाखा-पला1
और घिस चुकी हवाई चप्पल पैरों में
लगता है तुम्हें सेफ़्टिपिन बहुत पसंद है
लगता है,तुमने कुछ और पसंद करने के बारे में
कभी सोचा ही नहीं।
समझ में आ जाता है कि
तुम विज्ञान नहीं जानती,कविता भी नहीं,
गाने या कि अल्पना रचना भी तुम्हें नहीं आता
(जो ये सब जानते हैं वे कुछ तो उजले दिखते हैं)
तुममें चमक नहीं,चेहरे की त्वचा खुरदुरी।
यहाँ तक कि टिकिट लेकर
खुल्ले पैसों का हिसाब तक नहीं कर पातीं
कंडक्टर धमक देता है।
तुम्हारे चेहरे पर उभर आता है आतंक
और फटे होंठों पर अर्थहीन हँसी।
सब तुम्हें सता रहे थे
और किसी तरह तुम बस से उतर पाईं
अच्छा कहो,अब तुम क्या करोगी … घर जाओगी
तुम्हारा पति घर पर नहीं है
बच्चे भी नहीं,अच्छा-बुरा खाना बनाओगी कुछ?
वह भी तुम्हें शायद ठीक से नहीं आता!
तेल नहीं है,केवल दो आलू पड़े हैं
यह सब कहने से क्या होता है!
जो क़ाबिल हैं,अन्नपूर्णा,
वे दाल-भात को भी अमृत बना देती हैं
रात ढलने पर एक-एक कर
तुम्हारा संसार घर लौट आया
खाना हुआ और सोने का इंतज़ाम भी
मिलन भी हुआ और तुम कुछ भी नहीं कर सकीं।
फिर आधी रात को तुमने
पति और संतानों के चेहरों को
चुपके से छुआ
और वे स्वप्न में नीले पड़ गए।
मैंने कहा था तुम कर सकती हो
बस किसी ने इस पर विश्वास नहीं किया।
00
————-
1.शाखा-पला: विशेष प्रकार के कड़े,जिन्हें बंगाल की सधवा स्त्रियाँ सुहाग की निशानी के तौर पर पहनती हैं।

4.

विसर्जन

पुराने कमरे की फ़र्श पर पड़ी हुई थी

अस्त-व्यस्त साड़ी

उसे भी छोड़कर वह युवती अनाड़ी

आधी रात देहरी से बाहर निकल गई

वहाँ, घर के बाहर मैदान का संदिग्ध विस्तार था …

उस युवती ने सोचा था कि

रोज़ रात को बिकने के बजाय

एक रोज़ अँधेरे में

इस अंधकूप को तैर कर पार करके

चली जाएगी किसी दूरवर्ती घाट पर

यह तो उसका पहला ही घाट था

स्त्रियों का जीवन तो

बहते-बहते ही कटता है …

निहायत नासमझ लड़की थी वह

अँधेरा उसकी नाव नहीं था

और नदी की हर बाँक पर था डर

तमाम घाटों पर बहते रहना हो तो

तैराकी का आना भी तो ज़रूरी है

लेकिन वह युवती आज तक

ठीक से तैरना तक नहीं सीख सकी थी

जो होना था वही हुआ

लड़की ने जैसे ही डोंगी खोल दी

तुरंत उसकी बेआबरू देह पर

भीतर तक बिंध गया आदिम पृथ्वी का अँधेरा

अकेला नहीं, झुण्ड के झुण्ड मृतजीवी

सामूहिक बलात्कार के बाद

मैदान में पड़ी रही लाश

गले में फंदा उसी के ब्लाउज़ का

दो-तीन दिन बाद

आनन-फानन जाने कौन लोग

गाड़ गए वह लाश

अब उस कमरे में एक नई लड़की है

जिसने वही छोड़ी हुई साड़ी पहन रखी है …

5.

कहो और तरह से

जो बात जिस तरह से कही जा चुकी है

आज उसे और तरह से कहो।

कहो कि तुम प्यार करती हो,

लेकिन ऐसा झूठमूठ मत कहना।

प्यार करते-करते देखो

कि एक दिन रुलाई आती है या नहीं,

फिर दबी ज़बान में ख़ुद से ही कहो: और … और …

मुझे मालूम है

बहुत सारे दुःख जमा हो चुके हैं।

फिर भी, दुःख की बातें

उपेक्षा से बिखरा कर मत रखना

हँसते-मुसकराते हुए ख़ुद को प्यार करना

कहना कि अहा, रहने दो।

दुःख में तुम बहुत फबती हो

यह बात जो जानता है, वही जानता है!

लोगों ने जो बात

बार-बार चीख़कर कही है

उसे तुम्हें कहने की ज़रूरत क्या है!

ख़ामोशी से पलट दो, चुपके से उलट दो दान …

भीड़ के सिर पर सवार हो

जब दरवाज़े पर दस्तक दे क्रांति

तुम हौले से मुसकराते हुए कहना — अच्छा मैं भी आती हूँ …!

6.

युद्ध के बाद की कविता

इतनी बार ध्वस्त हो चुकी हूँ

फिर भी ध्वस्त होने की आदत नहीं पड़ी।

आज भी बड़ी तकलीफ़ होती है

ध्वस्त होने में बड़ी तकलीफ़ होती है।

हरेक अंत से, देखो, उस मृत्यु से मैं लौट रही हूँ

जन्मलग्न की ओर

जी जान से लौट रही हूँ

घुटनों और सीने के बल घिसटती।

इतनी बार, इतनी बार मरती हूँ

देखो, फिर भी मैं मृत्यु पर विश्वास नहीं करती

लड़ाई के मैदान में टटोलती फिरती हूँ चेहरे

झरे हुए चेहरे।

माँ और पिता के चेहरो, संतानो के चेहरो,  उठो —

लड़ाई ख़त्म हो गई है।

अगली लड़ाई से पहले

हम फिर से गढ़ेंगे नई बस्तियाँ

हम फिर से करेंगे प्यार।

आदिगन्त तक फैले खेतों में

हथियार बोकर उगाएँगे धान की फ़सल।

मैं इतनी बार झुलसी हूँ

बही हूँ कितनी ही बार

फिर भी देखो मैं अब भी नहीं भूली

कि ध्वंस के बाद भी इन्सान

किस प्रकार जीतता है …

00

मूल बँगला से अनुवाद: उत्पल बैनर्जी

 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

अनुकृति उपाध्याय से प्रभात रंजन की बातचीत

किसी के लिए भी अपनी लेखन-यात्रा को याद करना रोमांच से भरने वाला होता होगा …

5 comments

  1. Bahut achchhi kavitayen…
    Aabhaar Mandakranta Ji , Utpal Ji aur Bhai Prabhaat Ji .
    -Kamal Jeet Choudhary .

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *