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मृणाल पांडे का अथ पुरातन प्रबंध नव्य संस्करण -2

प्रसिद्ध लेखिका मृणाल पांडे इन दिनों किस्सों की पुरानी लुप्त हुई परम्परा के सूत्रों को जोड़ रही हैं. यह दूसरी कड़ी है. पहली कड़ी में हम हिमुली की कथा पढ़ चुके हैं. इस बार हिमुली की कथा आगे बढ़ी है और उसमें हर कथा की तरह अनेक नए पात्र जुड़ गए हैं. संस्कृत की कथा परम्पराओं की याद दिलाती हुई एक आधुनिक कथा परम्परा का लुत्फ़ उठायें- मॉडरेटर

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मुद्राराक्षस संबंधी प्रबंध :

इंद्रप्रस्थ जनपद में जंतरिणी नामक छायादार वृक्षोंवाला एक पुरातन उद्यान था जहाँ नगर के अनेक धूर्तगण नियमित रूप से मिल बैठ कर गप्पें लगाते थे । उनका सरगना एक धूर्त था जिसे दुर्जय कहते थे । क्योंकि उसके अनुसार उसकी जनमपत्री देख कर एक पंडित ने कहा था कि धूर्तता में उसको कोई न हरा सकेगा । वह शुरुआत भले ही क्षुद्र धूर्त आचरणों से करे, पर कालांतर में वह धूर्तों का निर्वाचित प्रधानसेवक बन कर अमर होगा ।

तो आगे सुनो । इस दुर्जय नाम्ना जधूर्त के तीन परम धूर्त मित्र थे : दो खल्वाट् पुरुष : शशक, जटिलक और तीसरी हिमुली नाम्ना एक रहस्यमयी मृगलोचनी यक्षिणी धूर्तिनी, जो अपनी कोमल कटि में उल्लुओं के सर सरीखे घुंघरुओं वाली एक रत्न जटित सुवर्ण मेखला धारण करने के कारण मित्र धूर्तों में उलूकलमेखला नाम से भी सुख्यात थी । हिमुली के अनुसार हिमालय की कंदरा से अपना तप भंग कर उससे समागम के लिये इंद्रप्रस्थ तक आये एक महासाधक ने उसकी सेवा से प्रसन्न हो कर उसे पुनर्नवा नामक दुर्लभ सिद्ध बटी प्रदान की । उस बटी के प्रयोग का फल था कि वह हर सदी के बाद की सदी में अपनी ही चिता की राख से यवन पक्षी फीनिक्स की तरह पुनर्नवा रमणीक युवती बन कर निकलती थी । पुरुषों की रुचियों में सदियों से अंतर नहीं पडा था अतएव उसका सौंदर्य उसके माहठगिनी बनने में महासहायक सिद्ध होता रहा था ।

धूर्तिनी होने के कारण धूर्तमंडली के लिये हिमुली यक्षिणी की बात पर पूरा विश्वास करना कठिन था, फिर भी उसका चिर युवा सौंदर्य रसिक अनुभवी नगरवासियों के बीच असंदिग्ध माना जाता था । कुछ तो भी तो है ही इसमें, वे गूढार्थभरी चितवन उसपर डालते हुए सोचते थे ।

एक बार दैव विकार के कारण जनपद के आकाश में कई दिन बादल छाये रहे और खूब जल बरसने से बाहर संचरण कठिन बना । तदुपरांत जब कई दिन बाद अच्छी धूप निकली तो खुले आकाश तले ताज़ा पका सुस्वादु भोजन खाने की इच्छुक धूर्तमंडली सीधे जंतरिणी उद्यान में जा पहुँची । अभिवादन के बाद सबने कहा कि अहह, ऐसी सुशीतल हवा और मित्रों का साथ ! आज तो खूब छक कर नाना व्यंजन खाने को मन करता है ।

तदुपरांत मित्रमंडली के बीच इस बात पर परस्पर विवाद होने लगा कि उनमें से आज का खाना कौन खिलायेगा ?

काफी विवाद विमर्श के उपरांत दुर्जय उवाच, हम सब संस्कारी धूर्त हैं और इस नाते हम सभी श्रुति, महाभारत तथा रामायण को पवित्र साक्ष्य तथा सत्य की अंतिम कसौटी मानते हैं । है या नहीं ?

शेष धूर्त एक स्वर से बोले, सत्यवचन स्वामी ।

मित्रों, स्वामी नहीं, मुझे विनम्र जनसेवक ही कहें, यह कह कर दुर्जय आगे बोला, यदि यह तथ्य सबको स्वीकार्य है तो अब यह हो, कि हम में से हर धूर्त अपने अनुभव पर या सुनी हुई वार्ता पर आधारित कोई घटना सबको सुनाये । उसकी कथा को श्रुति, महाभारत और रामायण के प्रमाण से यदि हम सब सत्यापित करें तो हम धूर्त बंधु उस कथावाचक सहित उस सदस्य से नि:शुल्क भोजन पाने के अधिकारी होंगे जो तब भी कहेगा कि यह कथा असत्य है ।

जनसेवक दुर्जय का यह प्रस्ताव धूर्तबंधुओं द्वारा सर्वसम्मति से पारित हुआ ।

सबसे पहले धूर्त शशक ने अपनी कथा शुरू की ।

-‘ एक बार जब मैं साधु के वेष में अपने अंगरक्षकों को लेकर गुर्जर देश स्थित भृगुकच्छ से अविमुक्त क्षेत्र वाराणसी की हाट में बहुमूल्य रत्नों के गुप्त व्यापार के लिये निकला हुआ था, एक निर्जन वन में मैंने कुछ सशस्त्र दस्युओं को आते देखा जो सभी देह से विशाल, मुख से कराल तथा आग्नेयास्त्र लिये हुए और घोडों पर सवार थे । एक झाड के पीछे मैंने तुरत अपना काषेय उत्तरीय खोल कर अपने सभी अंगरक्षकों को जो मेरी रत्न की मंजूषा की रखवाली करते थे, मंजूषा सहित उसमें लपेट लिया । फिर मैं अलख बम बम जपते हुए उनकी बगल से निकल कर एक गाँव में जा पहुँचा । मुझे गृहत्यागी अपरिग्रही साधु मान कर दस्यु दल ने मुझमें कोई रुचि न दिखाई और जाने दिया ।

गांव में कुछ बच्चे गुल्ली डंडा खेल रहे थे । उनको मैंने कुछ कार्षापण पकडा कर अपनी गठरी पकडाई और बात की बात में उसे शमी के एक पेड पर टँगवा दिया । तभी दस्यु वहाँ आ गये और गाँव में भागो !भागो ! का शोर मच गया । साँझ का समय था, सूर्यदेव अस्त हो रहे थे । तभी क्या देखता हूँ कि सारे गाँव के लोग अपने पशुधन सहित मेरे देखते ताल में उगे एक बडे कमलपुष्प के भीतर जा घुसे जो अपनी भगवान भुवनभास्कर के अस्ताचलगमन की वेला में अपनी पंखडियाँ बंद करने जा रहा था । गाँव को जनशून्य, पशुरहित देख कर दस्यु लौट गये । तभी एक भूखी गाय जो बाहर छूट गई थी, रँभाती हुई वन से दौडी चली आई । आकर वह जल में उतरी और उस कमल को निगल गई । जब वह गाय जुगाली कर ही रही थी, कि एक बडा अजगर आया और उस गाय को पुष्पसहित निगल गया । पेट भरा होने से शिथिल गति से रेंगते उस अजगर को एक बहुत बडा गरुड पक्षी अचानक झपट्टा मार कर ले उडा और फिर एक उच्च पर्वत शिखर पर ले जा कर गाय तथा कमल सहित निगल गया ।

जब यह हुआ तब उस पर्वत शिखर पर एक विशाल चुनावी जन सभा हो रही थी जिसमें हाथों में विजय ध्वज लिये हज़ारों दलीय कार्यकर्ता तथा लाखों लोग जमा थे । अजगर भक्षण के उपरांत भीड से बचने को उडान भरते हुए गरुड का पंख वृक्ष के शिखर पर स्थापित महान् नेता जी के एक बडे से कटआउट में फँस गया । कुछ देर उसे गिराने की चेष्टा के बाद अंतत: गरुड महान् कटआउट को लिये दिये आकाश में जा उडा । अब जनसभा में उपस्थित सारे कार्यकर्ता शोर मचाने लगे कि हाय नेताजी तो अक्कास में उड गये, अब भाषण का क्या होगा ? आदि ।

उसी समय वहाँ शमी वृक्ष पर लटकी मेरी गठरी से मुक्त हो कर हाथ में आग्नेयास्त्र लिये मेरा एक शब्दवेधी योद्धा वहाँ आ गया । और उसने निशाना साध कर उडते गरुड को मार गिराया । गिरने से गरुड का पेट फटा तो उसमें से अजगर निकला, अजगर के पेट से गाय, गौमाता के उदर से कमल पुष्प जिसकी पंखुडियाँ धूप पडते ही खुल गईं और उसमें से भीतर छुपा सारे का सारा गाँव अपने रँभाते मिमियाते भौंकते पशुधन सहित हल्ला करता बाहर आ गया । कार्यकर्ता जब इस बीच आकाश से अवतरित कटआउट पुन: लगा ही रहे थे कि नेताजी भी आ पहुँचे । हल्ले गुल्ले का लाभ उठा कर मैं तथा मेरा अंगरक्षक गाँववालों की भीड के साथ गाँव को निकल लिये और जब तक वे अपने अपने घर बार पशुधन को सँभालते, अंगरक्षक ने चटपट शमी वृक्ष पर चढ कर बहुमूल्य गठरी निकाल ली और हम वन में प्रवेश कर गये । वहाँ मैंने गठरी खोल कर उससे शेष अंगरक्षकों को मुक्त किया और रत्नों की मंजूषा सहित हम वाराणसी को रवाना हो गये । वाराणसी पहुँच कर वहाँ के व्यापारियों को अच्छे दाम पर अपना माल बेच कर मैं यहाँ चला आया ।

अब आपै लोग कहें क्या यह घटना सच्ची है ?

धूर्तों ने एक दूसरे को देख कर सर हिलाया, बिलकुल सच्ची है ।

शशक ने पूछा, किंतु, कमल को गाय का, उसको अजगर का और अजगर को गरुड का खाना, मेरे सारे लोगों का एक अंगवस्त्र में, और एक सारे के सारे गाँव का एक कमल में समाना ?इस पर राय क्या है ? क्या ऐसा संभव है ?

नितांत संभव है, एक मित्र धूर्त बोला । शास्त्र कहते हैं कि हर युग में सृष्टि के आरंभ और अंत में चारों ओर सिर्फ जलराशि ही होती है । फिर किसी बडे अजगर की रस्सी और पर्वत की मथानी बनती है और उसके मंथन से जल में से यह जलौघमग्ना सचराचरा धरा, वनस्पति, नाना रत्न और घट बाहर निकल आते हैं । एक विशाल शेष शैया भी वहीं लगी मिलती है जहाँ विराट् अजगर पर लेटे देवता की नाभि से सहस्त्रदलवाला कमल खिला करता है जिसमें से प्रकटे सृष्टिकर्ता कालांतर में समुद्र से प्रकटे उपकरणों से नई नई सृष्टि बनाते रहते हैं ।

‘गाय की क्या बात करते हो यार ! इंद्रप्रस्थ के किसी भी भक्त से पूछ लो । वह सचित्र पुस्तिका दिखा कर तुमको बता सकता है कि किस प्रकार हमारा यह विश्व, इसके नाना पशु- पक्षी ताल तलैया, गढे पहाड सब गोमाता के उदर में समाये हुए हैं । स्वयं गोमाता जनसेवक दुर्जय की धर्मार्थ गोशाला के भित्ति के स्थापत्य में उत्कीर्ण है, जो कि उनके गुप्त निवास की चारदिवारी में स्थित है ।

‘अब छोडो भी यह विनम्रता । साधुवाद के साथ यह रोचक कथा समाप्त हुई मानी जायेगी ।

‘अबकी बारी जटिलक की पारी ।’

गंजे शिर पर हाथ फिराते हुए जटिलक ने अपनी कथा शुरू की ।

‘ मैं पांच नदियों के क्षेत्र के मीमांसा शास्त्र के विख्यात जानकार परिवार का इकलौता उत्तराधिकारी हूं । प्रमाण सहित ही हम मीमांसक अपना पक्ष रखने में निपुण हैं । मेरी वक्तृता तथा शास्त्रार्थ में निपुण होने की ख्याति बचपन से ही फैल गई थी । एक बार मैं शास्त्रार्थ के बाद घर लौटा तो मुझसे पिता ने कहा कि ‘हे जटिलक, तुमको राजा ने विशिष्ट मंत्रिपद देने को बुलाया है । शीघ्र प्रस्थान करो ।’

इस पर मेरी माँ ने कहा, ‘ अरे लडका अभी शास्त्रार्थ कर लौटा है । उसे तनिक विश्रांति तो लेने दो । मैं पूछती हूँ कि कहाँ का है रे यह राजा? कौन सा है उसका कुल ? कैसा है यह मंत्रिपद जो वह तुमको थमा रहा है ?’

तब मेरे पिता ने कहा, ‘ री मूर्खे, तू राजाधिराज मुद्राराक्षस को नहीं जानती । न उनकी राजकीय सत्ता का विशाल क्षेत्र जानती है । बक बक बंद कर । हमारे खानदान में जिजमान की दान की बछिया के दाँत हम मीमांसक लोग नहीं गिनते । आगे जो होगा देख लेना । जा पुत्र तू जा । शुभस्तु ते संतु पंथान:,’ आदि ।

मैं सीधे राजकुल में गया और वहाँ पहुँचते ही मुझे महाराजाधिराज के आदेश से अनेक बूढे अनुभवी अमात्यों के वरीयता क्रम को लाँघ कर सर्वमुद्राभिलेखाधिकारी का पद प्राप्त हुआ । मुझे बता दिया गया था कि कुछ दिन कुछ खुराफाती बूढे मुझे अपदस्थ करने के अनेक विफल कुचक्र रचेंगे पर मुझे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं । महाराज मुद्राराक्षस शीघ्र ही उनका कुछ प्रबंध कर देंगे । इस प्रकार आश्वस्त हो मैं मनोयोग से अपना काम करने लगा । कुछ दिन बाद राजाज्ञा से वे सभी वृद्धजन दिशा निर्देशक के रूप में सार्वजनिक रूप से सम्मानित किये गये और फिर राजप्रासाद से एक सुदूर बंद भवन में जा बिठा दिये गये । मुझे आनंद हुआ । अब नित्य राजदरबार के अट्ठारह हज़ार अमात्य मेरे अधीनस्थ नाना प्रकार की राजकीय मुद्रा के निर्माण, नियामन, वितरण और भंडारण का काम देखने लगे, महाराज से नियमित दैनिक मंत्रणा होने से मेरी दैनिकी बडी सुखद बन गई ।

कुछ दिवस उपरांत बातचीत के बीच अचानक महाराजा ने कहा कि, हे महामात्य, तुमको गोपनीय बात कहता हूँ । बल बुद्धि विवेक से सुनो । आज रात एक आकाशवाणी होनेवाली है । उसके बाद देश के सभी जनपदों के सभी विपणन केंद्रों, गृहों तथा विदेश व्यापार नौकाओं में सभी गोचर या अगोचर, श्वेत या श्याम राजकीय मुद्रायें दैव प्रताप से शुष्क लता-पत्रों में बदल जायेंगी । तदुपरांत कल से जब तक हम तुम उसे नवीन मुद्रायें न उपलब्ध करायें, जनता अपने पूर्वजों की तरह विनिमय प्रथा से येन केन जीवन यापन करेगी । घाणी में पेरे हुए तिलों की तरह इस तरह सारी पुरातन वित्तीय व्यवस्था का तेल हमारे राजकीय घटों में भर जायेगा । तब उस तैल से हम पूरी राजकीय व्यवस्था के चक्रों को अधिक गति प्रदान करते हुए राज्य की खटारा बैलगाडी को ऐसी गति प्रदान करेंगे कि वह आग्नेयास्त्र की बुलेट की गति से हाँकी जा सके । साथ ही हम तुम तथा हमारे प्रिय गण कुछ अलग रखवाये गये तैल घटों को पीछे के गुप्त मार्ग से अपने घर भिजवा कर उनसे अपना तथा अपने कुल वंश का सम्यक् तन मर्दन कर उनको आकर्षक व स्वास्थ्यवान् बनायेंगे । तो तुरत अपने राजकीय कक्ष में अपने अनुचर अमात्यों को बुलवा कर मुद्रांकन की प्रक्रिया प्रारंभ करो यह तुम्हारा दाय है ।’

मैं तनिक हिचकिचाया और मैंने कहा कि दाय तो मैं लेता हूँ, किंतु लोक मुख से मुद्रा के हठात् लता- पत्र बनाये जाने की जो निंदा और जन आक्रोश की आँधी उपजेगी उसका क्या ?

महाराजाधिराज हँसे और बोले, मित्र, यही तो राजनीति है । चलो तुमको दिखाता हूँ कि जनता मात्र अपने हित स्वार्थ की आकांक्षी होती है । बात चाहे जितनी करे अपने और अपने परिवार के अतिरिक्त उसके लिये शेष सब गया भडभूंजे के भाड में ! इसी सुरक्षा कामना से राजाओं को वह रचती रहती है ।

काले कंबल से मुख ढाँप कर हम महल के बाहर आये । सामने एक फटे वस्त्रों में गधा हाँकता कुंभकार मिला । महाराज ने कहा ‘रे, कल तेरा घडा कोई न लेगा । मुद्रा विनिमय समाप्त हो रहा है ।’ वह बोला ‘पथिक, तुम्हारे मुख में घी शर्करा । अब तो कई लोग पुरानी मुद्रा का दाह करेंगे और गृहिणियाँ चूल्हे तले दबाई मुद्रा से कब तक चूल्हा जलायेंगी ? अहो, अब तो मेरा माल पहले से भी अधिक भाव पर बिकेगा । मुद्रा विनिमय से मुझे आधे साल का खाना मिलता था । अब अन्नादि के विनिमय के साथ सुवर्ण तथा चाँदी भी वसूल करूंगा तो मेरा साल सुख से निकल जायेगा ।’

आगे चले तो एक नगरसेठ दिखा । उससे भी वही कहा गया । वह बोला ‘मुद्रा होती ही कहाँ है हम नगर सेठों के पास ? हम सब तो जितनी मुद्रा मिली, उससे तुरत रत्न सुवर्ण भवनादि खरीद कर अनेक जनपदों में अपने कोठारों में सुरक्षित कर देते हैं । भवनादि भी हमने इधर बडे बनवा लिये हैं । कुछ पुरानी मुद्रायें जो बचीं, हमने भ्रष्ट राजकर्मचारियों को उत्कोच में दे दीं । यदि मुद्राओं के लता पत्र बनने पर रोये तो वे ही रोयेंगे ।

‘महाराज मुद्राराजक्षस महान् हैं । उनकी कृपा हम सेठों पर सदा धूप की तरह बरसती रहती है । आगे भी बनी रही तो हम सेठों को उनके द्वारा पुनर्रचित नवीन मुद्रायें सदा की भाँति सबसे पहले मिलेंगी और उसके चतुर विनिमय से हम सबकी आय द्विगुणित हो जायेगी । मुद्राराक्षस महाराज की जय हो !’

आगे मार्ग में हमको एक तीसरा जन मिला जो स्वयं भी हमारी ही भाँति काले कंबल में मुँह छिपाये त्वरित गति से राजमहल के पीछे की ओर जाता था । देख महाराज ने मुझसे धीमे से कहा, यह तुम्हारे आधीन काम करनेवाला एक राजपत्रित अधिकारी है । फिर प्रकट में उस व्यक्ति से कहा ‘, रे कंबलधारी मित्र, इतनी रात गये कहाँ ?’

‘काम पर जाता हूँ’, वह गंभीरता से बोला । ‘मैं रात की पाली में राजकीय मुद्रा तथा राजकोष की रक्षा करता हूँ ।’

‘अरे छोडो,’ महाराज उससे बोले,’रहस्य की बात कहता हूँ, ध्यान से सुनो, कल प्रात: देश की सारी राजकीय मुद्रा लता पत्र बनने जा रही है । अब कैसा काम ?’

‘तुम सामान्य लोग नहीं समझोगे,’ काले कंबलवाला बोला । ‘ प्रशासकीय तंत्र में रात की पाली में अनेक बार हमलोगों को दिवस में किये का अनकिया भी करना होता है । आपके लिये समाचार है कि नव्य मुद्रायें राजकीय कक्ष में अब तक ढलने भी लगी होंगी । आकाशवाणी से पूर्व उनको गोपनीयता सहित विशिष्टातिविशिष्ट जनों तक पहुँचाना इस समय हमारे कार्यवाहों की प्राथमिकता है ।’ इतना कह कर वह गायब हो गया ।

तो इस प्रकार अगले दिन बिना किसी पूर्व सूचना के आकाशवाणी हुई और रातोंरात राजकीय मुद्रा सूखे लता पत्रों में बदल गई । उस पुरानी मुद्रा की मसानों में चितायें जलीं, चूल्हों में उनकी अग्नि में व्यंजन बने । उधर राजकीय कार्यशाला में दिन रात बनती रही नवीन मुद्रा छपते ही चुस्ती से बँटने लगी । मूढ जन कतारों में लग कर नई मुद्रा की प्रतीक्षा में आकाशवाणी की चर्चा करते मुद्राराक्षस महाराज के गुण गाते रहे । महाराज के अनुचरों ने उनको कुछ लड्डू तथा पेय वितरित करके और प्रसन्न किया इसका बहुत प्रचार हुआ ।

‘बडे सेठ लोग पीछे से कार्यशाला में आये और बोरों में भर भर कर यथेच्छ मुद्रा ले गये । राजकीय गुप्तचरों ने जनपद में प्रजा तथा राजकीय अधिकारियों को पहले से भी संतुष्ट, महाराज में पहले से अधिक अनुरक्त पाया ।

कहो, क्या यह कथा सच हो सकती है ?’

-अवश्य, सभी धूर्त बोले । महाभारत तथा रामायण में उल्लेख है कि हर बडी घटना से पहले आकाशवाणी अवश्य होती है । और दोनो ग्रंथों में आपत्ति के समय राजाज्ञा से चालित कुछ मुनिजन द्वारा जनता को क्षमा, धैर्य, धर्म तथा नारी को परखने का सुचारु विमर्श देकर सदैव शांतिस्थापन भी किये जाते हैं । बताया यह भी गया है कि अपने पाटलिपुत्र में उडद के पौधे इतने बडे होते थे कि उन पर रणभेरी ठहर सकती थी, गुर्जर प्रदेश तथा इंद्रप्रस्थ में तो घी दूध की नदियाँ बहती ही रही हैं । ऐसे देश में विनिमय प्रथा सदा से है ।

‘रही मुद्रा के लतापत्र बनने की बात , सो जो भी सत्यनारायण कथा का जानकार है, जानता ही है कि किस प्रकार कलावती कन्या के श्रेष्ठि पिता की मुद्रा से भरी नौका भी एक ब्राह्मण के तथास्तु कहते ही लता पत्रों से भर सकती है ।

‘और अन्न ही नहीं, यहाँ के मायावी तलघरों की उत्सवी चहल पहल के बीच महाभारत युग से पत्नी तथा बच्चों तक के भी विनिमय के अनेक दृष्टांत सुमुखी हिमुली गिना सकती है । यदि तुम परंपरा में सच्ची आस्था रखते होगे, तो किसी भी दृष्टि से यह कथा असत्य नहीं प्रतीत होगी ।’

‘अपि च,’ अपनी उलूक मेखला को झनकार कर हिमुली बोली, ‘ मित्रो, मैं तो स्वयं महाभारत के समय से ही भोले विदेशी प्रवासियों को रात के समय कुरु पांचाल क्षेत्र में रुकने से बचने की सलाह देती आई हूँ । इंद्रप्रस्थ नामक इस मायानगरी में दिन के उजाले में जो कुछ होता है, प्राय: रात को उसका ठीक उलट होता है, यह भी सत्य है । यहाँ घटनाओं तथा गुप्त सूचनाओं का प्रवाह नदी की तरह नहीं होता । कई जगह एक वृहत्तर उलट बहनेवाली गुप्त धारा यहाँ के राजकीय तलघरों में बनती बहती चलती है । जो यह नहीं जानता, वह यहाँ शीघ्र ही लुट जाता है । इसीलिये कलिकाल में लोग इंद्रप्रस्थ को लुटियन नगरी भी कहते हैं । महाराज मुद्राराक्षस सदा इस नगरी की रक्षा करें !

‘यह सब प्रामाणिक सच है । अत: हमारे लिये तुम्हारी कथा को असत्य मानने की कोई वजह नहीं । अब मित्रवर दुर्मुख से अनुरोध है कि वे अपनी कथा कहें ।

अब दुर्मुख ने अपनी कहानी सुनाई :

‘एक बार एक बोरी सुवर्ण जमा करने की अभिलाषा से मैं खोखले नारियल के भीतर घुस कर समुद्रमार्ग से अमृका नामक विशाल देश जा पहुँचा । वहाँ की राजधानी विशिष्टस्थानक में तुरंप पिंगलकेशिन् नामक महाबली यवन राजा राज्य करता था । काले रंग के काले बालवालों से उसे उत्कट चिढ थी । इस बात से अनजान मैं जब समुद्रतट पर मेरा नारियल जा रुका, तो बिना अंधकार की प्रतीक्षा किये उसके बाहर आ गया ।

‘अरे देखो, काला विदेशी बिना प्रमाणपत्र के घुस आया है, इसे पकडती हूँ’, कहती हुई एक भीषणाकृति हिडिंबा सरीखी श्वेतवर्ण राक्षसी मेरे पीछे पाश तथा दंड लेकर दौडी । उससे बचने को मैं समुद्र तट से लगे यवन राजा के विशाल किले तुरंपगढ के शिखर पर जा चढा । पीछे पीछे राक्षसी भी चली आई । तब मैं एक पत्थर की सँकरी झिर्री से राजनिवास के भीतर घुस गया क्योंकि जानता था कि उसमें फँसी तो दंड पाश धारिणी राक्षसी पूरी तरह भीतर न आ सकेगी । उसे पीछे छोड फिर मैं गढ से बाहर को जाते वाहनों की कतार के एक वाहन पर कूदा और उसके आवरण तले छुप कर सवार हुआ । यह वाहन सीधे एक विशाल क्रीडांगन में जाकर रुका । मैंने देखा कि एक विशिष्ट वाहन से इस जटिलक के महाराज मुद्राराक्षस वहां स्थानीय महाराजाधिराज तुरंप पिंगलकेशिन् सहित उतरे । फिर क्रीडांगन के मुक्ताकाशी मंच पर खडे हो कर दोनो देशों के ध्वज लहराते हुए लाखों दर्शकों के सामने सस्वर गाते हुए दोनो राष्ट्रप्रमुख बडा ही मनोहारी नृत्य करने लगे ।

‘अवसर देख मंच के नेपथ्य से एक पोशाक चुरा कर मैंने एक वाद्ययंत्र हाथ में लिया और सुमधुर देशी संगीत की तान छेड दी । मेरे संगीत से अभिभूत दोनो मित्रों का नृत्य सारी रात चलता रहा । अगले दिन सारे विशव में चर्चित हो यह समारोह विश्व राजनय का नया प्रतीक बना, और मुझे दोनो राजाओं ने एक एक बोरा सुवर्ण देकर सम्मानित ही नहीं किया, मेरी कथा सुन कर रीझे मुद्राराक्षस महाराज मुझे अपने साथ अपने निजी विमान में बिठा कर स्वदेश ले आये । सारी यात्रा के दौरान मैंने संगीत से उनके थके शरीर को भरपूर विश्रांति दी जिसके उपलक्ष्य में स्वदेश लौटने पर महाराज ने मुझे नटवर शिरोमणि की मानद उपाधि से अलंकृत किया । वह ग्रहण कर राजनिवास से मैं यहाँ चला आया । अब कहो कि कथा सत्य नहीं ।’

‘अजी क्या बात करते हैं मित्रवर !’ शशक बोला ।

जटिलक ने कहा ‘मैं कहता न था कि मुद्राराक्षस सरीखा गुणग्राही नृपति कभी पैदा नहीं हुआ ।’

हिमुली मुस्कुराई और बोली, महाराज, नृत्य संगीत की दुनिया से लंबे संसर्ग के कारण मैं आप जैसे एक उत्तम कलाकार की अपरिमित रचनात्मकता की शक्ति से परिचित हूँ । पूर्वकाल में पाणिनि ने शिव के डमरू में सारी संस्कृत व्याकरण सुनी और माता यशोदा ने भी नटवर नागर कृष्ण के मुखविवर में संपूर्ण सृष्टि के दर्शन कर लिये थे । इसलिये आप अमृका के तेजस्वी यवन नृपति तुरंप और भरतखंड के संगीतप्रेमी कर के ख्यात आर्यश्रेष्ठ मुद्राराक्षस महाराज को अपनी तान पर नचा दें यह नितांत संभव है । रही आपके नारियल के खोल में समाने या राक्षसी के अटकने की बात, सो पुराणों में स्पष्ट विवरण मिलता है कि विष्णु बालरूप में प्रलय पयोधि पर किस भाँति हँसते हुए तैरते रहे । बाद को उनकी नाभि से उद्भूत कमल से ब्रह्मा जी बाहर तो निकले, किंतु वे भी सृष्टिकर्ता होने के बावजूद मृणालदंड में अटके रह गये । तभी कहा गया है कि प्रभुकृपा बलीयसी ।’

इसके बाद हिमुली उलूकलमेखला ने धूर्तों से कहा, ‘तुम तीनों यदि इसी समय दीन भाव से हाथ जोड कर शिर भूमि से स्पर्श कराते हुए मुझे प्रणाम करो तो मैं तुम सबको बिना अपनी कहानी सुनाये सुस्वादु भोजन करा सकती हूँ ।’

धूर्तों ने व्यंगभरी स्मित से कहा, अरी धूर्तिनी, हम खाये खेले धूर्त हैं । हमने भी दुनिया देखी है और महिला सशक्तीकरण पर तुम्हारी बहनों के पक्ष में बोले हैं । अब बिना तुमको सुने, दीन वचन बोल कर हम एक महिला से मिला नि:शुल्क भोजन भीख की भाँति किस प्रकार ग्रहण कर सकते हैं ? नहीँ, तुमको कथा कहनी ही होगी ।

‘जैसी तुम लोगों की इच्छा’, कहती हुई हिमुली ने अब अपनी कहानी सुनानी प्रारंभ की :

‘मेरे गर्दभिल्ल नामक पिता सिद्धहस्त धोबी थे । मेरे जन्म के बाद राज ज्योतिषी के द्वारा महाराज को सूचित किया गया था कि राज्य के एक धोबी के घर जनमी बेटी यानी मुझमें पद्मिनी नारी के समस्त लक्षण हैं । यह सुन कर महाराज ने उनको राजकीय धोबी का पद दिया और मेरा लालन पालन विशेष रुचि के साथ किया जाने लगा । महाराज मुझे देखते रहें इस हेतु मैं नित्य राजमहल जाकर पिता के साथ उनको प्रणाम करती । मुझे अवशता की भावना से यह करना कभी अप्रीतिकर लगता तब भी जाना तो पडता ही । साथ जाकर लाई जुगान लेकर मैं प्रतिदिन अनुचरों तथा सखियों सहित यमुना नदी के तट पर जाती और वस्त्र सूखने पर उनको छकडे में भर कर घर लाती । एक दिन मैं सखियों के साथ खेलने लगी और इसी बीच एक भारी आँधी राजकीय वस्त्र उडा कर ले गई । राजकोप के भय से मेरी सहेलियाँ और हमारे सभी अनुचरादि भाग गये । छकडा भी नष्ट हो गया । कुछ कुत्ते जो न घर के थे न घाट के, छकडे की रस्सी और चमडे के उपकरण खा कर वन को चले गये थे ।

‘यह सब देख कर मुझे लगा भाग निकलने का यही उचित समय है । मैंने कुलदेवी से हाथ जोड कर प्रार्थना की, कि मुझे पेड या लता या झाडी कुछ भी बना दो पद्मिनी के लक्षणवाली गँधाते मुखवाले राजा की शैयाशायिनी बनने को पाली जा रही युवती नहीं । प्रार्थना स्वीकृत हुई और मैं एक लता बन कर पेड से चिपक गई । आँधी थमने पर पिता हमको खोजने आये तो देखा कि कुछ भी शेष नहीं है सिवा छकडे के कुछ काष्ठ के टुकडों के । उनका दाह संस्कार कर उन्होने राख सर पर मली और नदी में कूद कर मर गये । जब पद्मिनी कन्या ही नहीं रही तो राजभवन में उनका काम भी समाप्त हुआ यह वे जानते थे । तब मैं अपने पूर्व रूप में लौटी और मैने तभी राजा मुद्राराक्षस की तरफ से डोंडी पिटती सुनी कि महिला सशक्तीकरण नीतियों की तहत राजमहल को एक सुलक्षणी महिला धोबी की अविलंब आवश्यकता है । यदि गर्दभिल्ल धोबी की दुहिता तथा उसके अनुचर जीवित हों और सुनते हों, तो अज्ञातवास की बजाय अपने अपराध भुला कर काम पर लौट आयें । उनको कोई कुछ न कहेगा । अब मैं अपने लुप्त अनुचर खोजती फिरती हूँ जो मिलते ही नहीं ।

‘आप कहिये क्या मेरी यह कथा सच्ची हो सकती है ?’

क्यों नहीं, धूर्त बोले । जब ब्रह्मा और सरस्वती की नहीं पटी, और मैत्रेयी ने जितक्रोध महापंडित याज्ञवल्क्य तक को शास्त्रार्थ में हरा कर क्रोध से कहने को बाध्य कर दिया कि री मूर्खे मैं तेरी मुंडी काट दूंगा, तो तुम और गर्दभिल्ल तथा राजा भी एक दूसरे को शंका की दृष्टि से देखो यह असंभव नहीं । रही बात लता या पत्थर आदि बनने और पुन: मनुष्य बन जाने की, सो अहिल्या ने यह किया है । पुराण यह भी कहते हैं गांधार का एक राजा भी किसी वन में कुरुबक का वृक्ष बन गया था । राजा किमश्व ने भी इंद्र को पराजित किया और वह अजगर बना और फिर युधिष्ठिर ने उसकी शंका का समाधान कर दिया तो पुन: राजा बन गया । राजनीति तथा समाज में तो ई प्रमाण है कि यह सब चलता रहता है । जहाँ तक वनवासी कुत्तों की बात है, धोबियों के कुत्ते न घर के न घाट के यह तो अति प्राचीन जनश्रुति है’, उनके कोई चिप तो लगी नहीं होती कि दावा किया जाये कि यह गर्दभिल्ल की पुत्री का छकडा खानेवाले जीव हैं ।’

मुस्कुरा कर हिमुली बोली अरे मूर्खो, मैं तुमको असत्य से पराजित कर दूं, तो स्त्री से पराजित धूर्तों को इस लुटियन नगरी में कोई राजनेता या राज्यामात्य कौडी को भी न पूछेगा । तुम लोग अभी भी मुझे प्रणाम करो और मेरी धूर्तता को श्रेष्ठतर स्वीकार करो ।’

किसकी हिम्मत है हमको पराजित करे ? शशक ने कहा ।

‘वह भी अबला महिला ?’ जटिलक बोला .

दुर्जय को खाँसी आ गई ।

हिमुली हँसी, ‘मेरे अनुसार मेरे जो चाकर भाग गये थे वे राजा के ही बहुमूल्य परिधान ले उडे थे । राजाज्ञा से ही आज भी मैं उनको ढूढती हूँ । मेरा कथन है कि तुम्ही तीनों मेरे नौकर हो और तुमने राजा मुद्राराक्षस के चुराये हुए विशिष्ट रंगों वाले कीमती राजकीय परिधान पहन रखे हैं । महिला सशक्तीकरण के पक्षधर महाराज मुद्राराक्षस के बनवाये न्यायविधान की तहत कोई महिला यदि साक्ष्य सहित पुरुष उत्पीडन का आरोप लगाये तो अब तुम पुरुष उस पर हा हा कर पहले की भाँति आपत्ति भी नहीं उठा सकोगे ।

‘यदि मेरी कहानी सच है, तो अभी इसी समय अपने सभी वस्त्रों को उतार कर मुझको दे दो और निर्वस्त्र होकर मेरे साथ राजभवन चलो । नहीं तो भोजन की व्यवस्था करो । काके दा , पापे दा, पहलवान दा आदि अनेक सुप्रसिद्ध भोजस्थलियाँ बस सडक पार हैं ।’

दोनो प्रकार से हिमुली के प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हो कर परम लज्जित धूर्तों ने उसे हाथ जोड दिये । दीन भाव से वे बोले, हे हिमुली, इस संसार में तुझसे बढ कर बुद्धिमान् और रचनात्मक मेधावाला धूर्त नहीं । हम सब बहुत क्षुधित हैं अब तू ही हमको खाना खिला ।

इस प्रकार उलूकलमेखला झनकारती प्रफुल्लित चेहरेवाली हिमुली यक्षिणी ने सब धूर्तों को सप्रेम भरपेट भोजन खिला कर लुटियन नगरी के धूर्तों के बीच बहुत यश प्राप्त किया ।

लेखिका संपर्क: mrinal.pande@gmail.com

कथा का पहला अंश पढने के लिए यहाँ क्लिक करें: मृणाल पांडे की अपूर्ण वृहतकथा का पूर्ण अंश

 

 

 

 
      

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  21. Содержание статьи

    Проверка информации о компании «Эсперио»
    Не дайте мошенникам присвоить свои деньги!
    Адрес и стаж как признаки мошенничества Esperio
    Чарджбэк для возврата средств на карту
    Отзывы о «Эсперио»
    Схема развода «Эсперио»
    Заключение
    На первый взгляд у компании приличный мультиязычный сайт, а также достаточное количество юридической и прочей информации. Однако стоит начать всерьёз проверять легенду «Эсперио» — как она начинает рассыпаться на глазах.

    «Вся Правда» приглашает разобрать компанию по косточкам, заодно потренировавшись выводить подобных лжеброкеров на чистую воду.

    Проверка информации о компании «Эсперио»
    Кладезем базовых юридических данных являются документы и футер сайта, заполненный очень мелким, слепым шрифтом. Поэтому удобнее обращаться к разделу «Правовая информация», который сослали на третий уровень интернет-ресурса, в категорию «О компании».

    Первое, что бросается в глаза в этой самой правовой информации, это отсутствие обоих ключевых для каждого брокера документов:

    скан-копии свидетельства о регистрации,
    бланка лицензии на брокерскую деятельность.
    Это настораживающий фактор, который сразу понижает степень доверия к Esperio. А ключевые сведения будем выяснять самостоятельно, перепроверяя отрывочную информацию из футера официального сайта и из шапки клиентского соглашения.

    Как чёрный брокер Esperio маскируется под нормального

    Итак, заявлено, что сайтом управляет компания OFG Cap. Ltd с регистрацией на Сент-Винсент и Гренадинах. Это островное офшорное государство давно является прибежищем сомнительных компаний, которые покупают местную регистрацию по вполне доступной цене. Однако для этого нужно предпринять хотя бы минимальный набор действий и подать скромный пакет документов.

    Не дайте мошенникам присвоить свои деньги!
    Узнайте, как обезопасить свои финансы
    Проверить, было ли это сделано на самом деле, легко. Достаточно на сервисе info-clipper или подобном агрегаторе юридических лиц разных стран мира выбрать интересующее государство и ввести название компании. Если результат не найден, значит, такого юрлица в стране не зарегистрировано. Показываем на скриншоте, что брокер лжёт о своей якобы материнской компании (хотя формулировка про управление сайтом не тянет даже на подобный статус). Компания Esperio на островах также не зарегистрирована.

  22. Как чёрный брокер Esperio маскируется под нормального

    Далее, у брокера обязана быть лицензия на данный вид деятельности. Её выдают финансовые государственные регуляторы: подробнее об этой системе полезно прочитать в соответствующей статье нашего блога. В островном офшоре есть собственный финансовый госрегулятор под названием Financial Services Authority. Самый надёжный и при этом простой способ проверки наличия лицензии следующий: зайти на официальный сайт регулятора и ввести название компании в поиск. Результат отрицательный: ни OFG Cap. Ltd, ни Esperio в FSA не лицензировались. Так что компания не имеет разрешения на финансовую деятельность даже в заявленной стране регистрации, которая, впрочем, тоже оказалась фейковой.

    Впрочем, даже в случае легального оформления юрлица и лицензирования по месту регистрации этого недостаточно для работы в правовом поле Российской Федерации. Оказывать брокерские услуги в стране можно исключительно по лицензии Центробанка РФ. Российский регулятор, как и все его иностранные коллеги, призван способствовать прозрачности рынка и ведёт открытые реестры держателей своих допусков и чёрные списки. Поиск по реестрам на сайте ЦБ РФ показывает, что брокер Esperio ему знаком. Он загремел в чёрный список компаний с признаками нелегального профучастника рынка ценных бумаг. Этот корректный термин обозначает лохоброкера: всё-таки не полагается почтенному государственному регулятору такую терминологию использовать.

    Обратите внимание на сайты, перечисленные на скриншоте из чёрного списка Центробанка РФ. Видно, что мошенники часто запускают зеркала своего сайта. Этому может быть только одна причина: их блокировка за мошенничество для российских пользователей, которые являются основной целевой аудиторией лжеброкеров.

    На момент написания обзора провайдеры РФ пока не перекрыли доступ к esperio.org. Однако, судя по активности лохоброкера, и эта мера не за горами.

    Как чёрный брокер Esperio маскируется под нормального

    Адрес и стаж как признаки мошенничества Esperio
    В ходе проверки информации о компании «Вся Правда» также рекомендует пробивать заявленный на её интернет-ресурсе адрес. Хотя бы через поисковые системы и, особенно, через Гугл-карты.

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