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विद्या बालन के नाम एक ‘मामूली’ दर्शक का ग़ैर मामूली ख़त

डियर विद्या,
मैं हिंदी सिनेमा का एक बेहद मामूली दर्जे का दर्शक हूँ. बहुत दिनों से ये खत में मन में अटका हुआ था. कभी फुरसत नसीब नही होती थी तो कभी मैं खुद में गुमशुदा था. आपसे बात करने के लिए दिल को थोड़ी देर के लिए बंदिशों से रिहाई की दरकार थी इसलिए जैसे ही मैं ऐसा कर पाया वैसे ही मैं ये खत लिखने बैठ गया हूँ.
ये तो जगजाहिर है सिनेमाई किरदार और असल जिंदगी दो अलग अलग पहलू है इसलिए इस हकीकत को क्यों बार बार याद करना , मगर जो आपके मुरीद है ( जिनमे मैं भी शामिल हूँ) उनके लिए सिनेमा ही एक मात्र जरिया है जिसके माध्यम से तुम्हें जाना जा सकता है. मैं यहाँ थोड़ा सा बदमुआश हो जाता हूँ और अदाकारी की इमेज से आपको थोड़ी देर के लिए अलग कर देता हूँ.
फिलहाल मेरे जेहन में आप और तुम की कशमकश चल रही है मुझे तुम अधिक अधिकारपूर्ण लगता है मगर इसका ये अर्थ बिलकुल न समझना कि मैं तुम लिखकर आपसे किसी बराबरी के दर्जे से बात कर रहा हूँ मेरे मन में आप के लिए आदर और प्रेम दोनों है,मगर फिर भी इस खत में मैं आपको तुम ही कहूंगा और ये मेरी आदत है मैं संबोधनों में प्राय: थोड़ी छूट ले लेता हूँ.
तुम्हारी एक्टिंग पर तबसरा करने वाले अनेक आलिम लोग है इसलिए उस पर मैं कोई नई बात नही कह सकूंगा. आज मैं तुम्हारे वजूद के बरक्स कुछ बेहद मामूली सी बातें करना चाहता हूँ. तुम्हें देखते हुए मेरे जेहन में जो लफ्ज़ मुरव्वत होता है वो है तहजीब. माशाल्लाह ! आप जब बोलती है तो ऐसा लगता है जैसे किसी शिफाखाने में हकीम की खातून दवा की शीशीयों पर उनके नाम की पर्चियां लगा रही हो.
तुम्हारी हंसी कबूतरों के उन दो जोड़ो के जैसी है तो लड़ते लड़ते उड़ जाते है. हम उन्हें देख सकते है मगर वो दोबारा कब हमारे रोशनदान में आएँगे इसकी कोई खबर हमारे पास नही होती है. हम केवल उनका इंतजार कर सकते है. तुम्हारी आँखों में एक हौसला छिपा है ये हर उस शख्स के लिए मुफीद है जो गहराई से डरता है मगर एक बार अपने डर पर काबू पाने के लिए ऊंचाई से छलांग भी लगाना चाहता है. बेशक तुम्हारी आँखों में देखते हुए ये छलांग लगाई जा सकती है.
तुमको उदास देखकर धरती पर बिछी हुई कर्क और मीन रेखा अपने घर बदलना चाहती है वो बिरहन की तरह निकलने को बेताब हो जाती है इसके लिए हवाओं की मुखबरी काम आती है जिनके जरिए उन्हें पता चलता है कि तुम्हारी उदासी बेसबब नही है. कायनात के छोटे छोटे पुरजो को सबसे ज्यादा डर तुम्हारी बेसबब उदासी से लगता है.
 
मैं जब भी तुम्हे देखता हूँ तो मेरा किरदार रूहानी और दुनियावी वजूद के हिस्सों में बंट जाता है. तुम्हारे बालों में आयतों का जिक्र छिपा है तो तुम्हारे कानों के पीछे का अन्धेरा रौशनी से घबराए लोगो के लिए एक मुक्कमल पनाहगाह है. मैं बहुत ज़ज्बाती होकर कभी नही सोचता मगर फिर भी तुम्हारे वजूद में सबसे बड़ी खूबी यह है कि तुम्हारे दिल में सही और गलत के मुकदमे नही चलते है तुम जिसके साथ हो फिर ये परवाह नही करती हो वो क्या है. तुम्हारी यही बेफिक्री तुम्हारे किरदार को वो उंचाई देती है जिसे देख कर गिरते हुए लोग संभल जाते है.
 
कम से कम तुम्हे देखते हुए और तुम्हारे रहते हुए कोई आदमी बर्बाद नही हो सकता है. तुम्हारा होना इस कदर कीमती है ये शायद  तुम्हें भी नही पता है मुझे भी सिर्फ इतना पता है कि तुम कयासों और ख्यालों से परे हो तुम्हारी पोशीदा मौजूदगी खुली आँखों पर हाथ रख देती है तो खुद ब खुद गहरी नींद आ जाती है.
 
हम सब ताउम्र अपनी मामूलीपन को छिपाने की कोशिश करते है इसके लिए किस्म-किस्म के जतन करते है मगर कुदरत ने तुम्हें ये इल्म अता किया है तुम अपने मामूलीपन में बेहद गहराई से मौजूद रहती हो बहुत ग्लैमरस दिखने की कोई कामकाजी जरूरत तुम्हें नही है.ये अपने आप में एक बड़ी बात है. तुम्हारा किरदार कुछ ऐसा है कि कोई तुम्हें सुबह देख ले तो दिन भर वो बेवजह मुस्कुरा सकता है और कोई अगर शाम को देख ले तो रात भर जाग सकता है ऐसी शिफत बहुत कम लोगो को अता है वरना लोग तो खुद की शक्ल से ऊब जाते है.
 
कई दफा मैंने तुम्हें हैरत में देखा है उस वक्त तुम्हारी आँखें जिस तरह से खुलती है उसे देखकर लगता है जैसे किसी पहाड़ पर भटकते हुए  हमें उम्मीदन कोई घर दिख जाए . दरअसल तुम्हारा होना उम्मीद का होना भी है तुम्हें देख लगता है कि कायनात में कुछ भी नामुमिकन नही है और मुझे अक्सर ये शेर आधा अधूरा याद आ जाता है ‘ जो भी तसव्वुरात है वो सब मुमकिनात में है’
 
तुम्हें सोचता हूँ तो जेहन महकता है तुम्हें देखता हूँ तो हंसने और रोने के बीच की मुस्कान चेहरे पर पसर जाती है. तुम्हारा होना खुदा के होने की एक मुस्तकिल तामील है. बिना किसी रिश्तें के भी तुम्हें देख बहुत से लोग खुद को इस बात की तसल्ली दे सकते है कि दुनिया में तमाम क्रूरताओं के बावजूद भी बिना मतलब की खूबसूरती बची हुई है.
मेरी दिली तमन्ना है कभी तुम्हारे रूबरू होकर गुलज़ार साब का लिखा गीत सुनूं उस दिन शायद मैं तसव्वुर-ए-जानां का एक मुफीद माने समझ पाऊं. अदीबों के लिए आपकी मौजूदगी उस हसीन सुराही की मौजूदगी है जिसको देखने भर से चश्म नशे से तारी हो जाती है.
आखिर में यही दुआ करूंगा खुदा तुम्हें लम्बी उम्र अता करें और तुम दुनिया की मुश्किलों की खिडकियों पर उम्मीद का चराग रोशन करती रहो जिसके सहारे भटके हुए लोग अपनी मंजिल हो हासिल कर सकें. फिलहाल मैं भी इसी काफिले का एक सवार हूँ .
रब राखां !
तुम्हारा एक मामूली दर्शक
अजित
 
      

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