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उपासना झा की कहानी ‘अब जब भी आओगे’

पिछले कुछ समय में उपासना झा की कविताओं, कहानियों ने हिंदी के पाठकों, लेखकों, आलोचकों सभी को समान रूप से आकर्षित किया है. आज उनकी एक छोटी सी कहानी- मॉडरेटर

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लड़की चुपचाप डूबते सूरज की ओर मुंह किये बैठी थी। उसकी नाक की नोक लाल हो गयी थी। ठंड ज्यादा पड़ने लगती थी शाम होते ही। उसका जूड़ा आधा खुल गया था और उसमें से लटें उसके चेहरे और कंधों पर झूल रही थीं। एक दो लटें हवा में उड़ रही थीं।उसने शाल को कसकर लपेटा हुआ था। थोड़ी-थोड़ी देर में अपना सरकता शाल खींच लेती थी। ये शाल उसीका था, उसे याद आया पिछली दिसम्बर की ठंड में वो एक चटक लाल मफ़लर लपेटे घूम रही थी और उसने कह दिया था कि वह मफ़लर अच्छा लग रहा है तो उसने फट से वह मफ़लर उसे खोलकर दे दिया था।वह अकचका गया था।

-इतना चटक! ये तो लड़कियों वाला रंग है

-रंग भी बंटे हुए हैं क्या! तुम यह रख लो चुपचाप, जब उदास होना तो इसे देखना, मन अच्छा हो जायेगा।  उसकी आँखों में झूठा गुस्सा आया था।

और उसने बिना बहस किये अपना शाल उसके कंधों पर लपेट दिया था। उसकी हथेलियाँ बिलकुल ठंडी हो गयी थी।

 वह अपने दोनों हाथ आगे किये जाने क्या देख रही थी, उसकी छोटी-छोटी हथेलियाँ बिलकुल साफ़ थी। उसे न नेलपेंट लगाना पसन्द था नाही कोई अंगूठी वगैरह। उसके कहने पर लगाती भी तो थोड़ी देर बाद खुरचने लगती थी। फिर उसने कहना छोड़ दिया था। मेहँदी लगाती तो कहती थी सर दर्द शुरू हो जाता था। यह लड़की थोड़ी अलग थी, थोड़ी अजब भी लेकिन उसकी आँखों को यही भा गयी थी। उसका मन हो रहा था कि जाकर उसकी ठंडी हथेलियों को अपने दोनों हाथों में छिपा ले लेकिन उसे चुपचाप खड़े होकर देखना उसे अच्छा लग रहा था बहुत। पहली बार जब उसे देखा था तब इसी बेंच पर बैठी हुई वह कुछ पढ़ रही थी।  उसे लगा कि वह हिल रही है, उसने अपना मुंह शाल से ढक लिया था। उसने उसके कंधे पर अपना हाथ रखा। लड़की काँप रही थी। उसकी दबी हुई सिसकियाँ तेज़ हो गयी। वह बेंच के आगे घूम कर गया और उसकी बगल में बैठ गया। उसके दोनों हाथ अपने हाथों में छिपा लिए। उसका चेहरा अपनी तरफ किया तो देखा उसकी आँखे सूजी हुई थी। नाक और दोनों गाल लाल हो गए थे।

-तुम कबसे रो रही हो

-रो नहीं रही। वह हकमते हुए बोली।

-बेवकूफ़ लड़की, मैं कुछ दिन के लिए जा रहा हूँ। दुनिया से नहीं। रोना बन्द करो।

-मेरी दुनिया से तो जा ही रहे हो।

-पागल हो तुम, 15 दिन की बात है। मैं वापिस आऊंगा। और फ़ोन तो है ही। जब चाहो कर लेना। मैं भी करता रहूंगा।

वह फिर भी रोती ही रही। चुपचाप आँसू बह रहे थे। उसने उसे अपने पास खींच लिया। उसका मन भी लरज़ रहा था लेकिन उसे हिम्मत रखनी थी। उसकी फेलोशिप के तीन साल पूरे हो गए थे। और ये लड़की तो उसे पिछली दीवाली पर मिली थी। हॉस्टल करीब करीब खाली हो गया था। वो गया नहीं था घर। उसे कुछ पेपर्स पूरे करने थे। एक दिन दोपहर की नींद से उठने के बाद वो बॉलकनी में खड़ा चाय पी रहा था। उसकी उड़ती सी नज़र यूनिवर्सिटी के पार्क में गयी थी। वहाँ वह लाल स्वेटर वाली लड़की बैठी हुई थी। शायद उसके हाथ में कोई किताब थी। कमरे में बैठकर कुछ लिखते हुए भी उसका मन पता नहीं क्यों उलझा हुआ था। उसने सोचा कि वह जरा घूम आये। घूमता हुआ कैसे वह पार्क में चला गया और कैसे उस बेंच के पास पहुँचा उसे ध्यान नहीं। उसके हाथ में कोई बाँग्ला किताब थी। उसे झटका सा लगा, उसे लगा था कि कोई हिंदी या अंग्रेजी नावेल होगा।

-तुम क्या पढ़ रही हो?

अजनबी आवाज़ सुनकर वह जरा चौंकी लेकिन बिना सर उठाये बोली

-शरत चंद्र की ‘श्रीकांत’ है। अनुवाद पढ़ी थी, लेकिन कुछ कमी लग रही थी। अब बांग्ला सीखी है, अब शायद समग्रता में समझ सकूँ।

वह दिन और आज का दिन। डेढ़ साल हो गए थे। फरवरी का आखिरी सप्ताह। उसे जाना था आज। शाम की बस थी दिल्ली के लिए, वहां से फिर अलवर।

-सुनो, तुम रोना बन्द करो। चलो चाय पी आयें।

-आखिरी बार!

-ऐसे क्यों बोलती हो तुम? मैं आऊंगा न वापिस। जरूर आऊंगा बस 15 दिनों की बात है।

-अब तुम जब भी आओगे तुम्हारा जाना तय होगा।

-हम्म।

दोनों उठकर आये, एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए। बारिश के बाद धुले आसमां जैसे उसके चेहरे पर कोई भाव नही था। दोनों चाय पीते रहे चुपचाप। एक दूसरे से बिना कुछ कहे। साथ में दोनों हॉस्टल आये। उसका सारा सामान पैक्ड था। उसने अपनी किताबों में से कुछ और उसे देने के लिए निकाल रखी थीं। लड़की के चेहरे पर एक छोटी सी मुस्कान आयी। टैक्सी में बैठकर दोनों बाहर ही देखते रहें। बस में बैठकर उसने बाहर देखा, लड़की चुपचाप खड़ी थी। उसने हाथ हिलाया, लड़की जवाब में मुस्करायी। बस चल दी। बस के चलते ही उसे अजीब से बेचैनी ने घेर लिया। उसने बैग से वही मफ़लर निकाला और उसे देखता रहा। उसकी आँखों से आँसू अपने आप बहे जा रहे थे। उसने उस मफ़लर में मुंह छिपाकर आँखे मूंद ली।

 
      

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5 comments

  1. सुन्दर कहानी । भाषा में प्रवाह जबर्दस्त है , बांधकर रखती है ।

  2. of course like your web-site but you have to check the spelling on several of your posts. Several of them are rife with spelling issues and I find it very troublesome to tell the truth nevertheless I will definitely come back again.

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