अद्वितीय गद्यकार ब्रजेश्वर मदान के मरने की खबर आज जानकी पुल पर उनके भतीजे आदित्य मदान के एक कमेन्ट के माध्यम से मिली. उसमें कुछ नहीं लिखा है कि उनका देहांत कब हुआ. बहरहाल, यह सच है कि उनका देहांत हो गया क्योंकि वही उनकी देखभाल कर रहा था. मुझे याद आया कि उनकी अंतिम प्रकाशित किताब का नाम था ‘अलमारी में रख दिया है घर’, जो कविता संग्रह था. उसी संग्रह की कुछ कविताएँ उनको श्रद्धांजलिस्वरुप- मॉडरेटर
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घर का रास्ता
रात
जब कभी
नींद और सपना
टूटता है एक साथ
लगता है
इंटरवल हुआ है फिल्म का
जब फिल्म क्रिटिक का ओढ़ना-बिछौना
सोना-जागना
खाना-पीना, हो जाए
तो
घर और सिनेमाघर में
फर्क नहीं रहता
खासकर जब कोई
सपना और नींद
एक साथ टूटे
यह भी लग सकता है
फिल्म देखते देखते सो गये
पता ही नहीं चला
फिल्म कब खत्म हो गयी
निकल आए घर से बाहर
घऱ को सिनेमाघर समझकर
जैसे कोई भूल जाए
घर का रास्ता
लौटने को
उस अंजुमन में
बार-बार.
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बुद्ध
उसे दुख नहीं है
हमारे संत होने का
ना उसे यकीन है
ईश्वर और किसी संत पर
लेकिन मुझे लगता है
कि कहीं उसके दुख
मुझे बना न दें मुझे संत
निकल जाऊं
रात को
बुद्ध की तरह
घर छोड़ कर
लेकिन रोक लेती है
जैसे उसकी ही आवाज
कहां जाओगे
कहां मिलेगा
तुम्हे
अपने लिए कोई
बोधिवृक्ष
कोई पेड़
कोई छांव
कोई गांव
सुनकर
रुक जाते हैं पांव
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चुंबन
जीवन में पहली बार
लिए चुंबन का स्वाद
अब भी याद है
जब जिह्वा ने
स्पर्श किया था
तुम्हारे दांतों का
ठंडापन
बीयर के गिलास में
आइस क्यूब डालते
मैंने सोचा
कि कैसे
प्रेम की स्मृतियों में
आधा खाली गिलास भी
आधा भरा हुआ लगता है
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किला
किला देखते हुए
सोचती है वो
क्या ये पत्थर
भारी हैं उसके दुखों से
उसका तो दुख
एक किला है
जिसमें
पत्थरों की तरह
एक के ऊपर एक
रखे हैं
सारी दुनिया के दुख
समा गये हैं उसमें
और वो ये भी भूल गयी है, कि
इनमें से कौन सा दुख
उसका अपना है, और
कौन सा किसका
क्योंकि उसका दुख तो
एक किला है-
जिसमें समाये हैं
सारी दुनिया के दुख
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खुशी
उसने खरीदा है नया बैग
देख रही है उसे
नयी नयी मिली खुशी की तरह
खोलती है उसे, और
सबसे पहले
उसमें रख देती है अपनी खुशी
पुराने बैग से निकाल कर
एक एक चीज रखने लगती है उसमें
मेक अप का सामान
कोई खुशबू, कोई खत, कोई कतरन
बरसों से संभाल कर
रखी हुई कोई तस्वीर
सब कुछ रखने के बाद
सोचती है- खुशी कहां गयी ?
भूल जाती है कि
सबसे पहले वही तो रखी थी
बैग के अंदर और
बाहर ढूंढने लगती है उसे ।
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