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राकेश शंकर भारती की कहानी ‘बस एक रात’

 

राकेश शंकर भारती की कहानी. राजेश शंकर ने जेएनयू से जापानी भाषा में उच्च शिक्षा प्राप्त की. आजकल युक्रेन में रहते हैं. उनकी यह कहानी समकालीन जीवन सन्दर्भों के बहुत करीब है. परिवेश जरूर विदेशी है लेकिन इस ग्लोबल समय में संवेदनाएं देशकाल सापेक्ष रह कहाँ गई है. पढ़िए एक छोटी सी मार्मिक कहानी- मॉडरेटर

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नताशा पांच बजे शाम से ही इगर का इंतज़ार कर रही थी। इगर उसकी ज़िन्दगी में एक ख़्वाब की तरह थी। नताशा के दिमाग में बहुत सारी बातें चल रहीं थीं। उसकी आँखों में नई चमक साफ़ झलक रही थी। गुज़रे हुए वक्तों की दास्तानें भी कभी-कभी दिमाग को ठनका देते थे। बहुत ज़बरदस्त बर्फ़बारी हो रही थी। तेज़ हवा की झोंके में बर्फ़ रेलवे स्टेशन के अंदर आकर जमा हो रही थी। ये बर्फ़ीली हवाएँ गुज़रे हुए वक्तों की बहुत सारी बातों को ताज़ा कर देती थीं। वह पश्चिमी यूक्रेन की सारने में गुज़री हुई बचपन की दिनों को अक्सर याद किया करती थी। यूँ तो रोवनो भी एक छोटा सा खुबसूरत शहर है, पश्चिमी यूक्रेन के अहम शहरों में से एक है। इस शहर में वह पंद्रह सालों से ज़्यादा वक़्त गुज़ार चुकी थी। उसकी तनख्वाह  इतनी है कि वह सामान्यतः ख़ुद पर निर्भर रह सकती है। मर्द उसके लिए एक ख़्वाब से बढ़कर कुछ नहीं है। उसके नज़रिये में मर्द जिस्मानी ख़ुशी से ज़्यादा और कुछ भी नहीं। लेकिन उसमें ख़ुशी की उम्मीदें अभी भी बाक़ी थीं। ज़िन्दगी की बीच मुक़ाम पर वह सोचती थी कि कोई तो ऐसा शख्स आएगा जो ज़िन्दगी की आख़िरी घड़ी तक उसके साथ टीक जाए।

                         बर्फ़बारी अब जाकर थोड़ी-सी थम गई थी, लेकिन तापमान -15 से नीचे जा चुका था और सड़क पर चलना बहुत मुश्किल हो रहा था। रेलगाड़ी की आवाज़ दूर से ही सुनाई देने लगी थी। कुछ ही देर में ट्रैन प्लेटफार्म पर आकर रूक गई। अब नताशा इगर को कॉल लगा रही थी। वह प्लेटफार्म पर आकर उस बोगी के पास खड़ी हो गई, जहाँ इगर उतरने वाला था। बोगी से एक अधेड़ उम्र का लम्बा-चौड़ा शख्स बाहर निकला। नताशा उसके नज़दीक जाकर बोली, “क्या आप इगर हैं?” उसने जवाब दिया, “हाँ, मैं ही इगर हूँ। फेसबुक पर मैं ही तुमको लिखा था।“ दोनों के दरम्यान कुछ हफ़्ते से फेसबुक पर पत्राचार हो रहा था। फेसबुक चैटिंग से ही दोनों की दोस्ती मुहब्बत में तब्दील हो चुकी थी। अब जाकर मुहब्बत हकीक़त का अमली-जामा पहनने वाली थी।

            इगर यूक्रेन की राजधानी कीव में रहता है। वह दो बच्चों के बाप है, मगर बच्चों से बहुत कम ही मुलाक़ात हो पाती है। अपनी पहली बीवी से दस साल पहले ही तलाक़ हो चुका था।

                     इगर नताशा की नीली आँखों में आंख मिलाकर देखा और उसकी गुलाबी होंठ को चूम लिया। नताशा के चेहरे पर थोड़ा-सा सिकुड़न आ गया। नताशा शक़ की निगाह से इगर में अपने सुनहरे मुस्तक़बिल का ख़्वाब देखने लगी। वह इगर का लंबा- चौड़ा और हट्टा-कट्टा क़द को कभी-कभी निहारते हुए इगर के हाथ में हाथ डालकर चहल-क़दमी करते हुए आगे की ओर बढ़ गयी।

         रेलवे स्टेशन से थोड़ी दूरी पर नताशा ने कमरा किराये पर ले रखी थी। कुछ ही देर में वे दोनों वहाँ पहुँच गए। दोनों आपस में बात करने लगे। इगर ने पूछा, “क्या तुम सिगरेट पीती हो?” नताशा ने जवाब दी, “नहीं, मैं सिगरेट नहीं पीती हूँ। मगर कभी-कभी दोस्तों के साथ वोदका पी लेती हूँ।“ इगर ने नताशा की अधेड़ जवानी को निहारते हुए वोदका का एक बोतल बैग से निकाल लिया, जो कि वह कीव में ही ख़रीद लिया था। एक बोतल वोदका तो वह ट्रैन में ही घटक गया था। दूसरा बोतल बचा हुआ था। दोनों एक-एक पैग पीने के बाद फ्राइड चिकन खाने लगे। दूसरे पैग का भी दौर चला। दूसरा पैग पीने के बाद वे  दोनों जज़बाती ख्यालात में खो गए। नताशा रुसलान, व्लादिमीर, रोमान, विक्टर, सेर्गेई वगेरह के साथ गुज़रे हुए लम्हें में खो गई। नशा का धीमा सुरूर जज़्बात को और अधिक बल दे रहा था।

       इगर सिगरेट जलाकर बालकोनी में चला गया और धीरे-धीरे सिगरेट पीने लगा। बर्फ़ीली हवा बार-बार तेज़ रफ़्तार से शीशे से टकराती थी और आस-पास की ख़ामोशी में ख़लल डालती थी। कुछ ही देर में इतनी ज़ोरदार बर्फ़बारी शुरू हो गई कि सड़क के किनारे टिमटिमाती हुईं बत्तियाँ बहुत धुंधली दिखाई देने लगी। इगर उन लम्हों को याद करने लगा, जब उसका रिश्ता पहली, फिर दूसरी बीवी से टूट गया था। उसके बाद तो कभी-कभी अपने दोनों बेटों से स्कूल में ही मुलाक़ात हो पाती थी। इगर की ज़िंदगी एक प्रवाहित नदी की तरह थी, जो सैकड़ों उलझनों और हर मुसीबतों चीरते फारते हुए उन्हें पार करते हुए आगे की तरफ़ निकल जाती थी। यह बर्फ़ीली रात उसको माज़ी की उस पुरानी रात की यादों को और ज्यादा ताज़ा कर देती थी, जब उसकी पहली बीवी हमेशा के लिये उससे से जुदा हो गई थी, वह भी एक साल भर के बेटा के साथ। उधर नताशा लम्हे की मायूसी और ग़मगीन माहौल में नई उम्मीद की आग़ोश में बैठी थी। अपनी अधूरी सफ़र को मुकम्मिल करने की ख़्वाब को अपने दिल में संजोए हुई थी। क़िस्म-क़िस्म के सपने देख रही थी। उसकी ज़िंदगी में एक बार फिर किसी मर्द की दस्तक ने ढेर सारे पुराने उम्मीदों और ख्वाहिशों को दोबारा नमूदार कर दिया, जो कुछ अरसे से धुंधले पड़ गए थे।

                इगर दूसरा सिगरेट निकालकर पीने लगा और उसके ज़ेहन में दूसरी बीवी की धुंधली यादें ताज़ा होने लगीं। फिर वह बात याद आने लगी, कैसे सोफ़िया झुंझलाकर उसे डांटती थी, जब वह देर रात को नशीली क़दमों पर थिरकता हुआ घर लौटता था। कभी-कभी अपने आप पर झल्लाता था और सोचता था कि वक़्त कितनी तेज़ी गुज़र जाता है, इसका पता भी नहीं चलता है। आठ बरस गुज़र जाने के बावजूद भी वह दूसरी बीवी सोफ़िया की रसीले होंठ, उसकी सुनहरे बालों को नहीं भूल पाया। दूसरा सिगरेट भी ख़त्म हो चुका था, जेब से लाइटर निकालकर तीसरा सिगरेट जलाकर पीने लगा। और फिर अलोना के साथ गुज़रा हुआ वक़्त न जाने कहाँ से उसके दिमाग में आकर टकरा गया। बर्फ़ का एक रुईनुमा और मुलायम ढेर छज्जे से गिर कर खिड़की से टकरा गया। वह फटाक से माज़ी की गहराई से बाहर निकल गया। मानो पूरी रात ख़्वाब देख रहा हो और किसी ने ज़ोरदार आवाज़ लगाई और वह उठ गया हो।

   नताशा बालकनी में आकर बोली, “मैं तुम्हारे लिये सलाद बनाकर लाई हूँ, चलो अब खाना खा लेते हैं और फिर चित्रों की नक्काशी करेंगे। इगर इस पर नाताशा को गोद में खींचकर उठा लिया और उसके लब को चूम लिया। नताशा बोली कि चुंबन बाद में हो जाएगा, तुम बहुत भूखे हो, चलो, मिलकर खाना खा लेते हैं। इगर ने तीसरा पैग बराबर दोनों ग्लासों में डाल दिया। वह एक ही बार में सारा पैग गटक गया और सलाद खाने लगा। जैसे ही नाताशा ने अपना पैग ख़त्म किया, वैसे ही उसके सर पर मीठा सुरूर सवार हो गया और इगर के गठीले सीने को निहारने लगी। अचानक पता नहीं, माज़ी की किस गहराई में समा गई। बर्फ़ीली हवा की तरह माज़ी के झोंके बार-बार उसके सर से टकरा जाते थे। हर मर्द में वह अपनी पहली मुहब्बत रुसलान की नुमाइश और अवलोकन करने लगती थी। सोलह बरस की बाली उम्र में हुआ इश्क़ को खैर कोई कैसे भूल पाए, उस मज़े को शायद ही कोई भूल पाए। उस वक़्त वह मुलायम कली थी। मानो तो वह निहायत ही कोमल फूल की कली थी, जिसे मौसमे-बहार में रुसलान ने खूब चूसा, जैसे कि मधुमक्खी बसंत की पहली फूल को चूसती हो। अब तो वह कली रही नहीं, बस हरी-भरी पत्तियाँ कुछ सालों के लिये बच गई थी। जैसे ही पतझड़ का मौसम आएगा तो ये हरी-भरी पत्तियाँ भी झड़ जाएँगी। एक रोज़ रुसलान और नताशा के दरमयान किसी बात पर तू-तू-मैं-मैं हो गई। शायद रुसलान की नीचे दूकान में काम करने वाली एक लड़की से नज़दीकी बढ़ गई थी और उससे अक्सर बात करने लगा था। झगड़ा का यह भी एक वजह था। बात इतनी आगे बढ़ी कि आधी रात में रुसलान ने नताशा के पेट में इतनी ज़ोर से लात मारा कि पांच महीने की गर्वती पत्नी के पेट में ही बच्चा मर गया। बस उसके बाद दोनों एक दूसरे से हमेशा के लिये जुदा हो गए।

        इगर के सीने को देखते-देखते नताशा के ज़ेहन में चिडचिडापन सा पैदा हो गया और ज़ोर से चिल्लाई, “रुसलान, कमबख्त।“ इस पर इगर बोला, “मैं इगर हूँ, रुसलान नहीं।“ नताशा फट से होश में आ गई। वह कहीं किसी उलझन में खो गई थी।

            रात के नौ बज चुके थे। बर्फ़बारी और भी तेज़ हो चुकी थी, मगर हवा ख़ामोशी इख़्तियार कर चुकी थी। सामने सड़क से इक्के-दुक्के गाड़ियाँ गुज़र रही थीं। इगर अपना पांचवा पैग भी ख़त्म कर चुका था। नताशा इगर के पास आकर लेट गई। इगर उसको अपने बाँहों में जकड़ लिया और उसके पूरे जिस्म को सहलाने लगा। नताशा पैंतीस को पार कर चुकी थी, लेकिन अभी-भी वह खुबसूरत दिखती थी। उसके बड़े-बड़े स्तनें, नीली ऑंखें, भूरे बाल, स्लिम बॉडी अभी-भी उसकी जवानी में चार चाँद लगा रहे थे। इगर उसके स्तन पर आहिस्ता-आहिस्ता हाथ फैरने लगा, मानो मुलायम रूई को सहला रहा हो। इगर बोला, “तुम बहुत खुबसूरत हो। तुम्हारा हुस्न मुझे खूब भा रहा है। मुझे बिलकुल पता नहीं चला कि कब से मैं तुम्हें बेइन्तहा मुहब्बत करने लगा हूँ।“ नताशा ने कुछ देर के लिये अपने धड़कनों को रोक लिया और थोड़ा-सा सहमने लगी। थोड़ी-सी शर्मिंदा होने की बहाना करने लगी। थोड़ा-सा माज़ी (अतीत) की गहराई में झाँकने लगी, मानो दिन के उजाले के ख़्वाब में ग़र्क हो गई हो। वह बड़ी मुश्किल से इगर की बातों पर यकीन कर पा रही थी, लेकिन करे भी क्या। यह तो क़ुदरत की देन है, जब मर्द और औरत में नज़दीकी बढ़ती है तो धड़कन तो स्वाभाविक रूप से तेज़ हो ही जाती है। एक दूसरे के साथ गुस्ताखी होने लगती है और फिर धड़ाम से जिस्मानी प्यास बुझ जाती है। उसके बाद झिझक बिलकुल नहीं रहती है। इगर का हाथ नताशा के स्तन से नीचे से गुज़र रहा था। अब वह पूरे जिस्म को अपने बड़े-बड़े रुखड़े हाथों से सहला रहा था। अब तो नताशा भी मुकम्मिल साथ दे रही थी। मुहब्बत अपना मुकाम को हासिल कर रही थी, अपने ऊरुज को छू रही थी। अब इगर के दोनों हाथों उसकी रेशमी जुल्फों को सहला रहे थे। दोनों के होंठों ने आपस में चहल-कदमी करना शुरू कर दिया था। इगर की जुनून और उमंग से साफ़ झलक रहा था कि मानो वह कई महीनों से प्यासा हो। आज वह जी भर कर पानी पी लेना चाहता था। बर्फ़ीली सर्दी उन्हें और ज्यादा गर्मी ही प्रदान कर रही थी। धड़कनें अब और भी तेज़ हो गई थी। इगर अब पूरी तरह से नताशा की गहराई में समा चुका था, जहाँ आनंद और उमंग का कोई ठिकाना न हो। इगर का तेज़ धड़कन नताशा के धड़कनों को और ज्यादा बढ़ा रहा था। अब वह इगर के क़दम से क़दम मिलाकर चल रही थी। जोश और उमंग अपने ऊरुज पर थे। रूह को काफ़ी आनंद मिल रहा था। वे दोनों अभी माज़ी की खटास को बिलकुल भूल चुके थे। एक दूसरे का लुत्फ़ उठा रहे थे। नताशा अचानक इगर के छाती के बालों को, जो थोड़े थोड़े सफ़ेद हो चुके थे, मसलने लगी। चहल-कदमी और ज़्यादा तेज़ हो गई, गतिविधियाँ बढ़ने लगी। ज़ोर का धक्का लगा और चहल-कदमी ने ख़ामोशी इख़्तियार कर ली।

               दोनों देर रात तक एक दूसरे के साथ खेल खेलते रहे। इगर नताशा की खूबसूरती को अपने अहसास और जज़बाती जुमलों में बयान करता रहा। उसके मुलायम रूईदार गालों को तो, कभी ज़ुल्फों को तो, कभी स्तनों को सहलाता रहा। कभी उसकी रसीले लब को चूम लेता। देर रात तक क़िस्म- क़िस्म के पोजों का इज़हार हो चुका था। नताशा बहुत थक चुकी थी। इगर की बातों को सुनते- सुनते बीच-बीच में झपकी ले लेती थी। कभी-कभी आधी- अधूरी बातों को ही सुन पाती थी।

                          पता नहीं कब वह इगर की बातों को सुनते-सुनते गहरी नींद में खो चुकी थी। बाहर मौसम साफ़ हो गया था। बर्फ़बारी पूरी तरह से थम चुकी थी। सड़कों के इर्द-गिर्द बर्फ का भारी ढेर जमा हो गया था। सूरज के किरणें खिड़की से होकर नताशा के चेहरे पर पड़ रहे थे। नताशा धीमी गति से खर्राटा ले रही थी। सूरज की रौशनी थोड़ा-सा तिमाज़त इख़्तियार कर ली थी और किरणें बार–बार  नताशा के चेहरे से टकरा रहे थे। सड़क पर गाड़ियाँ तेज़ रफ़्तार से दौड़ने लगीं थीं। हॉर्न की आवाज़ ज़ोर-ज़ोर से सुनाई दे रही थी।

                  अब जाकर अचानक से नताशा की नींद टूट गई। आँखों को मलते हुए उसकी नजर बगल की तरफ़ पड़ी। वहाँ पर इगर नहीं था। वह सोची कि इगर टॉयलेट में होगा या तो फिर बालकनी में सिगरेट पी रहा होगा। कुछ देर तक वह बिस्तर पर लेटी रही और ऊपर की तरफ़ देखती रही। कमरे में सन्नाटा छाया हुआ था। कुछ देर तक इगर की आहट नहीं सुनाई देने पर, वह बाथरूम की तरफ़ गई, पर इगर वहाँ नहीं था। फिर बालकोनी की तरफ़ गई, मगर वह वहाँ पर भी नहीं था। अचानक उसकी नज़र दरवाज़े पर पड़ी। दरवाज़ा खुला हुआ था। दरवाज़ा को बाहर से सिर्फ़ भिरका कर छोड़ दिया गया था। नताशा इगर के मोबाइल पर कॉल करने की कोशिश कर रही थी, मगर उसका मोबायल स्विच ऑफ आ रहा था।

 नताशा का चेहरा सुर्ख (लाल) हो गया और मुँह से सिर्फ़ एक आवाज़ निकली, “बस एक ही रात!”

 

 
      

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23 comments

  1. behad umda lekh

  2. सीमान्त भारती

    कहानी कि चरित्र लोगों पाठकों बांधे काम कर रही हैं।।

  3. Nice written story…go ahead in your life…best wishes…

  4. Nice story written…I love it..best wishes from my side….

  5. It is nice​ story….best luck for future story….

  6. It good story best wishes…

  7. Nice great work…best wishes….

  8. Nice

  9. Nice story with full of suspense, emotions and romance…All the best

  10. Nice story with full of suspense, emotions and romance..All the best

  11. Nice story with full of romance and emotions…All the best

  12. Nice. All the best for future writings

  13. Satya Nand Bharti

    Nice story, best wishes.

  14. yathat aur spast warnan.
    lajawab

  15. कल म श कर र क ह प. दस हतन अ अ सह . इस ह एक क प बत पद आ. एक प और इक त कई ग ख कर . नय द लर यह क न ग तरह . पह क “बस एक त” कम लच न . सक पर ई त हत अम पहन . र एक ऐ ई, हर न च पर मर कर . इस ह क र-हत, स, सस अ क ठ . आज समय जब क रस र , इस र र क त और नपन , आप हद पद आ.

  16. कवि महेश दाँगी

    बहुत ही बेहतरीन कहानी
    ।“ नताशा ने कुछ देर के लिये अपने धड़कनों को रोक लिया और थोड़ा-सा सहमने लगी। थोड़ी-सी शर्मिंदा होने की बहाना करने लगी। थोड़ा-सा माज़ी (अतीत) की गहराई में झाँकने लगी, मानो दिन के उजाले के ख़्वाब में ग़र्क हो गई हो। वह बड़ी मुश्किल से इगर की बातों पर यकीन कर पा रही थी, लेकिन करे भी क्या। “👌👌👌👌

  17. बहुत बढ़िया लेखन है। पूरे लेख में निरंतरता है। भविष्य के लिए शुभकामनाएं ।

  18. Sagar seveliyar

    Magical writing

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