संगीत जमा करने की धुन, एक घर/एक स्टूडियो जिसमे भारतीय,अफ़्रीकी से लेकर स्पेनिश वाद्य भरे हुए हो, इस बीच हुई अनगिनत यात्राएं जिनमें संगीत के सबसे अलग और उतने ही सामानांतर शैलियों का मिलन जीवंत हुआ हो, जिसमें जिम्मेदारी हो उन सभी संगीतज्ञों और संगीत को सबसे सुन्दर सुन पाने की, देख पाने की, जी पाने की और अंत में एक टुकड़ा लिखने की.
दिए गये नम्बर उन्हीं आयामों को इंगित करते है.
सभी किरदार संग हैं. आयाम उनका बदलाव और विस्तार देखते है.”
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अमोघ और आत्रेयी हैं जैसे
यमन और कल्याण
हु-ब-हू
लेकिन मिलकर बन जाते है
अमोघात्रेयी
जैसे यमन-कल्याणअमोघात्रेयी एक नया राग है
इसके अमोघ से जुड़ते है हिंदी पट्टी के अधेड़ मर्द
अनामिका के नाखून को तर्जनी से कुरेदते
गलती से कभी बना बारहसिंघा
पटक देते तेराई ‘सा’ पर
किलसते जब जब
‘धा’ पर दोनों को संग पाते
बार बार किलसते
जब बार बार ‘धा’ पर दोनों को संग पाते
नि-रे प-ड़े ले लेते गहरी सांस
आत्रेयी आरोह उठाती
सातों सुरों से सम्पूर्ण
हिंदी पट्टी की लड़कियां गाल पर हाथ ले
दांत से गाल को चिकोटी काटे
देखती आत्रेयी को
हिंदी पट्टी के लड़कियों के सुर ज्यादातर पक्के थे
सा रे ग, म, प, ध नि सा
नि पर आते आत्रेयी से जुड़ जाती वहां बैठी सभी लडकियाँ
गूँज से खिड़की से भीतर घुसी चली आती मधुमक्खियाँ
‘शहद है बहनों का संग गाना’
अमोघ प्रतीक्षा करता आत्रेयी के आरोह के चरम तक पहुँचने की
फिर वहां बिठा उसे स्वयं लेता अवरोह
ध-प से जुड़ जाते मर्द सभी
तलहथियों से बना अपने चेहरे को घूरता एक सांप का फन
उसपर उतार लेते अमोघ को हौले हौले
नि रे ग रे, प रे, नि रे सा, पकड़
होता सभी का मिलन
पीछे की पंक्ति से उठकर
एक हिजड़ा मर्द
बीच में आकर बैठ जाता
कविता – PMS (१)
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“चाहिए क्या तुझे?!”
“गिटार लाकर दे दो! PMS कर रहीं हूँ बस!”
“मैं भी तो कर रहा हूँ!”
“आप जेम्बे ले लो!”
PMS मानो Pre Musical Syndrome
कोई भी कर सकता है
कविता – गिटार की दुनिया (१)
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सुनो! मेरे लिए गिटार की दुनिया में तीन लोग सबसे ज़रूरी हैं
पहला वो जिसने गिटार बनाया
किसी को नहीं मालूम कि उसने क्या देखा था
कोई औरत थी?
कोई पुरुष जो रात को चुपचाप से अपने पत्नी के कपड़े पहनकर आयने में देखता था खुद को?
या कोई परग्रही था?
एलियन?
जिसके मूंह में ज़बान की जगह छ: स्ट्रिंग्स थे?
जब वो बोलता तो आप उसके संग गा सकते थे?
दूसरा वो जिसने गिटार पिक का अविष्कार किया
इस छोटे से लकड़ी, प्लास्टिक के टुकड़े ने
हमें अपने पूर्वजो से एक कदम आगे लाकर खड़ा कर दिया
(हम में से ज्यादातर हमारे पूर्वजों की तरह ही व्यहवहार करते है गिटार हाथ लग जाने पर)
तीसरा वो जिसने पिक को फिर से मना किया
अपने नाखून सँवारे
और अपनी पांचो उँगलियों को
गिटार की दुनिया का सबसे आर्गेनिक पिक बनाया
फिंगर स्टाइल का अविष्कार किया
(बाकी लोग भी हैं)
**गिटार की दुनिया में
पाको-दा-लुचिया भगवान है.
कविता- ध्रुपद (१)
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वाणी ध्रुव का एक अंत है
ध्रुव से जो पद
-ध्रुपद
मैं कवि हूँ
हरिदास मेरा दोस्त है.
कविता- बिहाग (२)
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इसकी मैय्या थाट है
पितृ बिल-आवल
सभी रागों में
प्रेम..
बिहाग है
यहाँ जो भी है, स्वर है
स्वर सब शुद्ध है
यह बजता है
रात्री के दूसरे प्रहर से..
कविता- हैंग आउट (४)
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“ओ, शुभंकर, तिरकिट लग रहा अब?”
“क्या लग रहा, दा! मानो सस्पेंशन पुल पर से डर्ट बाइक गुजरी हो!”
शुभंकर ने आठ साल की उम्र में संगीत के पहले स्वप्न में
सबसे छिपकर चुराया था
फिर बीच से काटा था पखावज
दांया और बाँया बनाया था
“दा! तब्ल से नहीं है तबला, तबला अकेला नहीं है, इंडिया पाकिस्तान फिर से बंटे तो वो हमारा
दायाँ ले जायेंगे.”
“कसूर किसका है?”
“बड़े गुलाम अली खां साहब का. एक बार बस खुल कर कह देते, अब तो भगवान भी कहें तो लोग ना माने”
झपताल. झप. झप से बनी झप्पी.
“दा! यार आप गले मिलो!”
जब हम खाना खाते तो विभोर बांसुरी बजाता
यमन के एक टुकड़े पर किसी चूहे की तरह अपने होंठ गड़ाए बैठा रहता
सुष्मिता देर से खाती
भीतर के कमरे में कथक प्रैक्टिस करती
शुभंकर जल्दबाजी में हाथ धो
खड़ताल लेकर भीतर चला जाता
विभोर, मैं
कसमसाते..
“दा! वो जो चीनी लड़की थी. म्यूजिशियन है. उसे अंग्रेजी उतनी नहीं आती. हमारे बीच बात नहीं हुई है ठीक से अबतक, मैंने आपसे झूठ बोला था, लेकिन हाँ, उसे यमन सुनना है”
“विभोर!”
मैं फिर चुपचाप से अपना मोरसिंगा अपने हाथ में ले लेता
हम दोनों को पता था
खड़ताल और कथक के बीच
हवा की सांस उखड़ने वाली थी.
कविता- इस्पेखो (३)
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“यह एक मरीचिकाओं का शहर है,
यहाँ हम सब एक दूसरे के आयने हैं, ‘इस्पेखो'”
अल्हड़पन और मारकेज़!
मैं किताब ख़त्म कर भागकर सारा के पास पहुँचता
“सुनो! मुझे पता चल गया है कि हमारा रिश्ता क्या है?”
“इस्पेखो?”
“हाँ! इस्पेखो! भूल ही जाता हूँ कि यह किताब तुम्ही ने दी.
मार्केज़ का घर तुम्हारे घर के रास्ते में आता है.”
(प्रेमी का नाम गुदवाना शरीर पर है जैसे
किसी गिटार के फ्रेट पर उसका नंबर मात्र उत्कीर्ण कर देना
सब कहते गिटार स्त्री-वत है
मैं समझता
गिटार बजाना)
ठीक उसी रात जब डिनर के बाद इस्पेखो से सटे
छोटे हाथ वाली कुर्सी के पाँव के पास बैठ
मैं गिटार बजा रहा होता
वो ठीक मेरे पीछे आकर खड़ी हो जाती
मेरी कलाई पर गुदे ‘इस्पेखो’ को छूती
‘सारा’ ढूंढती
एस्पेखो आयाम में
एक छोटे से तालाब में
पानी के ऊपर
एक कमल के पत्ते पर
‘इ’ स्केल में भिनभिनाते…
गोबरीले जमा होने लग जाते
पानी से ही एक मेढकी
लपलपाती अपनी जीभ.
कविता- ब्लूज़ (२)
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अफ़्रीकी अमरीकी दास किसान कपास से खेतों में गाते
अपनी भाषा में गाते गाते कह देते अपनी सारी बात
बाँट लेते दुःख, खुशखबरियां छुपा लेते
गोरे हाकिमों को तब पता भी नहीं चलता जब
बन जाते थे ब्लूज़
जब इन्ही किसानों को जेल में डाला गया
वहां उन्होंने ‘प्रिजन ब्लूज’ बनाये
जिसे गाते गाते कई दास कैदी
फरार हो गए
जिनकी लाश जेल के बाहर बहते छोटी नदी में आजतक
डबल बास के नोट्स को
तलाशती है
आज भी वेरा गाती है
‘डेथ हैव मर्सी’
नीना कहती है
“ब्रेक डाउन, लेट इट आल आउट”
ब्लूज़! गला भर आता है!
बरनी सैंडर्ज़ ब्लूज़ सुनकर रो देता है
हिलेरी क्लिंटन बंद कर देती होगी टेप.
कविता- फ्लामेंको (१)
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स्पेन की ट्रेडिशनल औरतें गुस्से में पैर पटकती हैं
स्पेनिश मर्द अपने गिटार पर रगड़ देता है अपना हाथ
दोनों एक दूसरे को चिढाने को यह दुहराते है और
फ्लामेंको चुपचाप से अपना बेस बना लेता है
‘तक! तक! तारें-तक! तक! तुम! तक!’
‘एन्डालुसियन केडेन्स’
“आर्रिबा…आर्रिबा!
सेनिओरा! नो ते प्रेओकुपेस!
मीरा! मीरा! मीरा!”
देखो! देखो! देखो!
बेवजह,
गुस्सा करना ही हो तो
फ्लामेंको सीख लो!
कविता- सिगरेट और जेज़ (१)
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“जेज़ कौन सुनता है? पागल!”
-अरे! वो जो जैज़ी हो!
आप पहले जैज़ी बने
इस डर से सिगरेट की आखिरी कश को जलाने से मना न करें
कि आपको अपनी मूँछ के जल जाने का खतरा लगा रहता है
एकाध बार मूँछ जल जाने दे
हँसने दे लोगों को खुद पर
जब लोग 1 2 3 4 1 2 3 4 1 करें
अब 1 2 3 साढ़े तीन 1 पर ठहर जाएँ और
आधा कदम भी आगे देने से मना कर दे
सिगरेट की आखिरी कश और जैज़
समीकरणों को तोड़ देते है
‘मेथड ‘टू’ मैडनेस’ का ग्लिच है दोनों
पागल तो फिर हम सब ही हैं.
कविता- जलन! जलन! (२)
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बिन्तांग मनीरा इंडोनेशिया का सबसे गुस्सैल संगीतकार है
भारत आने पर उसने सभी भारतीयों से प्रेम से बात की?!
औरतें बिन्तांग के पास ऐसे जमा होती थी
जैसे डिजरेडू के आस पास थ्रोट चैन्टर्स
औरतें मेरे आस पास भी जमा होती थी
जहाँ भी संगीत बजता औरतें जमा हो जाती
पहले तीन साल मैंने औरतों को जमा करने के लिए संगीत बजाया
एक दिन मैं चला गया
मुझे दूर से औरतों के गाने की आवाज़ आई
मैंने तुरंत हवा में एक गिटार बनाया और उनका कॉर्ड उठाने की कोशिश की
बार! बार! बार!
सामने से बिन्तांग टहलता हुआ आया
और सभी छ: स्ट्रिंग्स पर बार बनी लगी मेरी तर्जनी को हौले से हटाते हुए
मेरी तर्जनी प्यार से मोड़ दी
“दा! फ्री कॉर्ड्स!”
उस दिन मेरी समझ में आया कि इन औरतों और मेरे बीच संवाद का अभाव था
उस दिन के बाद से कुछ दिनों तक संवाद पक्का करने के लिए मैंने बिन्तांग के लिए संगीत बजाया
औरतें चली गयी
मैं और बिन्तांग छत की लोहे की रैली पर
इकताल सुलाते रहे
हौले हौले,
बिन्तांग फुसफुसाया,
‘अग्रेशन इज़ अस, दादा!’
सामने आकाश में सूर्ख लाल दो तारे
जल्दबाजी में…
चांदनी रंग की पैंटी पहनने लगे.
कविता-ठुमरी (२)
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तिलक-कामोद, पीलू, जोगिया, काफी है
तू कब इसको छोडती है
उसमें चली जाती है
इतना सारा मेक अप लगाती है
तू कितना ड्रामा करती है
तुझपे बंदिश कितनी छोटी है
तू ठुमरी है
कि लड़की है?!
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nice post
आपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा,आपकी रचना बहुत अच्छी हैं।