Home / Featured / प्रकृति करगेती की कविता ‘बादलों की बन्दूक’

प्रकृति करगेती की कविता ‘बादलों की बन्दूक’

समकालीन राजनीति और समाज के सोच को लेकर प्रकृति करगेती की एक अच्छी कविता मिली- मौडरेटर
====================================================
 
संध्याकाल को
बादलों की बन्दूक ताने
एक आदमी दिखा
उसे गौर से देखा गया
ऐसा लगता था की क्लाशनिकोव
तानी हो उसने
वो विद्रोह की फ़िराक में था
क्यूंकि वो अक़्ली खड़ा था
पर्वत श्रृंखलाओं को सीध में लेते हुए
वो तनकर खड़ा था
निशाना साध रहा था
निशाने पर हम नहीं थे
 
आजकल हमारा ‘दुश्मन’ भी
ताने है बन्दूक
बल्कि अखबार तो चीखते हैं कि
जिन्हें हम अपना मानते हैं
‘वो’ भी शामिल है
‘वो’ आज़ादी फ़िराक में है
बेचारा पत्थर फेंकते हैं बस
पर हमारे ‘रक्षकों’ का कहना
‘वो’ ही है आड़ में
अपने दिलों में बन्दूक छिपाये खड़ा है
भद्दा मज़ाक है कि
हम धरती पर स्वर्ग उसी जगह हैं
जहाँ गोला बारूद पनपते हैं
और हम ‘दुश्मन’ को स्वर्गवासी बनाने
हमेशा गस्त लगाए खड़े रहते हैं
और अपने अपने ड्रॉइंग रूम में बैठे-बैठे
चिल्लाते कि
‘कश्मीर तो हमारा है’
 
      

About Prabhat Ranjan

Check Also

‘वर्षावास’ की काव्यात्मक समीक्षा

‘वर्षावास‘ अविनाश मिश्र का नवीनतम उपन्यास है । नवीनतम कहते हुए प्रकाशन वर्ष का ही …

2 comments

  1. Pingback: health tests

  2. Pingback: Visit Your URL

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *