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आर्मेनियाई फिल्म ‘वोदका लेमन’ पर श्री का लेख

2003 की आर्मेनियाई फिल्म ‘वोडका लेमन’ पर श्री(पूनम अरोड़ा) का यह लेख उनकी कविताओं की तरह ही बेहद सघन है. पढियेगा- मॉडरेटर

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जहाँ जीवन और उसके विकल्प उदास चेहरों की परिणीति में किसी उल्लास की कामना करते मिलते हैं.

जहाँ यह चाहा जाता है कि गरीबी में किसी एक, केवल एक विकल्प की खोज कर ली जाए जो भयावह अपमान की व्याकुल तत्परता को अपराध और मानुषिक पीड़ा से मुक्ति दिला दे.

जहाँ बर्फ के फूलों में खामोशी के तसव्वुर अपनी चंचलता के साथ मीठे नग़्मे गायें और किसी अंतहीन धुन का पीछा करते रहें.

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लेकिन अफ़सोस !

ऐसा होना किसी व्यंग्य की सबसे तेज़ धार से उत्पन्न हुआ आवाज़ का एक जखीरा है. एक आदमकद कोलाहलपूर्ण जखीरा. जिसके मध्य रोशनी की एक भी किरण बची दिखाई नहीं देती.

‘वोदका लेमन’ हिनर सलीम द्वारा सन् 2003 में निर्देशित की गई आर्मीनियाई फिल्म है.
प्रथम दृष्टि में ही यह फिल्म एक जिज्ञासा को लेकर चलती है और अंत में जब सारी जिज्ञासाओं से परदा हट जाता है तो विकल्पों के अभाव के विरोध में सुख का संगीत बजता सुनाई देता है.

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हैमो और नीना दोनों अकेले हैं और दोनों ही अपने मृत साथियों की कब्रों पर रोज़ जाते हैं. कब्रें बर्फ से ढकी हैं, अर्मेनिया का वह पिछड़ा गाँव बर्फ से ढका है. जीवन बर्फ से ढका है. सब कुछ बर्फ के सफेद फूलों के भयावह सन्नाटे से ढका है. यह सन्नाटा रात को नीला और अधिक तन्हा हो जाता है. नीना और हैमो की मुलाकातें उन्हीं कब्रों से शुरू होती हैं. वे अपने साथियों की तस्वीरों से बर्फ हटाते हैं, उनसे अपनी आप बीती कहते हैं और लौट आते हैं. रोज़ाना के इस सिलसिले में दोनों की मुलाक़ात हैमो द्वारा नीना के बस का भाड़ा देने से शुरू होती है जबकि हैमो स्वयं अभावों से जूझ रहा होता है.

नीना एक लोकल बार में काम करती है जो कि बन्द होने वाला है. यह नीना के लिए एक त्रासदी है. और जिस समय वह यह बात अपनी बेटी से कहती है तो दोनों के आँसू किसी विनीत क्षण के लिए प्रार्थना करते दिखाई देते हैं.   नीना की खूबसूरत बेटी जो कि पियानो से बेहद लगाव रखती है और उसके संगीत को अपनी आजीविका बताती है दरअसल एक वेश्या है. वह केवल एक भोग्या ही नहीं बल्कि अपमानित और त्रस्त भी है. ऐसी स्थितियों में नीना और उसकी बेटी अपना पियानो बेचने को मजबूर हो जाते हैं.

पियानो को बेचने ले जाने से पूर्व नीना की बेटी उसे रोते हुए आखिरी सुर के साथ विदा करती है. वह पियानो बजाती रहती है और आँसू उसके हवाले से पियानो के लिए विदाई गीत गाते रहते हैं. यह दृश्य अनंतिम पीड़ा का परिचायक है. यह देख समझ आता है कि जीवन के चारों तरफ त्रासदियों के जाले किस तरह बुने होते हैं.

एक हिस्से में आकर देखे तो पता चलेगा कि यहाँ सब कुछ बिक रहा है. हैमो अपने घर की सब चीजें (अलमारी, कपड़े, टेलीविजन) बेच रहा है. यहाँ तक कि हैमो का घर अब पूरी तरह से खाली हो चुका है. नीना भी इसी कगार पर खड़ी है. जीवन जैसे अभावों की एक हास्यास्पद नींद है और बर्फ की ख़ामोशी में यह नींद कभी नही खुलने वाली है.

‘वोदका लेमन’ का एक किरदार फिल्म में किसी फ़रिश्ते सरीखीे अपनी उपस्थिति को कई बार दर्ज करता है, वह है बस का ड्राइवर. वह कई बार नीना को उसके अगली बार भाड़ा देने के वादे पर सिमेट्री से गाँव ले जाता है और कई बार गाना गाते हुए बर्फ की सर्द ख़ामोशी से भरे रास्ते से होकर गुजरता है. उसके गीत दिल हारने तक सम्मोहित करते हैं.

फिल्म अपनी गति, खामोशी, मानवीय पीड़ा और सिमेट्री से गाँव के सफर में बनते नये रिश्तों को दिखाती हुई अंत में उस आशा पर पहुँच जाती है जहाँ कोई भी यातना बिना विकल्पों के जीवन के संगीत को अपनी उंगलियों से बजाती हुई ऊँचे झरने की तरह बह सकती है.

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– श्री श्री

 
      

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