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सुशील कुमार भारद्वाज की कहानी ‘उस रात’

सुशील कुमार भारद्वाज ने हाल कई अच्छी कहानियां लिखी हैं. अभी किन्डल ईबुक से उनकी कहानियों का संकलन जनेऊ आया है. यह उनकी एक नई कहानी है- मॉडरेटर

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उस रात दिल और दिमाग दोनों में ही भयंकर हलचल मचा हुआ था.नैतिकता और जिम्मेवारी के सवाल अंदर तक धंसे हुए थे. जीवन में ऐसे भी पल आएंगें, सपने में भी कभी नहीं सोचा था. जीवन की यह पहली और शायद आखिरी घटना थी – जब मैं किसी जवान लड़की के साथ एक ही कमरे में एक ही बिस्तर पर कुछ फासले बनाकर सोया हुआ था. नहीं- नहीं. लेटा हुआ था. शरीर की थकान मिटाने के लिए. ऐसे में भी किसी को नींद आ सकती है क्या? लग रहा था जैसे कि कमरे का वातावरण असहज हो रहा हो. वहां से भाग जाने की इच्छा हो रही थी लेकिन भाग भी नहीं पा रहा था. बिजली की चकाचौंध में उससे नजरें मिलाना भी ठीक-ठीक संभव नहीं हो पा रहा था. डर लगने लगता था कि गर जो उसके गदराए जिस्म पर मेरी नजर चली गई तो क्या सोचेगी? धधकते आग और सूखे पत्ते जब एक जगह होते हैं तो शायद ऐसा ही होता है.

उसी समय अचानक से बिजली भी चली गई. जितनी यह राहत की बात थी उतनी ही बेचैनी की. इत्मीनान था कि आँखें सुकून में रहेगीं लेकिन डर था कि रात के अंधेरे में कहीं कोई किसी के जिस्म को छू न ले. इस अन्धेरें में भी साफ़ – साफ़ दिख रहा था कि वह स्त्री – सुलभ स्वभाव के अनुसार स्वयं को ढक कर लेटी थी. उसके मन में क्या हलचल थी –कहना मुश्किल है. बस याद आती है महाकाव्य रामायण की. रामायण के पात्र सीता की. उस सीता की जिसने जिंदगी भर कष्ट ही कष्ट झेले. रावण ने सीता का अपहरण कर लिया तो इसमें सीता का क्या दोष था? सीता घर छोड़कर भागी तो नहीं थी? राम से दगा तो नहीं की थी? रावण जोर-जबर्दस्ती करके लंका ले गया लेकिन रखा तो था अशोक वाटिका में ही? रावण को भी श्राप मिला हुआ था कि “ज्योंहि तुम किसी स्त्री से उसके इच्छा के विरुद्ध प्रेम करोगे तुम्हारा सम्पूर्ण नाश हो जाएगा.” इसीलिए तो रावण हर बार सिर्फ सीता को रजामंद कराने की हर संभव कोशिश करता था. जिसमें वह कभी सफल नहीं हुआ. सीता से दुत्कार ही सुनता रहा. अपमानित ही होता रहा. और अंत में तो अपना सर्वनाश ही करा बैठा लेकिन वह सीता को लाख प्रताड़ना के बाबजूद तोड़ न सका. लंका के राजमहल में रहने वाले एक-एक लोग सीता की पवित्रता की गवाही दे सकते थे लेकिन राम ने लोगों की गवाही लेने की बजाए सीता की ही अग्निपरीक्षा ली. शायद राम को लगा होगा कि एक विजेता के सामने हारे हुए लोग सच नहीं कह पाएंगें! शायद राम को ही सीता पर विश्वास न रहा हो? शायद सीता ने लक्ष्मण के लिए जो अपशब्द कह राम की सहायता में जाने के लिए मजबूर किया उससे वे दुखी हों! यदि सीता का अपहरण नहीं हुआ होता तो शायद राम-रावण का युद्ध भी न होता? शायद राम-लक्ष्मण के जीवन संकट में नहीं पड़ते! शायद इस वजह से भी राम का मोह सीता से भंग हो गया हो? और अयोध्या आने के बाद जनता के बीच उठती अफवाह को अवसर के रूप में देखकर सीता को निर्वासन दे दिया? सच जो भी हो लेकिन सीता को मिला क्या? लगभग बारह वर्षों के बाद भी अश्वमेघ यज्ञ के समय जब महर्षि वाल्मीकि ने सीता-राम को मिलाने की कोशिश की तो फिर तिरस्कार ही स्वागत में खड़ा मिला. अग्निपरीक्षा की बात होने लगी जिससे तंग आकर सीता राम का साथ पाने की बजाए धरती में समाना ज्यादे बेहतर समझी. क्या आज समय बदल गया है? स्त्रियां इस काबिल हो गईं हैं कि पुरुषों की सत्ता को चुनौती दे सकें? क्या स्त्रियों का जीवन निष्कंटक हो गया है?

मैं तो यह सोचकर हैरान हो रहा हूं कि जो संजना मेरे बिस्तर में लेटी है उसका भविष्य क्या होगा यदि जो इस घटना की जानकारी किसी को मिल गई? यदि कुछ बुरा होगा तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा? खैर, इतना तो मन को विश्वास था कि आज की रात हमदोनो में से कोई भी गहरी नींद की आगोश में समा नहीं पाएगा. एक दूसरे से अनजान तो न थे लेकिन कई वर्षों से हमदोनो में कोई बात या मुलाकात भी नहीं थी.यह तो अजीब संयोग है कि आज हमदोनों इस होटल के एक कमरे में रहने को मजबूर हो गए हैं.

आज इतनी बातें दिमाग में कभी नहीं आतीं. वह आराम से मेरे जिस्म के करीब गले में बाहें डालकर सो सकती थी. मैं भी उसके जुल्फों से खेल सकता था. उसके अंग-प्रत्यंग को सहला सकता था. गदराई जवानी का जश्न मना सकता था. होटल के बंद कमरे में एकांत का भरपूर लुफ्त उठा सकता था. इस तरह एक अदृश्य लक्ष्मण रेखा में में बंधकर यूँ ही चुपी लादे सुबह होने का इंतज़ार नहीं करना पड़ता. लेकिन मैंने ही तो उससे उसका यह हक छीन लिया है. उसकी आँखों में आँसू के जो बूंद आए, उसके लिए मैं भी कहीं न कहीं जिम्मेवार हूं. क्योंकि मैंने उससे शादी करने से इंकार कर दिया था. नहीं – नहीं यह पूर्ण सत्य नहीं है. मैं इंकार या स्वीकार तो तब करता जब बात मुझ तक पहुँचती. मुझे तो बाद में किसी ने बताया कि संजना के शादी का प्रस्ताव आया था. घर वालों ने हँसते हुए यह कह कर लौटा दिया था कि दो परिवारों की वर्षों की दोस्ती को दोस्ती ही रहने दिया जाय. उनका तर्क था कि दोस्ती की वजह से रिश्ते में करवाहट आ सकती है.

इसके बाद तो उसके प्रति मेरी सोच ही बदल गयी. उससे अधिक दूरी बनाने की हर संभव कोशिश करने लगा. जब कभी सामना हुआ तो धीर-गंभीर बना रहा या यूँ गुजर गया जैसे उस पर मेरी नज़र ही न पड़ी हो. चोर की तरह नज़रें चुराता फिरता. उसके व्यवहार से कभी –कभी सोच में पड़ जाता था कि वह इतनी परिपक्व हो गई या सबकुछ से अंजान है जो बिना हिचक के सामने आ जाती है. कभी –कभी इच्छा होती थी कि एक नज़र उसे निहार लूँ. पर डर जाता था कि कहीं मन की कोमल भावनाएं न जग जाएं. घर वाले क्या कहते या करते ये तो बाद की बात होती अगल–बगल वाले पहले बदनाम कर देते. एक ही बात दिमाग में होती – “जब मैं उससे शादी ही नहीं कर सकता तो उसे बदनाम क्यों करूँ?”

आज जब यहाँ हम दोनो के सिवा कोई नहीं है तो मन की सारी भावनाएँ कमरे के इस अँधेरे में उफान मार रही हैं. -“आखिर क्यों नहीं मुझे उससे शादी कर लेनी चाहिए? क्या मैं घर वालों को समझा नहीं सकता? क्या मैं इतना कमजोर हूँ?”

तभी कमरे में एक मीठी सी आवाज गूंजी जिसने मेरा ध्यान खींचा. संजना की मोबाइल बजी थी. और फिर संजना – “हाँ माँ! मैं ठीक से पहुँच गयी हूँ. ……ओह क्या बताऊँ? शहर में कोई होटल खाली नहीं मिल रहा था बड़ी मुश्किल से एक डबल बेड का रूम मिल गया है…… अकेले रहने के कारण थोडा महंगा तो है लेकिन क्या करूँ एक ही रात की तो बात है …….”

उसकी बात सुनकर मुस्कुराए बगैर रह न सका. वाकई वह कमरे में अकेली है? थोड़ी देर पहले ही की तो बात है. मैंने थक कर इस होटल में सिंगल बेड न मिलने के कारण इस कमरे को बुक करा लिया था. उसी समय यह भी काउंटर पर आ पहुंची थी. निराश होकर लौटने ही वाली थी कि मैंने अपना वाला कमरा उसे दे देने को होटल वाले से कहा. वह बहुत खुश हुई थी लेकिन तुरंत पूछ बैठी –“फिर आप कहाँ जाइएगा? … प्लेटफोर्म पर?” मैं हामी में सिर हिलाता उससे पहले ही – “आप पुरानीं सोच को छोडिए. वैसे भी यह कोई पटना नहीं है जो कोई परिचित मिल जाएँगे? रात भर की ही तो बात है?” और असमंजस की स्थिति में मजबूरन उसके साथ क्योंकर तो चल पड़ा?

विचारों का सिलसिला उस समय टूटा जब वह मुझसे बोली –“जानते हैं आज की रात मेरे लिए बहुत ही खास हो गई है?”

मैं पूछ बैठा- कैसे?

तो वह बोली –“अभी माँ बताई कि लड़के वालों ने शादी के लिए हाँ कर दी है. शादी हो जाएगी तो उनलोगों का भी सिर हल्का हो जाएगा. पता नहीं आज तक मेरी खातिर पापा जी कितने दरवाजों पर गए? किस-किस से कितनी बातें की? हर इंकार पर वे कैसे अंदर तक टूट जाते थे? कई बार तो खुद पर भी गुस्सा आता था? सिर्फ लड़की होने की वजह से ही नहीं बल्कि इतनी पढ़ाई करने के बाबजूद एक अच्छी सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर पाने की वजह से भी. लड़के वाले अब सिर्फ पढ़ी-लिखी ही लड़की नहीं नौकरी वाली भी लड़की खोजते हैं जो घर भी संभाले और कमाकर भी दे. बाबजूद इसके दहेज में भी कोई कमी नहीं. अजीब समाज में रहते हैं हमलोग! कल की परीक्षा मेरे लिए बहुत ही निर्णायक होगी. पता नहीं सैंकड़ों बंदिशों के बीच जीवन का सामंजस्य कैसे होगा? आगे का जीवन……….”

संजना अपने लय में बोले ही जा रही थी. और निरंतर बोले जा रही थी. शायद अरसे बाद उसे अपने अंदर के गुब्बार को बाहर निकालने का मौका मिला था. आवाज में खुशी की खनक थी तो गम की नमी भी. बातचीत का दौर चल ही रहा था कि बिजली भी आ गई. उसके चेहरे पर वर्षों बाद इतनी चमक देखी थी. निर्दोष और स्वाभाविक खुशी झलक रही थी. बैठकर बात करते हुए लगा ही नहीं कि कोई अजनबी हो. कुछ समय पहले जो असहजता महसूस हो रही थी वह कहीं दूर चली गई. उसकी खुशी में मेरे पास मुस्कुराने और उसे बधाई देने के सिवा कुछ भी नहीं बचा था. इच्छा हुई कि वो सिर्फ बोलती ही रहें ताकि इस दरम्यान मैं उसे जी भर देख सकूँ. क्योंकि ये रात कभी वापस नहीं आने वाली थी. भूल गया कि मैं भी कुछ कहना चाहता था? जिंदगी की कुछ सच्चाइयों को बेपर्द करना चाहता था लेकिन बातों में पूरी रात कब निकल गयी पता ही न चला.

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