छठ अकेला ऐसा पर्व है जिसे बिहार के बाहर लोग समझ नहीं पाते. कोई अंधविश्वास कहकर लाठी भांजने लगता है, कोई बिना जाने यह कहने लगता है कि केवल महिलाएं भूखी क्यों रहती हैं, पुरुष क्यों नहीं? जबकि इस पर्व को बड़ी तादाद में पुरुष भी करते हैं. मेरे जैसे विस्थापितों के लिए छठ पीड़ादायी भी हो गया है. अपनी अपनी जड़ों से कट चुके हम छठ के बहाने अपनी मिट्टी के बिछड़ने का प्रायश्चित करते हैं. आज मैं दिल्ली में अलग अलग घाटों पर छठ की चला पहल देखूंगा और उदास हो जाऊँगा. अच्छा भी लगता है कि दिल्ली में छठ की रौनक इस साल दीवाली से अधिक लग रही है. बुरा भी लगता है कि हर साल छठ का व्रत आकर यह बता जाता है कि बिहार के बाहर बिहार कितना फ़ैल गया है, कितना विस्थापित हो गया है. खैर, आप बिहार के युवा पत्रकार, लेखक कुमार रजत का लिखा पढ़िए- छठ क्यों जरूरी है? काफी पढ़ा गया है, आप भी पढ़िए- मॉडरेटर
=============
ये छठ जरूरी है
धर्म के लिए नहीं। समाज के लिए। हम आप के लिए जो अपनी जड़ों से कट रहे हैं।
ये छठ जरूरी है
उन बेटों के लिए जिनके घर आने का ये बहाना है। उस माँ के लिए जिन्हें अपनी संतान को देखे महीनों हो जाते हैं। उस परिवार के लिए जो टुकड़ों में बंट गया है।
ये छठ जरूरी है
उस नई पौध के लिए जिन्हें नहीं पता कि दो कमरों से बड़ा भी घर होता है। उनके लिए जिन्होंने नदियों को सिर्फ किताबों में ही देखा है।
ये छठ जरूरी है
उस परम्परा को जिन्दा रखने के लिए जो समानता की वकालत करता है। जो बताता है कि बिना पुरोहित भी पूजा हो सकती है। जो सिर्फ उगते सूरज को नहीं डूबते सूरज को भी सलाम करता है।
ये छठ जरूरी है
गागर निम्बू और सुथनी जैसे फलों को जिन्दा रखने के लिए। सूप और दौउरा को बनाने वालो के लिए। ये बताने के लिए कि इस समाज में उनका भी महत्त्व है।
ये छठ जरूरी है
उन दंभी पुरुषों के लिए जो नारी को कमजोर समझते हैं।
ये छठ जरूरी है। बेहद जरूरी।
कुमार रजत, पटना
8 comments
Pingback: 토렌트 다운
Pingback: kinetisch zand
Pingback: EV Charger
Pingback: Samui muay thai
Pingback: ให้เช่าคอนโด
Pingback: 5 meo dmt peru
Pingback: แทง ROV
Pingback: youtube automation niches