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विश्व रंगमंच दिवस विशेष

आज विश्व रंगमंच दिवस है। आज पढ़िए कवि-नाट्य समीक्षक मंजरी श्रीवास्तव का यह लेख जो कुछ यादगार अंतरराष्ट्रीय नाट्य प्रस्तुतियों को लेकर है- ======================== 1. आज विश्व रंगमंच दिवस पर मैं आप सबसे बातचीत करूंगी कुछ यादगार अंतर्राष्ट्रीय नाट्य प्रस्तुतियों पर जिनमें से कुछ नाटक मैंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा …

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‘भक्त ध्रुव’ से ‘कहाँ खो गए हम’ तक

वरिष्ठ लेखिका अंजली देशपांडे की यह दिलचस्प टिप्पणी पढ़िए जो सिनेमा देखने के अनुभवों को आधार बनाकर लिखा गया है। आप भी पढ़ सकते हैं- ================   दिल्ली की हाड़ कंपा देने वाली शीत लहर में जब गाज़ा से मणिपुर तक हाहाकार की कंपकंपी फैली हो, किसी दिन दिमाग को …

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हिंदी साहित्य और हिंदी के डॉक्टर: प्रमोद रंजन

प्रमोद रंजन का यह लेख एक साहित्योत्सव के पोस्टर से शुरु होकर सृजनशीलता और मौलिकता क्या है, जैसे बड़े सवालों को उठाता है। प्राध्यापकों की कुंठा और रीढ़विहीनता की भी इसमें अच्छी खबर ली गई है। पढ़िए– ======================== हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में एक साहित्य उत्सव हो रहा है। उसका पोस्टर …

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राजकमल प्रकाशन समूह की टॉप-सेलर लिस्ट और साहित्य

फरवरी, 2024 में हिंदी के सबसे बड़े प्रकाशक राजकमल प्रकाशन समूह ने पिछले 10 साल में प्रकाशित टॉप सेलर किताबों की सूची जारी की। सूची में 21 किताबें हैं। इन किताबों पर नजर डाल कर हम हिंदी प्रकाशन व्यवसाय और पाठकीयता की प्रकृति  को समझने की कोशिश कर  सकते हैं। …

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अनछुए चरित्र, विस्मित कर देनेवाले किरदार

जाने माने कथाकार-कवि हरि मृदुल का कहानी संग्रह ‘हंगल साहब ज़रा हँस दीजिए’  पिछले साल आया था। उसके बारे में प्रसिद्ध लेखिका अलका सरावगी की यह टिप्पणी पढ़िए। संग्रह आधार प्रकाशन से प्रकाशित है- ========================== हरि मृदुल की कहानियां समकालीन जीवन-जगत को एकदम अलग कोणों से पकड़ती हैं। अपने कथ्य, …

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हमें नई राजनीतिक भाषा की जरूरत है

आज पढ़िए प्रसिद्ध समाजविज्ञानी और भारत जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक योगेन्द्र यादव का लेख। यह लेख भारतीय गणतंत्र पर है और द प्रिंट में प्रकाशित हो चुका है। आपके लिये साभार- ====================== अंग्रेजी की कहावत है: किंग इज डेड, लॉन्ग लिव द किंग” (`राजन नहीं रहे, राजन जिन्दाबाद`). इसी तर्ज पर 26 जनवरी को …

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‘हिन्दू बनाम हिंदू’ पर कुछ विचार: योगेन्द्र यादव

प्रसिद्ध समाजविज्ञानी योगेन्द्र यादव का यह लेख ‘पंजाब केसरी’ में प्रकाशित हुआ था। राममनोहर लोहिया के हवाले से इस लेख में उन्होंने अनेक बहसतलब बातें की हैं। आप लोगों के लिए साझा कर रहा हूँ-प्रभात रंजन =========================== अपने कालजयी लेख ‘हिंदू बनाम हिंदू’ में राममनोहर लोहिया ने भारत के राजनीतिक …

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श्रमसाध्य शोधपरक विश्लेषण और पुनर्पाठ का ठाठ

मेरी अपनी नज़र में हितेन्द्र पटेल की किताब ‘आधुनिक भारत का ऐतिहासिक यथार्थ’ पिछले एक दशक में प्रकाशित हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ आलोचना पुस्तक है। यह अतिशयोक्ति लग सकती है लेकिन हिन्दी उपन्यासों के माध्यम से उस ऐतिहासिक परिदृश्य का खाका तैयार करना बहुत मेहनत की माँग करता है और स्पष्ट …

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आत्मा की आवाज़ का कवि अशोक वाजपेयी

आज वरिष्ठ कवि, चिंतक, संस्कृतकर्मी अशोक वाजपेयी का जन्मदिन है। जानकी पुल उनके शतायु होने की कामना करता है। इस अवसर पर पढ़िए युवा लेखिका रश्मि भारद्वाज की यह टिप्पणी- ============== ‘मुझे किसी ने बताया नहीं था कि कवि होने के लिए क्या-क्या होना न होना पड़ता है!’ अपना समय …

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कोई निंदौ कोई बिंदौ: माधव हाड़ा

मीरांबाई के जीवन और तत्कालीन समाज पर माधव हाड़ा की किताब पचरंग चोला पहर सखी री का दूसरा संस्करण आया है। इस किताब का पहले अंग्रेज़ी में अनुवाद भी हो चुका है। यह किताब निस्संदेह मीरांबाई को समझने की एक नई दृष्टि देती है। बहरहाल, वाणी प्रकाशन से प्रकाशित किताब …

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