प्रसिद्ध कवि बोधिसत्व की यह कविता हमारे समाज पर गहरा व्यंग्य करती है. आप भी पढ़िए ‘न्यूट्रल आदमी’, बनिए नहीं- जानकी पुल. ================ न्यूट्रल आदमी वह हिंद केशरी नहीं था वह भारत रत्न नहीं था वह विश्व विजेता नहीं था किंतु सदैव था सर्वत्र था वह और चाहता सब का …
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