एक जमाने तक हिंदी में कला और सिनेमा लेखन के पर्याय जैसे रहे विनोद भारद्वाज ने हाल में ही एक उपन्यास लिखा है- ‘सच्चा झूठ’, जो 70 के दशक की पत्रकारिता को लेकर है. वह पत्रकारिता का वह दौर था जब साहित्य और पत्रकारिता में फर्क नहीं किया जाता था, …
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