हिंदी के प्रसिद्ध कवि अरुण कमल से कवयित्री आभा बोधिसत्व की बातचीत- जानकी पुल. =========================================================== आप खुद की कविता और कवि से कितने संतुष्ट हैं? संतोष से रहता हूँ। कवि हूँ भी या नहीं, कह नहीं सकता। ककहरा जानता हूँ। अक्षरों को जोड़-जोड़कर कुछ बना लेता हूं। मैं दिल से कह …
Read More »चलो हम दीया बन जाते हैं और तुम बाती
आज आभा बोधिसत्व की कविताएँ. यह कहना एक सामान्य सी बात होगी कि आभाजी की कविताओं में स्त्री मन की भावनाएं हैं, स्त्री होने के सामाजिक अनुभवों की तीव्रता है. सबसे बढ़कर उनकी कविताओं में आत्मीयता का सूक्ष्म स्पर्श है और लोक की बोली-बानी का ठाठ, जो उनकी कविताओं को …
Read More »न मैं काठ की गुड़िया बनना चाहती हूँ न मोम की
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है. इस अवसर पर प्रस्तुत हैं आभा बोधिसत्व की कविताएँ- जानकी पुल. मैं स्त्री मेरे पास आर या पार के रास्ते नहीं बचे हैं बचा है तो सिर्फ समझौते का रास्ता. जहाँ बचाया जा सके किसी भी कीमत पर, घर, समाज न कि सिर्फ अपनी बात। …
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