तुमने खेल-खेल में मेरा बनाया बालू का घर तोड़ दिया था, तुम इस बार फिर से बनाओ, मैं इस बार नहीं तोड़ूँगी। ग़लती थी मेरी, मैंने तोड़े थे। मैं तुम बनती जा रही थी। तुम धूप ही रहो, मैं छाँव ही रहूँ। तुम कठोर ही रहो, मैं कोमल ही रहूँ। …
Read More »बाबुषा की कुछ नई कविताएँ
जानकी पुल आज से अपने नए रूप में औपचारिक रूप से काम करने लगा है. पिछले कई महीने से मेरे युवा साथी निशांत सिंह इसे नया रूप देने के काम में लगे थे. बहुत मेहनत का काम इसलिए था क्योंकि ब्लॉगस्पॉट से इस नए मंच पर पिछली सारी सामग्री डालने …
Read More »सलामी क़ुबूल करो सआदत हसन मंटो!
आज उस लेखक जन्मदिन है जिसने वहशत के अंधेरों में इंसानियत की शमा जलाई, जिसका लेखन हमारे इतिहास के सबसे भयानक दौर की याद दिलाता है, उस दौर की जब इंसान के अन्दर का शैतान जाग उठा था. उसी सआदत हसन मंटो को याद कर रही हैं संवेदनशील कवयित्री बाबुषा …
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