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धर्म जनता की अफीम है- कार्ल मार्क्स

अपने नॉर्वे प्रवासी डॉ प्रवीण झा का लेखन का रेंज इतना विस्तृत है कि कभी कभी आश्चर्य होता है. उनके अनुवाद में प्रस्तुत है आज कार्ल मार्क्स के उस प्रसिद्ध लेख का अनुवाद किया है जिसमें मार्क्स ने लिखा था कि धर्म जनता की अफीम है- मॉडरेटर ============= यह लेख …

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बंदे में दम था इतना तो उसके विरोधी भी मानते हैं!

आज अपने विद्वान साथी मनोज कुमार की फेसबुक वाल से पता चला कि कार्ल मार्क्स का जन्मदिन है. उन्होंने बहुत मानीखेज ढंग से मार्क्स पर यह छोटी सी टिपण्णी भी लिखी है. आपके लिए- प्रभात रंजन ========================================== आज कार्ल मार्क्स का जन्मदिन है | उन्नीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक (1818 …

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‘मार्क्स के संस्मरण’ किताब से एक अंश

पॉल लाफार्ज और विल्हेम लीबनेख्त द्वारा लिखे गए ‘मार्क्स के संस्मरण‘ के हिंदी अनुवाद से वहीं परिचय हुआ. पॉल लाफार्ज मार्क्स के दामाद थे. इसलिए ये संस्मरण बड़े आत्मीय और विश्वसनीय लगते हैं. पुस्तक का हिंदी अनुवाद किया है हरिश्चंद्र ने और प्रकाशक हैं जन-प्रकाशन गृह, मुंबई. यह संस्मरण ‘हिंदी …

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