‘दैनिक हिन्दुस्तान’ में प्रकाशित सुधीश पचौरी के स्तम्भ ‘तिरछी नजर’ हिंदी में व्यंग्य के लगातार कम होते जाते स्पेस को बचाए रखने की एक सार्थक कोशिश है. आज का उनका स्तम्भ तो है ही इसी विषय पर. जिन्होंने नहीं पढ़ा उनके लिए- प्रभात रंजन ============================ हिंदी वालों की दुनिया में …
Read More »साहित्य एक टक्कर है। एक्सीडेंट है।
प्रसिद्ध आलोचक सुधीश पचौरी ने इस व्यंग्य लेख में हिंदी आलोचना की(जिसे मनोहर श्याम जोशी ने अपने उपन्यास ‘कुरु कुरु स्वाहा’ में खलीक नामक पात्र के मुंह से ‘आलू-चना’ कहलवाया है) अच्छी पोल-पट्टी खोली है. वास्तव में रचनात्मक साहित्य की जमीन इतनी बदल चुकी है कि हिंदी आलोचना की जमीन …
Read More »समाज में करुणा की ऐसी वापसी ऐतिहासिक अनुभव है!
प्रसिद्ध उत्तर-आधुनिक विद्वान सुधीश पचौरी का यह लेख जस्टिस वर्मा समिति की रपट के बहाने समाज में करुणा की वापसी की एक अद्भुत व्याख्या करता है. सचमुच इस समय हिंदी में उनके जैसा विश्लेषक नहीं है- जानकी पुल. ======= अज्ञेय की यह काव्यपंक्ति सहसा याद आई जब सर्वोच्च न्यायालय के …
Read More »इंटरनेट है तो फ्रेंडशिप है फ्रेंडशिप है तो शेयरिंग है
कल ‘जनसत्ता’ में सुधीश पचौरी का यह लेख आया था. जिन्होंने नहीं पढ़ा हो उनके लिए इसे साझा कर रहा हूं- प्रभात रंजन ================ यों यह एक इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी का विज्ञापन मात्र है। लेकिन यह विज्ञापन, अनेक विज्ञापनों में प्रतिबिंबित समाज की आकांक्षाओं के बीच कुछ खास कहता दिखता …
Read More »उत्तर-आधुनिक परिदृश्य में प्रो-एक्टिव विवेक
गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु सुधीश पचौरी की याद आई तो युवा विमर्शकार विनीत कुमार के इस लेख की भी जो उन्होंने पचौरी साहब की आलोचना पर लिखी है. संभवतः उनकी आलोचना पर इतनी गंभीरता से लिखा गया यह पहला ही लेख है. यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी पत्रिका …
Read More »हिंदी में हंसना अंग्रेजी में हंसने से अलग है
उत्तर आधुनिकता के विद्वान सुधीश पचौरी जिस विषय पर लिखते हैं उसका एक नया ही पाठ बना देते हैं- हमारे जाने समझे सबजेक्ट को हमारे लिये नया बना देते हैं- उदहारण के लिए सरिता_मार्च (प्रथम अंक) व्यंग्य विशेषांक में प्रकाशित हंसी पर यह लेख. आपके लिए प्रस्तुत है- जानकी पुल. ————————————————————————————————————————————————— …
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