सूर्यनाथ सिंह जनसत्ता के संजीदा पत्रकार ही नहीं हैं, बेहतर किस्सागो भी हैं. उनकी कहानियों में वह दुखा-रुखा गाँव अपनी पूरी जीवन्तता के साथ मौजूद रहता है जो अब भी विकास के वादों के सहारे ही जी रहा है, जो धीरे-धीरे हिंदी कहानी से गायब होता जा रहा है. फिलहाल …
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