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सच को झूठ की तरह लिखनेवाला लेखक

अपनी पुस्तक लेटर्स टु यंग नॉवेलिस्ट में मारियो वर्गास ल्योसा ने लिखा है कि सभी भाषाओं में दो तरह के लेखक होते हैं- एक वे होते हैं जो अपने समय में प्रचलित भाषा और शैली के मानकों के अनुसार लिखते हैं, दूसरी तरह के लेखक वे होते हैं जो भाषा और शैली के प्रचलित मानकों को तोड़कर कुछ एकदम नया रच देते हैं। २८ मार्च, १९३६ को लैटिन अमेरिका के एक छोटे से गरीब देश पेरू में पैदा होनेवाले इस उपन्यासकार, निबंधकार, पत्रकार ने स्पैनिश भाषा के मानकों को तोड़ा या उसमें कुछ नया जोड़ा यह अलग बहस का विषय है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि संसार भर में ल्योसा को अपनी भाषा के प्रतिनिधि लेखक के तौर पर जाना जाता है। पेरू के एक पत्रकार ने उनके तआरूफ में लिखा था, हमारे देश की दो बड़ी पहचानें हैं- माच्चूपिच्चू की पहाड़ी ऊँचाइयां और लेखक मारियो वर्गास ल्योसा.

मारियो वर्गास अपने लेखन, अपने जीवन में एडवेंचरस माने जाते हैं, जीवन-लेखन दोनों में उन्होंने काफी प्रयोग किए। विद्रोह को साहित्यिक लेखन का आधार-बिंदु माननेवाले मारियो वर्गास शायद हेमिंग्वे की इस उक्ति को अपना आदर्श मानते हैं कि जीवन के बारे में लिखने से पहले उसे जीना अवश्य चाहिए। उनकी कई यादगार रचनाएं अपने जीवनानुभवों से निकली हैं। १९ वर्ष की उम्र में उन्होंने खुद से १३ साल बड़ी अपनी आंटी जुलिया(स्पेनिश भाषा में खुलिया) से शादी कर ली, कुछ साल बाद दोनों में अलगाव भी हो गया। बेहद प्रसिद्ध उपन्यास आंट जुलिया एंड द स्क्रिप्टराइटर में उन्होंने इसकी कथा कही है। हालांकि यह उपन्यास केवल प्रेमकथा नहीं है। उपन्यास को याद किया जाता है स्क्रिप्टराइटर पेद्रो कोमाचो के चरित्र के कारण, जो उन दिनों रेडियो पर प्रसारित होनेवाले सोप-ऑपेराओं का स्टार लेखक था। उसके माध्यम से ल्योसा ने रेडियो पर धारावाहिक प्रसारित होने वाले नाटकों के उस दौर को याद किया है जो बाद में टेलिविजन धारावाहिकों के प्रसारण के कारण लुप्त हो गया।

१९७७ में प्रकाशित इस उपन्यास में उन्होंने निजी-सार्वजनिक कहन की एक ऐसी शैली से पाठकों का परिचय करवाया, बाद में जिसकी पहचान उत्तर-आधुनिक कथा-शैली के रूप में की गई। उत्तर-आधुनिक कथा-लेखन की एक और प्रमुख शैली के वे पुरस्कर्ता कहे जा सकते हैं- हास्य-व्यंग्य की चुटीली शैली में गहरी बात कह जाना। उनके पहले उपन्यास द टाईम ऑफ द हीरो में सैनिक स्कूल के उनके अनुभवों की कथा कही है। सेना में व्याप्त भ्रष्टाचार के कथानक से अपने पहले ही उपन्यास से लेखक के रूप में उनकी विवादास्पद पहचान बनी। प्रसंगवश, ऐतिहासिक घटनाओं के बरक्स निजी प्रसंगों की कथा की शैली ल्योसा की प्रमुख विषेशता मानी जाती है।

अपने समय में स्पेनिश भाषा के सबसे बड़े लेखक के रूप में जाने जानेवाले ग्राबियल गार्सिया मार्केज़ की रचनाओं पर शोध करके लंदन विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करनेवाले इस लेखक की तुलना अक्सर मार्केज़ से की जाती है। मार्केज़ के बाद निस्संदेह ल्योसा स्पैनिश भाषा के सबसे बड़े लेखक हैं। जादुई यथार्थवाद की शैली को ऊँचाइयों तक पहुंचाने वाले मार्केज़ और मुहावरेदार वर्णनात्मक शैली के बेहतरीन किस्सागो ल्योसा की शैलियां भले अलग हों, मगर दोनों के सरोकार, राजीतिक-सामाजिक चिंताएं काफी मिलती-जुलती हैं। सर्वसत्तावादी व्यवस्थाओं के प्रति विद्रोह का भाव दोनों की रचनाओं में दिखाई देता है, अपनी संस्कृति से गहरा लगाव दोनों की रचनाओं में दिखाई देता है।

लैटिन अमेरिका के दो पिछड़े देशों से ताल्लुक रखनेवाले दोनों लेखकों के उपन्यासों में निजी-सार्वजनिक का द्वंद्व दिखाई देता है, मार्केज़ ने अपने उपन्यास ऑटम ऑफ द पैट्रिआर्क में तानाशाह के चरित्र को आधार बनाया है, ल्योसा के उपन्यास फीस्ट ऑफ गोट में भी डोमिनिक रिपब्लिक के एक तानाशाह के जीवन को कथा का आधार बनाया गया है। ल्योसा का दूसरा प्रकाशित उपन्यास कनवर्सेशन इन द कैथेड्रल में पेरू के एक तानाशाह से विद्रोह करनेवाले नायक की कहानी है। मार्केज़ ने लव इन द टाइम ऑफ कॉलरा के रूप में प्रेम के एपिकल उपन्यास की रचना की. हाल ही में ल्योसा का उपन्यास प्रकाशित हुआ बैड गर्ल, यह भी प्रेम की एपिकल संभावनाओं वाला उपन्यास है। वैसे इस तुलना का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि खुद ल्योसा ने मार्केज़ के बारे में लिखा है कि पहले से चली आ रही भाषा उनका संस्पर्श पाते ही जादुई हो जाती है। भाषा का ऐसा जादुई प्रभाव रचनेवाला दूसरा लेखक नहीं है।

लैटिन अमेरिका के दोनों महान लेखकों में एक समानता यह जरूर है कि दोनों ने कुछ भी कमतर नहीं लिखा। ल्योसा ऐसे लेखक के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने विषय और शैली के स्तर पर कभी अपने आपको दुहराया नहीं। हेमिंग्वे की तरह उनके उपन्यासों में विषय की विविधता है और युद्ध का आकर्षण। ब्राजील के एक ऐतिहासिक प्रसंग को आधार बनाकर लिखे गए उनके उपन्यास द वार ऑफ द एंड ऑफ द वर्ल्ड को अनेक आलोचक उनका सर्वश्रेष्ठ उपन्यास भी मानते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि वे विविधवर्णी लेखक हैं।

अपनी एक भेंटवार्ता में ल्योसा ने कहा है कि साहित्य-लेखन के प्रति वे इसलिए आकर्षित हुए क्योंकि इसमें झूठ लिखने की आजादी होती है। ऐसा झूठ जो पहले से प्रचलित सत्यों में कुछ नया पहलू जोड़ देता है, कोई नया आयाम जोड़ देता है। साहित्य में जीवन की पुनर्ररचना नहीं होती है, वह उसमें कुछ नया जोड़कर उसे रूपांतरित कर देता है। यही साहित्य की सबसे बड़ी शक्ति होती है। ल्योसा के साहित्य के व्यापक प्रभाव का भी शायद यही कारण है।

 
      

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6 comments

  1. ल्‍योसा के रचनाकर्म पर यह एक सटीक और सारगर्भित टिप्‍पणी है। यह ल्‍योसा को उनके समकालीन रचनाकारों के बीच रखकर उनकी रचनात्‍मक उपलब्धियों को रेखांकित करती है, साथ ही उनके लेखन के बारे में उत्‍सुकता भी पैदा करती है।

  2. इस लेख के लिए बधाई. ऐसे लेखकों के बारे में हिन्दी पट्टी में कम जानकारी है. आप हम तक उन्हें ला रहे हैं, महत्वपूर्ण काम है. इनकी किताबों की सूचियाँ और हिंदी अनुवाद यदि उपलब्ध हों तो वो जानकारी भी दें.

  3. ज़िंदगी के एक नये पहलू से आज वाकिफ़ होने का मौक़ा मिला । और इस मौक़े को उपलब्ध कराने का बहुत-बहुत शुक्रिया !

  4. प्रभात जी आपने कुछ ऐसे रचनाकरों से हिंदी को परिचित कराया है जिन्हें कुछ ही लोग जानते हैं. यह सीरीज शानदार है .इसे किताब में संकलित किया जाना चहिए. बहुत पसंद की जायेगी.अंदाज़े-बयां का तो कहना ही क्या .

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