चीन में लाओत्से के के विचारों की बड़ी मान्यता थी. कहते हैं वह कन्फ्यूशियस का समकालीन था. जब उसने अपने ज्ञान को लिपिबद्ध किया तो वह कविताओं के रूप में सामने आया. ताओवाद के प्रवर्तक के विचार ‘ताओ ते छिंग’ में संकलित है. अभी उसका एक चुनिन्दा संकलन राजकमल प्रकाशन ने छापा है. अनुवाद वंदना देवेन्द्र ने किया है. कुछ चुनी हुई विचार कविताएँ- जानकी पुल.
(1)
जीवन
लोग अभावग्रस्त व भूखे क्यों हैं?
क्योंकि शासक करों के रूप में धन खा जाता है
अतः लोग भूखे मर रहे हैं
लोग विद्रोही क्यों हैं?
क्योंकि शासक अत्यधिक हस्तक्षेप करता है
अतः लोग विद्रोहात्मक हैं
लोग मृत्यु के विषय में इतना कम क्यों सोचते हैं?
क्योंकि शासक जीवन से अत्यधिक अपेक्षा करता है
अतः लोग मृत्यु को गंभीरता से नहीं लेते
नितांत अभाव में जीवनयापन करनेवाला
जीवन के मूल्य से वृहत्तर कुछ नहीं जानता.
(2)
मृत्युंजय
लोगों का सही परिचय ही विद्वत्ता है
स्वयं को जानना बोध है
दूसरों पर प्रभुता स्थापित करना पार्थिव शक्ति है
स्वयं पर अधिकार पाना मनोबल है
जो उपलब्ध से संतुष्ट है वही धनी है
दृढ़ता मनोबल का द्योतक है
दुखों के बीच भी
जो विचलित नहीं होता
मृत्युपरांत भी जिसका अस्तित्व है
वह अमर है.
(3)
पांडित्य का मोह त्याग कष्टों का अंत करो
स्वीकृति और अस्वीकृति में अंतर क्या है?
शुभ और अशुभ में भेद क्या है?
सकल संसार जिससे आतंकित है
कदाचित मुझे भी उससे भयभीत होना चाहिए?
यह मूर्खता है.
लोग संतुष्ट और बैल के बलिभोज में आनंदित हैं
कुछ लोग बसंत में वाटिकाओं में जाते हैं
अथवा छत पर चढ़ते हैं
अपनी स्थिति से अभिज्ञ मैं लक्ष्यहीन हूँ
नवजात शिशु की तरह स्मित, सीखने से
पूर्व किसी घर के अभाव में एकाकी हूँ
दूसरों के पास उनकी आवश्यकता से अधिक है
किन्तु मेरे पास कुछ नहीं
मैं मूर्ख दुविधामय हूँ जबकि
दूसरे स्पष्ट और तेजोमय हैं
मैं एकाकी हतप्रभ अशक्त हूँ
जबकि दूसरे तीक्ष्ण और चतुर हैं
मात्र एक मैं ही मंद और भ्रांत हूँ
मैं समुद्र की लहरों की भांति लक्ष्यहीन और
दिग्भ्रमित पवन की तरह अशांत हूँ
अन्य सभी व्यस्त हैं
अकेला मैं निरुद्देश्य और निराश हूँ
फिर भी मैं अनन्य हूँ
मैं महामातृत्व से सिंचित हूँ.
(4)
मनुष्यता
छोटे देश की जनसंख्या कम होती है
यद्यपि मशीनें उनके स्थान पर दस से सौ गुना शीघ्रता से
कार्य कर सकती हैं
किन्तु उनकी आवश्यकता नहीं है
लोग मृत्यु को गंभीरता से लेते हैं और
लंबी दूरियों तक यात्रा नहीं करते
जबकि उनके पास नावें और रथ हैं
किन्तु कोई उनका उपयोग नहीं करता
यद्यपि उनके पास अस्त्र-शस्त्र हैं
किन्तु उन्हें कोई प्रकट नहीं करता
लिखने के स्थान पर वे रस्सी में गांठें बनाने लगते हैं
उनका भोजन सुरुचिपूर्ण और साधारण है,
उनके वस्त्र उत्कृष्ट किन्तु सादा हैं, उनके घर सुरक्षित हैं;
वे अपने-अपने ढंग से सुखी हैं
यद्यपि वे अपने
पड़ोसियों की दृष्टि-छाया में रहते हैं और
उनके मार्ग के छोर पर
मुर्गों की बांगें,
कुत्तों का भौंकना आदि के मध्य
वे एक-दूसरे को शांति से
बुढापे में प्रशस्त और मृत्यु को प्राप्त होने देते हैं..
कवितायें बेहद सशक्त हैं…अनुवाद शायद और काव्यात्मक हो सकता था…वैसे मूल पढ़े बिना (जिसकी अपनी औकात नहीं है)…यह कहना बहुत उचित भी नहीं!
kavita kam darshan adhik hai aur darshak ka atirek aksar kavita ko kamzor kar deta hai.
is jaankari ke liye aabhaar! aapke blog se nit naveen padhne ko milta hai …
हिन्दी में आने वाली महत्वपूर्ण नई किताबों की जानकारी भी इधर आपसे ही मिल रही है. बहुत-बहुत धन्यवाद.